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फिल्में (Movies) देखना भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग हैं। हम भारतीयों को फिल्में देखना बहुत पसंद है, और यह अक्सर हमारे पारिवारिक समय का हिस्सा होता है। फिल्मों के प्रति हमारा लगाव कुछ ऐसा है कि फिल्म के सितारें हमारे जीवन का हिस्सा बन जाते है। फिल्म की टिकट देखते ही आनंदित हो उठते हैं। उनकी फिल्मों की सफलता और असफलता हमें खुशी और दुःख दोनों देती है।
हमारे माता-पिता और 2000 के दशक से पहले की पीढ़ी अब भी उस युग को याद करते हैं जब सिनेमा(Movies) देखना सिर्फ फिल्मों के बारे में था। वह समय जब लोग एक ही बड़े पर्दे पर फिल्म देखते थे, जिसे ‘सिंगल स्क्रीन’ कहा जाता था। उस दौर में फिल्म देखना एक यादगार अनुभव होता था।
परंतु पिछले 10-15 वर्षों में, मल्टीप्लेक्स के आगमन ने सिनेमा(Movies) देखने के अनुभव को पूरी तरह से बदल दिया है। आधुनिक ध्वनि प्रणालियों और विशाल पर्दों के साथ, मल्टीप्लेक्स ने फिल्म देखने के अनुभव को और भी इमर्सिव बना दिया है।
लेकिन इसके साथ ही कुछ और भी बदल गया है। जहां पहले फिल्म(Movies) देखना एक सस्ता मनोरंजन था, वहीं अब यह एक महंगा अनुभव बन चुका है। टिकट की कीमतों से लेकर खाने-पीने की चीजों तक, हर चीज की कीमत बढ़ गई है। इससे सिनेमा देखने के तरीके में भी बदलाव आया है। अब लोग घर पर ही ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवाओं के माध्यम से फिल्में देखना पसंद करते हैं।
फिल्म देखने का चलन अब बदल गया है। लोग साल में केवल एक या दो बार ही सिनेमा हॉल में फिल्म देखने जाते हैं। इसकी एक मुख्य वजह है कि टिकट की कीमतें और अन्य खर्चे वेतन वृद्धि की तुलना में काफी तेजी से बढ़े हैं। इसके परिणामस्वरूप, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स फिल्म प्रेमियों के लिए एक बड़ी राहत बन कर आए हैं। ये प्लेटफॉर्म्स आरामदायक और किफायती तरीके से घर बैठे ही फिल्मों का आनंद उठाने का विकल्प प्रदान करते हैं।
हमारे शोध के अनुसार, भारत के विभिन्न शहरों में एक जोड़े के लिए फिल्म देखने की लागत (Movies, Ticket, Snacks) में काफी अंतर है। हमने भारत के कुछ नगरों को तीन विभिन्न टियर में बांटा और एक लेट नाईट शो देखने के खर्च को दिखने का प्रयास किया. इस लागत में टिकट मूल्य, एक पॉपकॉर्न टब और २ कोल्ड ड्रिंक्स सम्मिलित हैं:
टियर 1 शहर:
- मुंबई (विवियाना मॉल, ठाणे): ₹2362
- नई दिल्ली (डीएलएफ साकेत): ₹2125
- नोएडा/गुरुग्राम (एम्बिएंस): ₹2265
- बैंगलोर (गैलेरिया मॉल, आईनॉक्स): ₹2317
- हैदराबाद (अशोका वन मॉल): ₹2168
- पुणे (नेक्सस वेस्टेंड मॉल): ₹2050
टियर 2 शहर:
- लखनऊ: ₹1789
- भोपाल (औरा मॉल): ₹1236
- पटना (सिनेपोलिस, पी एंड एम मॉल): ₹1762.24
- भुवनेश्वर (आईनॉक्स, बीएमसी भवानी मॉल): ₹2045.84
- मदुरै (आरजीबी लेजर 7.1): ₹473.92
टियर 3 शहर:
- गोरखपुर (ओरियन मॉल): ₹1539.89
- सागर (पैराडाइज प्लेटिनम प्लाजा): ₹358.64
- मुजफ्फरपुर (पीजेपी सिनेमाज): ₹505.72
- बलांगीर (रॉयल सिनेमाज): ₹470.44
- सिवगंगा (याज़िनी सिनेमाज 4के डॉल्बी एटमोस): ₹349.20
भारतीय शहरों को विभिन्न टियरों में विभाजित करने पर एक निष्कर्ष स्पष्ट होता है: टियर 1 शहरों में फिल्म देखने की लागत अधिक है, इसके बाद टियर 2 और फिर टियर 3 शहर आते हैं, जिनकी लागत टियर 1 की तुलना में लगभग पांच गुना कम है। इसके कई स्पष्ट कारण हैं जैसे कि स्थान, सिनेमा मालिकों के लिए महँगा किराया, और शहरों की सामान्य महंगाई।
एक आम धारणा यह है कि टियर 1 शहरों के निवासी अमीर होते हैं। हालांकि, यह धारणा हमेशा सत्य नहीं होती। इन शहरों में बहुत से दर्शक ऐसे होते हैं जो टियर 2, 3, 4, या 5 शहरों और कस्बों से आए हुए युवा लोग होते हैं। ये युवा अक्सर इंटर्न के रूप में काम करते हैं, या अपनी पहली या दूसरी नौकरी में होते हैं। इनकी आय इतनी नहीं होती कि वे अक्सर महंगी फिल्में देख सकें। इसलिए, यह कहना कि टियर 1 शहरों के निवासी अमीर होते हैं, एक अधूरी सच्चाई है।
शहर की समृद्धि और उसके निवासियों की व्यक्तिगत आय के बीच का यह अंतर महत्वपूर्ण है। यह दिखाता है कि भले ही एक शहर आर्थिक रूप से समृद्ध हो, लेकिन उसके सभी निवासी आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होते। इसका प्रभाव उनके मनोरंजन के विकल्पों पर पड़ता है। जहां एक तरफ अमीर वर्ग बिना किसी चिंता के महंगी फिल्मों(Movies) का आनंद ले सकता है, वहीं आम आदमी के लिए यह एक बड़ा खर्च बन जाता है।
सुधार के लिए मेरा सुझाव यह है कि सिनेमा मालिकों को अपने दर्शकों की आर्थिक स्थिति का और अधिक ध्यान रखना चाहिए। वे विशेष प्रस्तावों, छूट और सस्ते टिकट विकल्प प्रारम्भ कर सकते हैं, खासकर उन युवा दर्शकों के लिए जो अपनी पहली या दूसरी नौकरी में हैं या इंटर्नशिप कर रहे हैं।
अंत में, यह महत्वपूर्ण है कि सिनेमा मालिक अपने दर्शकों से निरंतर संवाद बनाए रखें और उनकी प्रतिक्रियाओं को सुनें। उनके सुझावों और प्रतिक्रियाओं को ध्यान में रखकर, सिनेमा हॉल अपनी सेवाओं को बेहतर बना सकते हैं और एक स्थायी व्यवसाय मॉडल की ओर बढ़ सकते हैं। इस तरह के सुधार न केवल दर्शकों को खुश रखेंगे बल्कि सिनेमा उद्योग को भी एक नया आयाम देंगे।