संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी का एलन मस्क ने किया सर्मथन

एलन मस्क, संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद, संयुक्‍त राष्‍ट्र

संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद की स्‍थायी सदस्‍यता की भारत की दावेदारी को अब दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्‍क का साथ मिल गया है। टेस्‍ला और स्‍पेसएक्‍स कंपनी के मालिक मस्‍क ने कहा कि कुछ बिंदुओं पर दुनिया की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र में बदलाव करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद् में सबसे बड़ी आबादी वाला देश होने के नाते भारत को स्थायी जगह मिलनी ही चाहिए। ऐसा नहीं किया जाना बेतुका है।

दरअसल, अफ्रीका को संयुक्‍त राष्‍ट्र की स्‍थायी सदस्‍यता देने की मांग को लेकर संयुक्‍त राष्‍ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटरेस के ट्वीट पर एक अमेरिकी-इजरायली बिजनसमैन माइकल आइजेनबर्ग ने सवाल किया, उन्होंने कहा कि “भारत के बारे में क्या कहेंगे?’ उन्होंने कहा कि अच्छा यह होगा कि मौजूदा यूएन को भंग कर दिया जाए और नए असली नेतृत्व के साथ यह फिर अस्तित्व में आए”। इसी का जवाब देते हुए एलन मस्‍क ने भी यह बड़ा बयान दिया। मस्क ने कहा कि हमें संयुक्‍त राष्‍ट्र के निकायों में समीक्षा की जरूरत है।

एलन मस्क का ट्वीट 

एलन मस्क ने ट्वीट कर कहा कि कुछ बिंदु पर, संयुक्त राष्ट्र निकायों के संशोधन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद, सुरक्षा परिषद में भारत के लिए स्थायी सीट नहीं होना बेतुका है। उन्होंने लिखा कि अफ्रीका के लिए भी सामूहिक रूप से एक सीट होनी चाहिए। सयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद् में फिलहाल पांच देश ही स्थायी सदस्यों के रूप में शामिल हैं।

एलन मस्‍क का यह समर्थन ऐसे समय पर आया है जब हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में स्‍थायी सदस्‍यता को लेकर बड़ा बयान दिया था। जयशंकर ने कहा था, ‘दुनिया कोई भी चीज आसानी से नहीं देती है, कभी कभी लेना भी पड़ता है।’

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद क्या है

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है और इस पर अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में शांति स्थापना अभियान स्थापित करना, अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लागू करना और सैन्य कार्रवाई को अधिकृत करना शामिल है। यूएनएससी एकमात्र संयुक्त राष्ट्र निकाय है जिसके पास सदस्य देशों पर बाध्यकारी प्रस्ताव जारी करने का अधिकार है। सुरक्षा परिषद में पंद्रह सदस्य होते हैं, जिनमें से पांच स्थायी और 10 अस्थायी होते हैं। 

कौन से देश UNSC के स्थायी सदस्य हैं?

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य पांच देश हैं, जिन्हें 1945 का संयुक्त राष्ट्र चार्टर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट प्रदान करता है। चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका यूएनएससी के स्थायी सदस्य हैं। 

स्थायी सदस्य द्वितीय विश्व युद्ध में सभी सहयोगी थे और उस युद्ध के विजेता भी। ये सबसे पहले और सबसे अधिक परमाणु हथियारों वाले पांच देश भी हैं। पांच स्थायी सदस्यों के पास सबसे महत्वपूर्ण शक्ति वीटो शक्ति है। 

इसका मतलब यह है कि यदि इनमें से कोई भी देश किसी प्रस्ताव पर वीटो करता है, तो इसे पारित नहीं किया जा सकता है, भले ही उसके पास आवश्यक 9 वोट हों। हालांकि UNSC 75 वर्षों से अधिक समय से अस्तित्व में है, लेकिन यह 21वीं सदी की भू-राजनीतिक और आर्थिक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।

भारत UNSC में स्थायी सदस्यता क्यों चाहता है?

भारत कई बार UNSC का अस्थायी सदस्य रहा है, लेकिन उसे स्थायी सदस्यता नहीं दी गई है। भारत का मानना है कि वह अपनी अर्थव्यवस्था के आकार (पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था), जनसंख्या (दुनिया में पहला) और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इस आधार पर वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी स्थान का हकदार है। इसके अलावा, यूएनएससी में एक स्थायी सीट इसके वैश्विक भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक दबदबे का विस्तार करने के लिए बहुत आवश्यक लाभ प्रदान करेगी।

भारत को UNSC की स्थाई सदस्यता क्यों नहीं मिली?

संयुक्‍त राष्‍ट्र में भारत की दावेदारी में सबसे बड़ी बाधा चीन बना हुआ है। चीन को डर सता रहा है कि भारत अगर स्‍थायी सदस्‍यता हासिल करता है तो एशिया में उसका प्रभाव कम हो जाएगा। यही वजह है कि वह दुनिया की इस सबसे प्रभावी संस्‍था से भारत को बाहर रखने के लिए तमाम चालें चल रहा है। यही नहीं चीन अपने प्‍यादे पाकिस्‍तान के रास्‍ते भारत के खिलाफ अभियान चलवा रहा है। यही वजह है कि कई वर्षों की मांग के बाद भी संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग पूरी नहीं हो पा रही है। पाकिस्‍तान जहां भारत का विरोध कर रहा है, वहीं जापान और जर्मनी का भी विरोध किया जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सदस्यता का मामला बहुत लंबे समय से चला आ रहा है. संयुक्त राष्ट्र संघ में आखिरी जो सुधार हुए थे, वह 1963 में हुए. वह भी अस्थायी सदस्यता को लेकर किए गए थे। पहले पांच स्थायी सदस्य (वीटो पावर के साथ) और छह अस्थायी सदस्य (बिना वीटो पावर के) होते थे, यानी कुल 11 सदस्य। इनकी संख्या को ही बढ़ाकर 15 किया गया।

उसके बाद से ही लगातार भारत, जापान और ब्राजील जैसे देश इसमें रिफॉर्म अर्थात सुधार की बात कर रहे हैं, जिसके तहत भारत की स्थायी सदस्यता की भी बात होती है। जहां तक इसकी प्रक्रिया की बात है, तो संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली ही यह कॉल ले सकती है, कि इसमें सुधार किया जाए और उसके दो-तिहाई बहुमत के साथ ही यह संभव हो सकता है। साथ ही, वीटो पावर वाले जितने भी सदस्य हैं, यानी अमेरिकी, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस के साथ चीन, इन पांचों देशों को भी राजी होना पड़ेगा। आज की तारीख में चीन को छोड़कर बाकी चारों देश इस बात पर राजी हैं। चीन ही भारत का सबसे बड़ा और मजबूत प्रतिद्वंद्वी है, वह नहीं चाहता कि भारत वीटो पावर के साथ आए।

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