भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के नेतृत्व में पार्टी के प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार 20 फरवरी को ‘एक देश-एक चुनाव’ पर गठित पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता वाली समिति को अपने सुझाव सौंपे और लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकायों में एक साथ चुनाव कराने की पैरवी की। पार्टी ने सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची बनाने का भी आह्वान किया।
भारतीय जनता पार्टी द्वारा समिति को यह सुझाव प्रदान करना न केवल भारतीय राजनीतिक चिंतन में एक महत्वपूर्ण कदम है बल्कि यह एक ऐसे परिवर्तन की दिशा में एक सार्थक पहल भी है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय संसाधनों का अधिक कुशलता से उपयोग करना और गवर्नेंस में सुधार लाना है।
भाजपा द्वारा प्रस्तुत सुझाव जिनमें लोकसभा, विधानसभाओं, और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने की पैरवी की गई है, विशेष रूप से उन प्रशासनिक चुनौतियों और वित्तीय बोझों को कम करने के लिए एक प्रयास है जो बार-बार चुनावों के कारण उत्पन्न होती हैं। यह विचार न केवल प्रशासनिक कार्यों में निरंतरता सुनिश्चित करने का एक माध्यम है बल्कि यह आदर्श आचार संहिता के लागू होने के कारण विकासात्मक और जनकल्याणकारी कार्यों में आने वाली बाधाओं को भी कम करेगा।
अक्सर एक राज्य में तीन बार चुनाव होने से आर्थिक गतिविधियां ठप हो जाती हैं और राजनीतिक दलों व सरकारों पर वित्तीय बोझ बढ़ जाता है। इससे भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिलता है। अलग-अलग चुनाव होने की स्थिति में आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा में तैनात सुरक्षा बलों को भी बार-बार चुनाव ड्यूटी में लगाना पड़ता है। शिक्षक एवं स्वास्थ्य कर्मियों जैसे अन्य कर्मचारी भी चुनाव कार्यों में लगाए जाते हैं।
एक देश एक चुनाव लागू होने से न केवल शासन की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता को बल मिलेगा, बल्कि यह चुनावी प्रक्रिया को अधिक कुशल बनाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
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जेपी नड्डा ने दी जानकारी
समिति से मुलाकात के बाद पत्रकारों से बातचीत में नड्डा ने बताया कि उन्होंने प्रस्ताव किया है कि अगर तीनों चुनाव तत्काल एक साथ कराना संभव न हो तो पहले लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं। लेकिन दीर्घकाल में स्थानीय निकायों के चुनाव भी लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव के साथ कराए जाने चाहिए अन्यथा बार-बार लागू होने वाली आदर्श आचार संहिता की वजह से इसका मकसद विफल हो जाएगा।
नड्डा ने कहा कि समिति को एक साथ चुनाव कराने के लिए आम सहमति बनानी चाहिए, साथ ही विश्वास जताया कि इस पर सभी लोग एक साथ आगे बढ़ेंगे।
विपक्ष और भाजपा आमने-सामने
भारतीय राजनीति में ‘एक देश-एक चुनाव’ की अवधारणा ने एक नई विवादास्पद चर्चा का जन्म दे दिया है। जहां एक ओर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस पहल को एक क्रांतिकारी सुधार के रूप में प्रस्तुत कर रही है, वहीं प्रमुख विपक्षी दल जैसे कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) इसे भारतीय संघीय ढांचे के लिए खतरा मान रहे हैं।
विपक्ष के आरोपों का मूल यह है कि ‘एक देश-एक चुनाव’ की प्रक्रिया से भारत की विविधता और संघीय विशेषताओं को नुकसान पहुंचेगा। उनका मानना है कि इससे केंद्रीय सत्ता का विस्तार होगा, जो राज्यों की स्वायत्तता और उनके अधिकारों को सीमित करेगा। इसके अलावा, विपक्षी दलों का यह भी कहना है कि एक साथ चुनाव कराने से राजनीतिक और आर्थिक असमानताएं और बढ़ेंगी, जिससे छोटे और क्षेत्रीय दलों के लिए सत्ता में आना कठिन हो जाएगा।
वहीं, भाजपा की दलील है कि एक साथ चुनाव कराने से सरकारी मशीनरी पर बोझ कम होगा, चुनावी खर्च में कमी आएगी, और सरकारी कामकाज में निरंतरता और दक्षता बढ़ेगी। उनके अनुसार, यह प्रक्रिया राजनीतिक स्थिरता को भी बढ़ावा देगी, जो विकास के लिए अनिवार्य है।
इस गहन विवाद में, यह महत्वपूर्ण है कि एक समावेशी चर्चा हो, जिसमें सभी पक्षों की चिंताओं और उनके प्रस्तावों को गंभीरता से सुना और विचार किया जाए। यह चर्चा न केवल भारत के राजनीतिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और संवेदनशीलता का भी परीक्षण है। अंततः, किसी भी निर्णय को लेने से पहले यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वह देश के संविधान और इसकी जनता के हितों के अनुरूप हो।