‘यूबी एरिया’ में चीन के खिलाफ मजबूत मोर्चे की तैयारी में भारतीय सेना

भारतीय सेना द्वारा यूबी एरिया में उठाए गए ये कदम न केवल भौगोलिक और सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ये राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति भारत की दृढ़ता और संकल्प को भी प्रदर्शित करते हैं।

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भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव का स्थिति वर्षों से चिंताजनक रही है। इस तनावपूर्ण स्थिति के बीच भारतीय सेना ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में 545 किमी तक फैले अपने केंद्रीय क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत करने की योजना बनाई है जो एक महत्वपूर्ण और सामयिक कदम है। 

यह निर्णय न केवल भारतीय सुरक्षा तंत्र की दूरदर्शिता को दर्शाता है बल्कि चीन के साथ बढ़ती तनातनी के मद्देनजर एक अधिक सतर्क और तैयार रुख अपनाने की ओर भी इशारा कर रहा है। वर्तमान में, भारत-चीन सीमा पर सबसे कम विवादित माने जाने वाले इस क्षेत्र में सैन्य मजबूती बढ़ाने का निर्णय भारतीय सेना की रणनीतिक योजनाबद्धता को दर्शा रहा है।

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अतिरित्क सैनिकों की होगी तैनाती

लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुडा (सेवानिवृत्त) का कहना है कि “यूबी एरिया को कोर मुख्यालय में परिवर्तित करना एक अच्छा कदम है और सीमा पर बढ़ते विवादों और तनाव के प्रति एक सजग प्रतिक्रिया को दर्शाता है। इससे न केवल चीन के साथ सीमा पर अस्थिरता का मुकाबला करने में मदद मिलेगी, बल्कि भारत की सीमा सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा में भी यह एक मजबूत कदम साबित होगा।

इस प्रकार, भारतीय सेना द्वारा उठाए गए ये कदम न केवल तात्कालिक संघर्षों का सामना करने के लिए हैं बल्कि भविष्य में संभावित चुनौतियों के लिए एक दीर्घकालिक रणनीतिक तैयारी का भी हिस्सा हैं। यह स्पष्ट दर्शाता है कि भारतीय सेना न केवल वर्तमान की चुनौतियों के प्रति सजग है बल्कि भविष्य की अनिश्चितताओं के प्रति भी पूरी तरह से तैयार है।

भारतीय सेना का हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ चीन के विरुद्ध अपनी स्थिति मजबूत करने का निर्णय, एक गहन रणनीतिक परिवर्तन का संकेत देता है। यह कदम न केवल भारतीय सीमा की सुरक्षा को और अधिक सुदृढ़ बनाएगा, बल्कि भारत-चीन संबंधों की वर्तमान जटिलताओं के मध्य एक सशक्त संदेश भी प्रेषित करेगा।

लद्दाख में चार वर्षों से जारी सैन्य गतिरोध के चलते, भारत द्वारा अपने केंद्रीय क्षेत्र में सैन्य ध्यान केंद्रित करना एक विचारणीय रणनीतिक परिवर्तन है। इससे यह संकेत मिलता है कि भारत न केवल वर्तमान संकट के समाधान की दिशा में प्रयासरत है, बल्कि भविष्य में संभावित चुनौतियों के लिए भी सजग है।

यूबी एरिया का कोर मुख्यालय में परिवर्तन इस क्षेत्र की सामरिक महत्वता को भी रेखांकित करता है। विशेष रूप से, जब इस क्षेत्र को चीन के साथ विवादित सीमा का सबसे कम विवादित क्षेत्र माना जाता है, तब भी यहां सैन्य तैयारियों में वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि भारत किसी भी संभावित अग्रिम के लिए सजग और तैयार है।

स्वतंत्र ब्रिगेडों की संख्या में वृद्धि और 14 इन्फैंट्री डिवीजन का नए कोर मुख्यालय के तहत समावेशन, सेना की तैनाती और युद्ध क्षमता में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी को दर्शाता है। इससे भारतीय सेना की तैनाती की गतिशीलता और लचीलापन में वृद्धि होगी, जो विविध और अप्रत्याशित चुनौतियों के खिलाफ एक ठोस सुरक्षा ढांचा प्रदान करेगी।

3 सेक्टरों में बंटा हुआ है एलएसी

भारत और चीन के बीच लगभग 3,488 किलोमीटर लंबी एलएसी (Line of Actual Control) को तीन सेक्टरों में विभाजित किया गया है, जिसमें पश्चिमी (लद्दाख) और पूर्वी (सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश) शामिल हैं, जिनमें से पहला सेक्टर वह क्षेत्र बनकर उभरा है जहां भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच टकराव की संभावना सबसे अधिक है, उसके बाद दूसरे सेक्टर आते हैं। जबकि पूर्वी लद्दाख चीन के साथ मौजूदा सीमा तनाव का केंद्र रहा है, भारतीय सेना एलएसी पर पूरी तरह से तैयार है। लद्दाख सीमा विवाद भड़कने के बाद पूर्व में आमने-सामने की खबरें भी आई हैं।

2023 में, भारतीय और चीनी सेना के वरिष्ठ कमांडरों ने पूर्वी लद्दाख में तनाव को कम करने के लिए 20वें दौर की वार्ता की। इसके बावजूद, तत्काल सफलता नहीं मिली।

गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो, गोगरा (पीपी-17ए) और हॉट स्प्रिंग्स (पीपी-15) से चार दौर की वापसी के बावजूद, भारतीय और चीनी सेनाओं के पास अभी भी लद्दाख क्षेत्र में हजारों सैनिक और उन्नत हथियार तैनात हैं।

जनवरी में, सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने कहा कि लद्दाख सेक्टर में एलएसी पर स्थिति “स्थिर है, लेकिन फिर भी संवेदनशील” थी। उन्होंने कहा कि सेना की परिचालन तैयारी उच्च थी, और इसकी तैनाती “मजबूत और संतुलित” थी, उन्होंने कहा कि एलएसी पर लंबित मुद्दों को हल करने के लिए सैन्य और राजनयिक स्तर पर बातचीत जारी थी।

इस प्रकार, भारतीय सेना द्वारा यूबी एरिया में उठाए गए ये कदम न केवल भौगोलिक और सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ये राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति भारत की दृढ़ता और संकल्प को भी प्रदर्शित करते हैं। ये कदम आने वाले समय में भारत-चीन सीमा पर स्थिति को प्रभावित करने वाले होंगे, और संभवतः, दोनों देशों के मध्य संवाद और तनाव कम करने के प्रयासों को एक नई दिशा प्रदान करेंगे।

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