MSP गारंटी कानून का अर्थव्यवस्था पर क्या पड़ेगा असर?

अगर MSP गारंटी कानून लाया जाता है, तो सरकार को कम से कम सालाना 10 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्यय उठाना पड़ेगा।

MSP, किसान आंदोलन

केंद्र सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP पर फसलों की खरीद की गारंटी के लिए कानून बनाने की मांग को लेकर हजारों तथाकथित किसान दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। सरकार ने इन्हें रोकने के लिए कई जगह बैरिकेडिंग की हुई है और फिलहाल दिल्ली से सटे राज्यों के बॉडर पर सुरक्षा बलों और किसानों के बीच हिंसक संघर्ष चल रहा है। 

इससे पहले सोमवार रात को किसानों और केंद्र सरकार के बीच लंबा मंथन चला, लेकिन बात नहीं बन पाई। इस बीच सवाल यह भी उठ रहा है कि MSP की मांग सरकार लागू क्यों नहीं कर देती? दरअसल यह इतना भी आसान नहीं है। यदि इसे लागू किया गया तो अर्थव्यवस्था और महंगाई दोनों मोर्चों पर इसका गंभीर असर हो सकता है। यही वजह है कि किसानों की तमाम मांगों पर सहमति जताने के बाद भी सरकार MSP को लेकर हिम्मत नहीं जुटा रही है। 

क्या है MSP

न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी किसानों को दी जाने वाले एक गारंटी की तरह होती है, जिसमें तय किया जाता है कि बाजार में किसानों की फसल किस दाम पर बिकेगी। दरअसल, फसल की बुआई के दौरान ही फसलों की कीमत तय कर दी जाती है और यह तय कीमत से कम में बाजारों में नहीं बिकती है। एमएसपी तय होने के बाद बाजार में फसलों की कीमत गिरने के बाद भी सरकार किसानों को तय कीमत पर ही फसलें खरीदती है। सरल शब्दों में कहें, तो एमएसपी का उद्देश्य फसल की कीमत में उतार-चढ़ाव के बीच किसानों को नुकसान से बचाना है।

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किन फसलों पर लगता है MSP?

कृषि मंत्रालय खरीफ, रबी सीजन समेत अन्य सीजन की फसलों के साथ ही कमर्शियल फसलों पर एमएसपी लागू करता है। वर्तमान में देश के किसानों से खरीदी जाने वाली 23 फसलों पर एमएसपी लागू की गई है। इन 23 फसलों में से 7 अनाज ज्वार, बाजरा, धान, मक्का, गेहूं, जौ और रागी होती हैं। 5 दालें, मूंग, अरहर, चना, उड़द और मसूर होती है।

इसके अलावा, 7 तिलहन, सोयाबीन, कुसुम, मूंगफली, तोरिया-सरसों, तिल, सूरजमुखी, और नाइजर बीज होती है और 4 कमर्शियल फसलें, कपास, खोपरा, गन्ना और कच्चा जूट होता है।

कौन तय करता है फसलों की MSP?

केंद्र सरकार फसलों पर एमएसपी दर लागू करती है और राज्य सरकारों के पास भी एमएसपी लागू करने का अधिकार है। केंद्र सरकार ने किसानों की फसलों को उचित कीमत दिए जाने के उद्देश्य से साल 1965 में कृषि लागत और मूल्य आयोग यानी CACP का गठन किया था। यह हर साल रबी और खरीफ फसलों के लिए MSP तय करती है।

पहली बार 1966-67 में एमएसपी दर लागू की गई थी। CACP के द्वारा की जाने वाली सिफारिशों के आधार पर ही सरकार हर साल 23 फसलों के लिए एमएसपी का ऐलान करती है।

कैसे तय होता है MSP?

जब भी CACP न्यूनतम समर्थन मूल्य की अनुशंसा करता है, तो वह कुछ बातों को ध्यान में रखकर ही इसे तय करता है। संस्था इन बिंदुओं पर ध्यान देती है कि फसल के लिए उत्पाद की लागत क्या है, इनपुट मूल्यों में कितना परिवर्तन आया है, बाजार में मौजूदा कीमतों का क्या रुख है, मांग और आपूर्ति की स्थिति क्या है, अंतरराष्ट्रीय मूल्य स्थिति क्या है।

इसके अलावा, सीएसीपी स्थान,‍ जिले और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्थितियों का जायजा लेने के बाद ही फसलों पर एमएसपी तय करती है। हालांकि, देश में एमएसपी को लेकर कोई कानून नहीं है। सरकार चाहें तो किसानों को एमएसपी दे सकती या नहीं भी देगी, तो यह उनका फैसला होता है।

किसानों के सभी उत्पादों के लिए MSP पर खरीद की कानूनी गारंटी देना कितना महंगा होगा, यह समझने के लिए कुछ आंकड़ों पर नजर डाल सकते हैं। पहला, वित्त वर्ष 2020 के आधार पर समस्त कृषि उपज का कुल मूल्य 40 लाख करोड़ रुपयेहै। इसमें डेयरी, खेती, बागवानी, पशुधन और एमएसपी फसलों के सभी उत्पाद शामिल हैं। दूसरा, वित्त वर्ष 2020 के आधार पर ही एमएसपी वाली

फसलों की उपज का कुल बाजार मूल्य 10 लाख करोड़ रुपये है। यदि एमएसपी वाली फसलों की ही MSP पर खरीद की कानूनी गारंटी सरकार दे तो यह बहुत ज्यादा है। फिलहाल देश में 24 फसलों पर एमएसपी लागू है। इनमें से 7 अनाज ज्वार, बाजरा, धान, मक्का, गेहूं, जौ और रागी हैं, जबकि 5 दालें, मूंग, अरहर, चना, उड़द और मसूर भी शामिल है। 

बीते कुछ सालो में देश में इस बात को इतना दोहराया गया है कि लगता है कि किसानों की फसलों को MSP पर खरीदना खेती की व्यवस्था का अनिवार्य अंग है। ऐसा कहा जाता है कि इसके बिना किसानों को लाभ हो ही नहीं सकता। हालांकि, यह सच्चाई से बहुत दूर है। 

10 लाख करोड़ का भार

वित्त वर्ष 2020 के लिए, कुल एमएसपी खरीद 2.5 लाख करोड़ रुपए, यानी कुल कृषि उपज का 6.25 फीसदी और एमएसपी के तहत उपज का लगभग 25 फीसदी है। अगर एमएसपी गारंटी कानून लाया जाता है, तो सरकार पर कम से कम हर साल 10 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा। 

खास बात तो ये है कि यह रकम सरकार के उस कैपिटल एक्सपेंडिचर के बराबर है, जो कि देश के इंफ्रा पर खर्च होना है। हैरानी की बात तो ये है कि बीते 7 साल में सरकार ने औसतन 10 लाख करोड़ रुपए हर साल इंफ्रा पर भी खर्च नहीं किया है। 

साल 2016 से 2013 के बीच इंफ्रा पर कुल खर्च 67 लाख करोड रुपए है। इसका मतलब साफ है कि यूनिवर्सल एमएसपी डिमांड का कोई इकोनॉमिक और फिस्कल मतलब नहीं है। यह सरकार के खिलाफ एक राजनीति से प्रेरित तर्क है।

कहां से आएंगे 10 लाख करोड़?

अगर किसानों का तर्क मान भी लिया जाए और इस बात पर भी सहमति हो जाए कि सरकार पूरा पैसा वहन करेगी, लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि ये 10 लाख करोड़ रुपए आएगा कहां से? क्या देश इंफ्रा और डिफेंस से सरकारी खर्च को कम करने के पक्ष में होगा? क्या डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स को बढ़ाने के पक्ष में कोई है या होगा? ऐसे में समस्या कृषि या आर्थिक नहीं है। 

पूरा मामला राजनति से प्रेरित है. जिसे 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले उठाने का प्रयास किया जा रहा है। ताकि इन चुनावों को किसी तरीके से प्रभावित किया जा सके। सालाना 10 लाख करोड़ रुपए का बजट देश की इकोनॉमिक रफ्तार को पटरी से उतार सकता है। जो मौजूदा समय में दुनिया के किसी बड़े देश के मुकाबले सबसे तेज है।

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