नेपाल में आज 19 फरवरी को प्रजातंत्र दिवस, जिसे लोकतंत्र दिवस के रूप में भी जाना जाता है, वह मनाया जा रहा है। साथ ही नेपाली कांग्रेस महासमिति दिवस का भी आयोजन किया जा रहा है। इस ऐतिहासिक दिवस के मौके पर, नेपाली कांग्रेस के लगभग 22 सदस्य नेपाल में एक बार फिर हिंदू राष्ट्र की बहाली के विचार पर मंथन कर रहे हैं, जो कि एक महत्वपूर्ण विषय है।
हिंदू राष्ट्र की बहाली के लिए प्रस्ताव
इस प्रस्ताव को लेकर पार्टी के अन्य सदस्यों में विरोध के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं, जो इसे अपने एजेंडे में शामिल करने के पक्ष में नहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, महासमिति दिवस की बैठक ललितपुर के गोदावरी में आयोजित की जाएगी, जहां हिंदू राष्ट्र की बहाली के प्रस्ताव को 22 सदस्यों द्वारा पेश किया गया और एक याचिका पर हस्ताक्षर किए गए हैं। हालांकि, नेपाली कांग्रेस की केंद्रीय कार्य समिति ने इस प्रस्ताव को अभी तक स्वीकार नहीं किया है।
इस पृष्ठभूमि में, नेपाली कांग्रेस के सामने एक द्विध्रुवीय स्थिति उत्पन्न हो गई है, जहां एक ओर लोकतंत्र की मजबूती और प्रगतिशीलता के प्रतीक के रूप में लोकतंत्र दिवस का उत्सव है, तो वहीं दूसरी ओर हिंदू राष्ट्र की बहाली की मांग एक पारंपरिक और धार्मिक दृष्टिकोण से जुड़ी हुई है। इस विषय पर नेपाली कांग्रेस के भीतर और समाज में व्यापक बहस की उम्मीद है, जो नेपाल के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाल सकती है।
नेपाल की हिंदू जनता की मांग
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिन्दू राष्ट्र की मांग को नेपाल की बड़ी जनसंख्या के हिंदू होने के तथ्य से बल मिलता है, जो कि लगभग 81 प्रतिशत है। इसके अलावा, नेपाल के प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक ने हाल ही में संपन्न बसंत पंचमी समारोह समेत विभिन्न हिंदू अनुष्ठानों में भाग लिया है, जिससे इस मांग को और भी ज्यादा धार मिली है।
सूत्रों के अनुसार, सोमवार 19 फरवरी को हिंदू राष्ट्र की बहाली का समर्थन करने वाले सदस्य इस विषय पर चर्चा करने के लिए एकत्र होंगे और इसे ‘वैदिक सनातन हिंदू राष्ट्र’ के रूप में पुनः स्थापित करने की बात करेंगे। इस पहल का नेतृत्व नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा द्वारा किया जा सकता है।
यह घटनाक्रम नेपाल में धार्मिक और राजनीतिक पहचान के सवालों को फिर से उठा रहा है। एक ओर, यह हिंदू बहुल जनसंख्या की आस्था और धार्मिक पहचान को महत्व देने की कोशिश करता है, जबकि दूसरी ओर, यह नेपाल के बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक समाज में समन्वय और सहिष्णुता की चुनौतियों को भी प्रस्तुत करता है।
इस मांग की सफलता या असफलता नेपाल के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाल सकती है, और यह देश के भविष्य के मार्ग को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
नेपाल का इतिहास
नेपाल का राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य, विशेष रूप से 28 मई 2008 को गणतंत्र बनने के बाद से, गहन परिवर्तनों का साक्षी रहा है। इस दिन नेपाल की संविधान सभा की पहली मीटिंग के साथ ही शाह राजाओं की 240 साल पुरानी राजशाही का अंत हुआ था। धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में, नेपाल ने अपनी विविधतापूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक पहचानों को गले लगाया है, फिर भी नेपाल की पहचान एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में ही रही है।
वर्तमान सरकार चहाती है हिंदू राष्ट्र
वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व, जिसमें प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल और राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल शामिल हैं, हिंदू राष्ट्र के विषय पर बहस की संभावना के प्रति उत्सुकता दिखा रहे हैं। यह उत्सुकता नेपाल में राजनीतिक दलों के बीच एक सामान्य सहमति को दर्शाती है, जो कि नवंबर 2023 में हुए प्रदर्शनों और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के प्रति बढ़ते जन समर्थन के मद्देनजर और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
काठमांडू पोस्ट में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, जनता का रुझान पूर्व राजा की ओर बढ़ रहा है, जो कि नेपाली राजनीति में एक नई दिशा का संकेत दे रहा है। इसके परिणामस्वरूप, कई राजनीतिक दल अब हिंदू राष्ट्र की बहाली का समर्थन कर रहे हैं, जिससे उन्हें चुनावों में वोटों का लाभ मिल सकता है।
हालांकि, कानून के मुताबिक महासमिति की मीटिंग हर साल बुलाई जानी चाहिए, लेकिन विभिन्न कारणों से दिसंबर 2021 के 14वें आम सम्मेलन के बाद से इसे स्थगित किया गया है। इस विलंब से नेपाली राजनीति में अनिश्चितता और चर्चा की स्थिति बनी हुई है, जिसमें हिंदू राष्ट्र की बहाली के प्रस्ताव पर गहरी बहस और विचार-विमर्श की आवश्यकता है। यह बहस नेपाल की धार्मिक और राजनीतिक पहचान के भविष्य के मार्ग को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।