जम्मू-कश्मीर से अब इस कानून को हटाने पर हो रहा विचार।

सरकार जम्मू-कश्मीर में लागू सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम यानी की अफस्पा/AFSPA को हटाने पर विचार कर रही है।

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क्या आप जानते हैं कि AFSPA क्या है, जिसे जम्मू-कश्मीर से हटाने के बारे में केंद्र सरकार विचार कर रही है। इस कानून का इतिहास क्या है और स्वतंत्र भारत में इसे पहली बार कब और कहां लागू किया गया था? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को कहा कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर से सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (अफस्पा) को वापस लेने पर विचार करेगी।

क्या है AFSPA- सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम? 

AFSPA एक कानून है, जिसके तहत सशस्त्र बलों और “अशांत क्षेत्रों” में तैनात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को कानून का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को मारने या बिना वारंट के किसी भी परिसर की तलाशी लेने एक अभियोजन और कानूनी मुकदमों से सुरक्षा के साथ निरंकुश अधिकार देता है। 

AFSPA- सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम का इतिहास 

वर्ष 1947 में चार अध्यादेश जारि किए गए थे, जिसके माध्यम से AFSPA का पुनर्गठन किया गया था। इस कानून को ब्रिटिश-काल में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिये बनाया गया था। जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में प्रभावी वर्तमान कानून AFSPA को वर्ष 1958 में देश के तत्कालीन गृह मंत्री जीबी पंत ने संसद में पेश किया था। इस कानून को शुरू में सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष अधिकार अधिनियम, 1958 के रूप में जाना जाता था। 

वर्ष 1972 में इस अधिनियम को संशोधित किया गया और इस संशोधन में किसी क्षेत्र को “अशांत” घोषित करने की शक्तियां राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी प्रदान की गई थीं। वर्तमान में AFSPA पू्र्वोत्तर के कुछ हिस्सों और जम्मू-कश्मीर में लागू है। 

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अमित शाह ने कहा – हम AFSPA हटाने के बारे में भी सोचेंगे 

शाह ने एक निजी मीडिया ग्रुप से इंटरव्यू में यह भी कहा कि सरकार की योजना केंद्र शासित प्रदेश में सैनिकों को वापस बुलाने और कानून व्यवस्था को अकेले जम्मू-कश्मीर पुलिस पर छोड़ने की है। उन्होंने कहा, ‘हमारी योजना सैनिकों को वापस बुलाने और कानून व्यवस्था को जम्मू-कश्मीर पुलिस के हवाले करने की है। पहले, जम्मू-कश्मीर पुलिस पर भरोसा नहीं किया जाता था, लेकिन आज वे अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं।’ 

विवादास्पद AFSPA पर गृह मंत्री ने कहा, ‘हम अफस्पा हटा ने के बारे में भी सोचेंगे।’ अफस्पा अशांत क्षेत्रों में सक्रिय सशस्त्र बलों के कर्मियों को ‘‘लोक व्यवस्था कायम’’ रखने के लिए आवश्यकता होने पर तलाशी लेने, गिरफ्तार करने और गोली चलाने की व्यापक शक्तियां देता है।

शाह ने पहले कहा था कि पूर्वोत्तर राज्यों में 70 प्रतिशत क्षेत्रों में अफस्पा हटा दिया गया है, हालांकि यह जम्मू- कश्मीर में लागू है। जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों के विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों ने अफस्पा हटा ने की मांग की है। 

सितंबर से पहले होंगे विधानसभा चुनाव

गृह मंत्री अमित शाह ने इंटरव्यू के दौरान दावा करते हुए कहा कि सितंबर महीने से पहले जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव आयोजित होंगे। शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र को स्थापित करना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वादा है और इसे पूरा किया जाएगा। शाह ने कुछ दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर में अब लोकतंत्र केवल तीन परिवारों तक सीमित नहीं रहेगा। यह लोगों का लोकतंत्र होगा।

आरक्षण पर भी बोले शाह

जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जाति (एससी),अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण पर गृह मंत्री शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के ओबीसी को पहली बार मोदी सरकार ने आरक्षण दिया है। इसके अलावा महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिया गया है। 

उन्होंने कहा कि पंचायत और शहरी स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण दिया गया। हमने एससी और एसटी के लिए जगह बनाई है। गुज्जर और बकरवालों की हिस्सेदारी कम किए बिना, पहाड़ियों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से विस्थापित लोगों को समायोजित करने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि ये लाभ जमीनी स्तर तक पहुंचे। 

मोदी सरकार के कार्यकाल में आतंकवाद घटा

अमित शाह ने कहा- 2010 में जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजी के 2564 घटनाएं हुई थीं, जो अब शून्य हो गई है। 2004 से 2014 तक आतंकवाद की 7217 घटनाएं हुई थीं। अब इसमें 70 प्रतिशत की कमी आई है। 2014 से 2023 तक ये घटनाएं घटकर 2227 हो गई हैं।

गृह मंत्री ने दावा किया 2004 से 2014 तक मौतों की कुल संख्या 2829 थीं। 2014-2023 के दौरान इनमें 68 प्रतिशत कमी आई। 2014 से 2023 तक 915 मौतें हुईं।

सिविलियंस की मौतों में भी कमी आई है। 2004 से 2014 के बीच 1770 सिविलियंस की मौतें हुईं। मोदी सरकार के कार्यकाल में 341 मौतें हुई हैं। वहीं, 2004 से 2014 तक 1060 जवानों की जानें गई थीं। 2014 से 2023 तक इसमें 46 प्रतिशत की कमी आई है। मोदी सरकार के कार्यकाल में 574 जवानों को ने अपनी जाने गवाईं।

शाह की अपील- युवा पाकिस्तानी साजिश से दूर रहें

अमित शाह ने कहा- लोगों के बिना सपोर्ट के ये बदलाव नहीं मिल सकते थे। जो लोग इस्लाम की बात करते हैं उन्हें पता होना चाहिए कि मरने वालों में 85 फीसदी हमारे मुस्लिम भाई-बहन थे। मैं यहां के युवाओं से भी कहना चाहता हूं कि उन्हें पाकिस्तान की तरफ से हो रही साजिश से दूर रहना चाहिए।

आज पाकिस्तान भुखमरी और गरीबी की मार झेल रहा है। वहां के लोग भी कश्मीर को स्वर्ग के रूप में देखते हैं। मैं सभी को बताना चाहता हूं कि अगर कोई कश्मीर को बचा सकता है तो वह प्रधानमंत्री मोदी ही हैं। मोदी सरकार शहीदों के परिजनों को नौकरी देकर सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ा रही है। आज एक भी शहीद का परिवार बिना नौकरी के नहीं है।

फारूक-महबूबा को आतंकवाद पर बोलने का अधिकार नहीं

साक्षात्कार के दौरान, शाह ने विपक्षी नेता फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पर निशाना साधा। शाह ने कहा कि दोनों नेताओं पर आतंकवाद पर बोलने का अधिकार नहीं है। जितनी फर्जी मुठभेड़ें उनके समय में हुईं हैं, इतनी कभी नहीं हुईं हैं।

पिछले पांच वर्षों में एक भी फर्जी मुठभेड़ नहीं हुई। बल्कि फर्जी मुठभेड़ों में शामिल लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। हम कश्मीर के युवाओं के साथ बातचीत करेंगे न कि उन संगठनों के साथ जिनकी जड़ें पाकिस्तान में हैं। 

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