लोकसभा चुनाव की व्यस्तता के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले सप्ताह 21-22 मार्च को दो दिवसीय भूटान दौरे पर जायेंगे। इस यात्रा को भूटान की नई सरकार के साथ संबंधों को प्रगाढ़ बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। यह यात्रा चीन के लिए भी एक संदेश होगी, जो भारत के पड़ोसी देशों में लगातार अपना वर्चस्व बढ़ाने की जुगत में है।
भूटान के पीएम की पहली विदेश यात्रा
प्रधानमंत्री मोदी की भूटान यात्रा भूटानी प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे की भारत की चल रही पांच दिवसीय यात्रा का बारीकी से अनुसरण करेगी। टोबगे गुरुवार 14 मार्च को नई दिल्ली पहुंचे, जो इस साल जनवरी में पदभार संभालने के बाद उनकी पहली विदेश यात्रा है।
पीएम मोदी ने स्वीकार किया निमंत्रण
भारत पहुंचने के तुरंत बाद पीएम टोबगे ने विदेश मंत्री एस जयशंकर और फिर प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की। टोबगे ने मोदी से मुलाकात के दौरान उन्हें भूटान आने का निमंत्रण दिया। जिसे पीएम मोदी ने तुरंत स्वीकार कर लिया। भारतीय प्रधानमंत्री के लिए दूसरे देश के प्रधानमंत्री द्वारा अपनी भारत यात्रा समाप्त करने के मात्र तीन दिन बाद पारस्परिक यात्रा करना बेहद असामान्य है।
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व्यस्त चुनावी मौसम में पीएम मोदी की हो रही यात्रा
पीएम टोबगे सोमवार 18 मार्च को भारत से उड़ान भरेंगे और मोदी की भूटान यात्रा गुरुवार 21 मार्च को शुरू होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने व्यस्त चुनावी मौसम के बीच में भूटान की यात्रा करने का फैसला किया है। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि वह भूटान को कितना महत्व देते हैं।
हालांकि विदेश मंत्रालय के अधिकारी पीएम मोदी की इस आगामी यात्रा के एजेंडे के बारे में चुप्पी साधे हुए हैं, लेकिन पता चला है कि थिम्पू में सुरक्षा और सैन्य मामलों के कुछ प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है। साथ ही अत्याधुनिक ड्रोन सहित सैन्य हार्डवेयर के अलावा, भारत रॉयल भूटान सेना के लिए क्षमता-निर्माण के उपायों और सुविधाओं में वृद्धि कर सकता है।
चीन से तनातनी के बीच अहम है यह यात्रा
दरअसल, चीन से तनातनी के दौर में भूटान भारत के लिए अहम स्थान रखता है। चीन और भारत के बीच भूटान का एक हिस्सा आता है इसलिए यह भारत के लिए बफर स्टेट का काम करता है। हाल के वर्षों में वहां चीन ने दखल बढ़ाने की कोशिश भी की है। डोकलम प्रकरण इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। पिछली सरकार के कार्यकाल में चीन और भूटान के बीच एक सीमा समझौता भी हुआ था।
चीन ने भूटान को एक समझौते की पेशकश की है, जिसमें चीन डोकलाम के बदले में, उत्तरी भूटान में जकारलुंग और पासमलुंग और अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे पूर्वी भूटान में सकतेंग पर अपना दावा छोड़ देगा।
ज्ञात हो भारत और चीन के बीच 2017 के जून और अगस्त महीने में डोकलाम पर तनावपूर्ण सैन्य गतिरोध चला था। चीन अपनी बढ़ती सलामी स्लाइसिंग रणनीति के तहत 1990 के दशक के अंत से डोकलाम में जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों पर कब्जा कर रहा था। लेकिन जून 2017 में चीन ने भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास रणनीतिक जम्फेरी रिज लाइन के लिए एक सड़क का निर्माण शुरू किया।
18 जून 2017 को चीन को सड़क निर्माण करने से रोकने के लिए भारतीय सैनिक भारी उपकरणों(बुलडोज़र्स) के साथ सिक्किम से भूटानी क्षेत्र में डोकलाम तक पार कर गए। चीन की इस हरकत को रोकने के लिए भारत ने ऑपरेशन जुनिपर चलाया। जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच एक लंबा गतिरोध पैदा हुआ जिसे अंततः उस वर्ष अगस्त के अंत में चीन के भारत की भूमि से पीछे हटने के साथ हल किया गया था।
इस परियोजना के लिए महत्वपूर्ण है यह यात्रा
वहीं, डोकलाम के अलावा, सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा जिस पर प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान चर्चा की जाएगी, वह भारत-भूटान सीमा के साथ-साथ और असम के ठीक सामने दक्षिण भूटान के गेलेफू में 1,000 वर्ग किमी के विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) के प्रस्तावित गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी में भारत की भागीदारी है।
इस परियोजना की घोषणा भूटानी राजा ने पिछले साल 17 दिसंबर को हिमालयी साम्राज्य के राष्ट्रीय दिवस पर की थी। भूटान का लक्ष्य वैश्विक निवेशकों से पर्यावरण-अनुकूल और टिकाऊ क्षेत्रों में आकर्षक निवेश करना है।
इस परियोजना की सफलता के लिए भारत की करीबी भागीदारी आवश्यक है, जिसका उद्देश्य भूटानी युवाओं को रोजगार प्रदान करना और नौकरियों की तलाश में भूटान से अन्य देशों में युवा वयस्कों के बढ़ते प्रवास को रोकना है।
भूटान चाहता है भारतीय निवेश
भूटान गेलेफू में एक बड़े अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के निर्माण और असम से गेलेफू तक सड़क और रेल संपर्क के निर्माण में भारत की मदद चाहता है। इसके अलावा, भूटान गेलेफू में भारतीय निवेश भी चाहता है, विशेष रूप से जैव-प्रौद्योगिकी, रोबोटिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी या आईटी, आतिथ्य और कुछ अन्य ‘हरित’ क्षेत्रों में।
खोला जाए आईआईटी
किंग वांगचुक और प्रधानमंत्री टोबगे चाहते हैं कि भारत भूटानी युवाओं को प्रशिक्षण देने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) की तर्ज पर तकनीकी संस्थान भी स्थापित करें। इस प्रकार, भारत गेलेफू में एक प्रमुख हितधारक बनने के लिए प्रतिबद्ध होगा, एक परियोजना जो राजा वांगचुक के दिल के करीब है। भारत की मदद से भूटान इस परियोजना को सफल बनाने के लिए उत्सुक है।
पीएम मोदी की यात्रा से काफी उत्सुक है भूटान
यह पता चला है कि भूटान लोकसभा चुनाव से पहले थिम्पू में प्रधानमंत्री मोदी की मेजबानी करने के लिए का काफि उत्सुक है, इसलिए नहीं कि केवल परियोजना के लिए भारत की प्रतिबद्धता प्राप्त की जा सके, बल्कि संभावित निवेशकों को इस प्रतिबद्धता के बारे में संकेत देने के लिए भी यात्रा का उपयोग किया जा सके।
भारत के सहयोग पर निर्भर भूटान की परियोजना
भूटान की गेलेफू परियोजना की सफलता भारत के सहयोग पर निर्भर है, और वैश्विक निवेशक भारत की प्रतिबद्धता के प्रति आश्वस्त होना चाहेंगे। भारतीय प्रधानमंत्री की भूटान यात्रा जहां वह गेलेफू के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता व्यक्त करेंगे, यह वैश्विक निवेशकों को आवश्यक संकेत भेजेगा।
तुरंत शुरू करना चाहता है भूटान यह परियोजना
भूटान गेलेफू मेगा प्रोजेक्ट पर तुरंत काम शुरू करना चाहता है। भूटान पिछले साल 23 दिसंबर को आयोजित भूमि-पूजन समारोह से आगे बढ़ने चाहता है और वह भारत में लोकसभा चुनाव खत्म होने और नई दिल्ली में अगली सरकार के गठन तक कुछ और महीनों का इंतजार नहीं करना चाहता है। इसीलिए उसने लोकसभा चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री मोदी को भूटान की यात्रा करने पर जोर दिया है।
डोकलाम पर चर्चा करने का मिलेगा मौका
इस यात्रा के लिए प्रधानमंत्री मोदी न केवल इसलिए बाध्य हुए क्योंकि गेलेफू परियोजना भारत के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इसलिए भी कि इससे मोदी को डोकलाम पर चर्चा करने, भारत-भूटान संबंधों को मजबूत करने और चीन को एक मजबूत संदेश भेजने का अवसर मिलेगा, जो भारत के लिए हितकारी होगा।
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