विदेश नीति के मोर्चे पर पिछले एक दशक में भारत की स्थिति पहले की तुलना में काफी मजबूत हुई है। जी-20 से लेकर वैश्विक मंचों पर भारत की मौजूदगी ने एक अलग ही छाप छोड़ी है। भारत ने यूरोपीय देशों के साथ ही एशिया में भी अपनी धाक जमाई है। इन सब के बीच में भारत पर दबंग होने के आरोप भी लगते रहे हैं।
क्या भारत के पड़ोसी देश उसे दबंग मानते हैं? इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में उसकी वृद्धि आदि। लेकिन इस सवाल का विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपनी तरफ से जवाब दिया। जवाब में जयशंकर ने इस तरह के सवाल उठाने वालों को आईना दिखा दिया है।
जयशंकर से यह सवाल मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जु के एक बयान का जिक्र करते हुए पूछा गया। दरअसल, भारत के साथ तनाव के बीच जनवरी 2024 में चीन के दौरे से लौटे मुइज्जु ने भारत का नाम लिए बिना कहा था- मालदीव एक छोटा और स्वतंत्र देश है। हमारे छोटे होने से आपको हमें धमकाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता।
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क्या किसी की मदद नहीं करता भारत?
एस जयशंकर ने कहा कि जब पड़ोसी देश मुसीबत में होते हैं तो दबदबा बनाने वाला बड़ा देश 4.5 अरब अमेरिकी डॉलर नहीं देता है। उन्होंने कहा कि जब कोविड महामारी चल रही थी, तब दबदबा बनाने वाले बड़े देशों ने अन्य देशों को वैक्सीन की सप्लाई नहीं की। उन्होंने कहा कि हमने भोजन की मांग, ईंधन की मांग, उर्वरक की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए अपने स्वयं के नियमों में अपवाद बना दिया क्योंकि दुनिया के किसी अन्य हिस्से में युद्ध ने उनके जीवन को जटिल बना दिया था।
पड़ोसी देशों के साथ क्या-क्या बदल गया?
जयशंकर ने कहा- नेपाल, श्रीलंका, भूटान, बांग्लादेश और मालदीव में बीते कुछ सालों में ही भारत का निवेश तेजी से बढ़ा है। आज जिस तरह का व्यापार पड़ोसी देशों के साथ हो रहा है, वह अहम है। मैं इस लिस्ट से मालदीव को अलग नहीं कर रहा हूं। मालदीव के साथ भी अच्छे व्यापारिक संबंध हैं। इस मामले में मैं भूटान का नाम नहीं भूल सकता क्योंकि दोनों देशों के बीच बेहद गहरे और मजबूत संबंध हैं। हम एक दूसरे का सम्मान भी बहुत करते हैं।
पड़ोसी देशों के साथ कनेक्टीविटी बढ़ी
जयशंकर ने पड़ोसी देशों के साथ भारत के रिश्तों का जिक्र करते हुए कहा- हमारे रिश्ते पड़ोसी देशों के साथ बेहतर हो रहे हैं। ट्रेड के लिए हम बांग्लादेश के बंदरगाहों का इस्तेमाल कर रहे हैं। श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल को ही देख लीजिए। यहां बेहतर कनेक्टीविटी के लिए रोड, रेल्वे नेटवर्क बन गया है। ये 10 साल पहले नहीं था।
पड़ोस में सिर्फ एक देश से समस्या
विदेश मंत्री ने कहा कि आज कनेक्टिविटी की बात करें तो आने जाने वाले लोगों की संख्या कम-अधिक होती है लेकिन न केवल नेपाल और बांग्लादेश के साथ बल्कि श्रीलंका के साथ वहां होने वाले व्यापार की मात्रा, निवेश आदि वास्तव में बताने के लिए एक बहुत अच्छी कहानी है। जयशंकर ने इस दौरान भूटान का भी नाम लिया। उन्होंने कहा कि मैं भूटान के नाम पर चूकना नहीं चाहता क्योंकि भूटान भारत का लगातार मजबूत भागीदार रहा है। विदेश मंत्री ने कहा कि इसलिए पड़ोस में हमारी समस्या, बहुत ईमानदारी से एक देश के संबंध में है। जयशंकर ने कहा कि कूटनीति में, आप हमेशा आशा रखते हैं कि, हां ठीक है, इसे जारी रखना चाहिए और कौन जानता है कि एक दिन भविष्य में क्या होगा।
विदेश नीति में रुचि लेने की जरूरत
जयशंकर ने कहा कि निश्चित रूप से, सभी भारतीयों को विदेश नीति में अधिक रुचि लेने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में ऐसी धारणा बहुत आम है कि विदेश नीति कुछ जटिल चीच है। इससे निपटने के लिए इसे कुछ लोगों पर छोड़ दिया जाना चाहिए जो पूरी तरह से बिना किसी औचित्य के नहीं है। औसत व्यक्ति को भी इसमें शामिल होना चाहिए, विदेश नीति पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
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