अमेरिका के बाल्टीमोर में हुए हादसे के बाद छह लोग मिसिंग हैं। इसमें जानमाल का भारी नुकसान हो सकता था लेकिन जहाज में मौजूद भारतीय सेलर्स की तत्परता से कई जानें बच गईं। जहाज के पुल पर टकराने से पहले ही भारतीय सेलर्स ने अथॉरिटीज को अलर्ट कर दिया था। इससे अधिकारियों ने पुल पर ट्रैफिक रोक दिया और बड़ा हादसा होने से टल गया।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने खुद भारतीय सेलर्स की भूमिका की तारीफ की है। उन्होंने कहा कि भारतीय सेलर्स की तत्परता से कई जानें बच गईं। इस घटना ने समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने में भारतीय सेलर्स की अहम भूमिका को हाइलाइट किया है। जानिए क्या है शिपिंग इंडस्ट्री में भारत की भूमिका।
भारत की हिस्सेदारी
दुनिया में 90 फीसदी से अधिक गुड्स ट्रेड शिपिंग के जरिए होता है। इस इंडस्ट्री में भारतीय सेलर्स की अहम भूमिका है। दुनिया के कई बड़े जहाज पूरी तरह भारतीय सेलर्स पर निर्भर हैं।
शिपिंग इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा सेलर्स देने के मामले में भारत तीसरे नंबर पर है। चीन पहले और फिलीपींस दूसरे नंबर पर है। डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ शिपिंग के मुताबिक ग्लोबल सीफेयरर्स में भारत की हिस्सेदारी करीब 10 फीसदी है।
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चार साल में 42% बढ़ोतरी
साल 2013 से 2017 तक इंडियन सेलर्स के लिए शिपबोर्ड जॉब्स में 42.3% तेजी आई। हालांकि भारत अब भी इस मामले में चीन से काफी पीछे है। दुनिया में सेलर्स की कुल संख्या में चीन का करीब 33% है। लेकिन इसमें एक बड़ा फर्क है।
चीन के अधिकांश सेलर्स अपने ही देश के जहाजों पर काम करते हैं जबकि भारत के सेलर्स देसी-विदेशी जहाजों में तैनात हैं। यानी भारतीय सेलर्स ज्यादा ग्लोबल हैं। अगर भारत ज्यादा जहाज बनाएगा और ऑपरेट करेगा तो यह स्थिति बदल सकती है।
आंकड़ों का खेल
आंकड़ों के मुताबिक 2013 में भारतीय सेलर्स की संख्या 1,08,446 थी जो 2017 में 1,54,339 पहुंच गई। 2017 में भारतीय मरीन ऑफिसर्स की संख्या 62,016 थी जबकि दूसरे सेलर्स की संख्या 82,734 थी। तबसे यह संख्या काफी बढ़ गई है।
हालिया आंकड़ों के मुताबिक भारतीय सीफेयरर्स की कुल संख्या 2,50,000 है। इनमें से 1,60,000 प्रोफेशनली सर्टिफाइड सीफेयरर्स हैं जो कार्गो शिप पर काम करते हैं। इसी तरह 90,000 क्रूज लाइनर्स में तैनात हैं।
भारतीयों की खूबी
भारत लंबे समय से इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन की वाइट लिस्ट में हैं। इस लिस्ट में ऐसे देशों को शामिल किया गया है जो STCW-95 Convention and Code का पूरी तरह पालन करते हैं। इस लिस्ट में शामिल होने वाले देशों के पास उचित लाइसेंसिंग सिस्टम्स, ट्रेनिंग सेंटर्स, फ्लैग स्टेट कंट्रोल और पोर्ट स्टेट कंट्रोल की व्यवस्था होनी चाहिए। भारत के वाइट लिस्ट में होने से दुनियाभर की शिपिंग कंपनियों में भारतीय सेलर्स की काफी डिमांड है।
क्या है भविष्य
इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि ग्लोबल शिपिंग में भारतीय सीफेयरर्स की संख्या अगले दशक में बढ़कर 20 फीसदी पहुंचने का अनुमान है। इसके लिए मुख्य रूप से चार फैक्टर जिम्मेदार हैं। भारत में अच्छे ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट हैं। देश में साक्षरता बढ़ रही है। यूरोप में सीफेयरर्स की बड़ी आबादी बूढ़ी हो रही है।
इतना ही नहीं भारतीय सेलर्स अच्छी अंग्रेजी बोल लेते हैं। देश में करीब 166 मैरीटाइम ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट हैं। लेकिन इनमें करीब 50 फीसदी अकादमिक सीटें खाली हैं। इसलिए इंडियन सीफेयरिंग पूल के विस्तार की काफी संभावनाएं हैं।
कोविड और यूक्रेन वॉर
कोरोना महामारी की शुरुआत में कार्गो शिप्स में वर्कर्स की कमी हो गई थी। इसकी वजह यह थी कि शिपिंग कंपनियां भारतीय सीफेयरर्स को हायर करने के लिए आगे नहीं आ रही थीं। ऐसे समय में इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन ने अधिकांश देशों से कहा कि वे सीफेयरर्स को अहम वर्कर्स के तौर पर डिजेगनेट करें।
भारत सरकार ने तुरंत मर्चेंट नेवी के लोगों को इस कैटगरी में डाल दिया। साथ ही यूक्रेन युद्ध ने भारतीय सीफेयरर्स की डिमांड बढ़ा दी। इस लड़ाई से पहले ग्लोबल सीफेयरर्स में रूस और यूक्रेन की हिस्सेदारी 15% थी। लेकिन लड़ाई के कारण शिपिंग कंपनियों को भारत जैसे देशों का रुख करना पड़ा।
चुनौतियां
लेकिन इसमें कई चुनौतियां भी हैं। पहली चुनौती यह है कि मर्चेंट नेवी को प्रतिभावान युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करना होगा। आजकल अधिकतर युवाओं का रुख आईटी जैसे सेक्टर्स को ओर है। दूसरी समस्या यह है कि जहाजों में ट्रेनिंग की पर्याप्त ट्रेनिंग की सुविधा नहीं है। तीसरी समस्या यह है कि इस सेक्टर में महिलाओं की संख्या काफी कम है। अगर इन चुनौतियों से पार पाया जाता है तो जल्दी ही दुनिया के हर पांच सेलर्स में से एक भारतीय होगा।
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