चाबहार के बाद अब इस देश के बंदरगाह का संचालन करेगा भारत!

भारत ने ईरान के चाबहार के बाद एक और देश के बंदरगाह पर परिचालन का नियंत्रण हासिल किया है। इस बार म्यांमार के सितवे बंदरगाह पर भारत ने अपनी उपस्थिति पक्की की है। 

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ग्लोबल ताकत के रूप में दुनिया में पहचान बना रहे भारत ने समुद्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाते हुए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। भारत ने ईरान के चाबहार के बाद एक और देश के बंदरगाह पर परिचालन का नियंत्रण हासिल किया है। इस बार म्यांमार के सितवे बंदरगाह पर भारत ने अपनी उपस्थिति पक्की की है। 

भारत के विदेश मंत्रालय ने सितवे में कलादान नदी पर स्थिति पूरे बंदरगाह के संचालन को संभालने के लिए इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईजीपीएल) के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय के पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है।

विदेश मंत्रालय की मंजूरी मिलने के बाद आईजीपीएल को कलादान नदी पर बंदरगाह संचालन का प्रबंधन मिल गया है। इसे समुद्र में अपनी उपस्थिति मजबूत करने और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाने की दिशा में एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। ईरान में चाबहार के बाद भारत का ये दूसरा विदेशी बंदरगाह अधिग्रहण है। 

चाबहार में भारत को संचालन का सीमित अधिकार ही मिला है जबकि सितवे पोर्ट पर भारत के पास सारा अधिकार होगा। आईजीपीएल के पास ही वर्तमान में ईरान के चाबहार बंदरगाह पर कंटेनर टर्मिनल के उपकरण और संचालन का काम है।

सितवे पोर्ट का महत्व

सितवे पोर्ट कलादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इस परियोजना का लक्ष्य कोलकाता के पूर्वी भारतीय बंदरगाह को समुद्र के रास्ते म्यांमार के सिटवे बंदरगाह से जोड़ना है। यह आगे सिटवे बंदरगाह को कलादान नदी जलमार्ग के माध्यम से म्यांमार के पलेतवा और फिर सड़क मार्ग के माध्यम से मिजोरम के जोरिनपुई से जोड़ेगा।

चीन की बढ़ेगी टेंशन

मिजोरम तक जोड़ने वाले इस रूट के तैयार होने के बाद भारत के लिए उत्तर पूर्व में मौजूद राज्यों तक सप्लाई पहुंचाने में आसान होगी। इस लिंक के खुलने से न केवल पूर्वोत्तर राज्यों में माल भेजने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान होगा, बल्कि कोलकाता से मिजोरम और उससे आगे तक की लागत और दूरी को भी काफी कम कर देगा। इससे भूटान और बांग्लादेश के बीच स्थित सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता भी कम हो जाएगी, जिसे चिकन नेक के नाम से जाना जाता है। जाहिर है, उत्तर पूर्व के लिए एक और रास्ता मिलने से चीन को मिर्ची लगना तय है।

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