सैम पित्रोदा, राजनीति की दुनिया में यह नाम कोई नया नहीं है। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह के सलाहकार रह चुके पित्रोदा इस समय इंडिया ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। पित्रोदा अपने काम से कम अपने बयानों के चलते ज्यादा चर्चे में रहते हैं।
एक बार फिर सैम पित्रोदा के बयान ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। चुनावी समर में सैम पित्रोदा ने अपने ताजा बयान में विरासत टैक्स की वकालत की है। उन्होंने अमेरिका में लागू इस टैक्स की पैरवी करते हुए रोचक बताया। विवाद बढ़ता देख सफाई तो दी, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
पित्रोदा का बयान और मच गया हंगामा
सैम पित्रोदा ने अपने हालिया बयान में विरासत टैक्स या कहें इनहेरिटेंस टैक्स की वकालत की। उन्होंने कहा कि अमेरिका में विरासत टैक्स लगता है। फर्ज कीजिए, अगर किसी के पास 10 करोड़ डॉलर की संपत्ति है तो मरने के बाद 45 फीसदी संपत्ति बच्चों को दी जाती है और 55 फीसदी सरकार के पास जाती है।
इसका सीधा मतलब है जो संपत्ति आपने अपने जीते-जी बनाई, उसकी आधी मरने के बाद जनता के लिए छोड़ना होगा। उन्होंने कहा कि यह बहुत रोचक कानून है। वहीं भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है।
पीएम मोदी ने जताई आपत्ति
सैम पित्रोदा के इस बयान के बाद पीएम मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोला। पीएम मोदी ने कहा, ”कांग्रेस के खतरनाक इरादे खुलकर सामने आ गए हैं, इसलिए वो इन्हेरिटेंस टैक्स की बात कर रहे हैं।”
बीजेपी का जोरदार हमला
भाजपा की तरफ से अमित शाह ने लोगों से श्री पित्रोदा की टिप्पणी को गंभीरता से लेने की अपील की। उन्होंने कहा कि उनकी छिपी हुई योजनाएं सामने आ गई हैं। लोगों को ध्यान रखना चाहिए और कांग्रेस को अपने घोषणापत्र से सर्वेक्षण का उल्लेख वापस लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी प्राथमिकता अल्पसंख्यकों की नहीं है। हमारी प्राथमिकता गरीब, दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग हैं।
असम के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता हिमंता बिस्वा सरमा ने पोस्ट के साथ साक्षात्कार का एक वीडियो साझा किया कि परिवार सलाहकार बीज फैला रहे हैं-उनका इरादा आपकी मेहनत की कमाई की ‘संगठित लूट और वैध लूट’ है।
आखिर अमेरिका की ‘विरासत कर’ व्यवस्था क्या है?
विरासत कर एक व्यक्ति द्वारा विरासत के हिस्से के रूप में मिली संपत्ति पर लगाया जाने वाला कर है। यह राज्य द्वारा लगाई जाने वाली कर व्यवस्था है। अमेरिका की ‘विरासत कर’ या ‘इनहेरिटेंस टैक्स’ व्यवस्था उस धन, संपत्ति पर लगती है जिसे कोई व्यक्ति मरने के बाद दूसरों के लिए छोड़ देता है।
जिसे संपत्ति मिलती है उसे ही विरासत कर का भुगतान करना होता है। हालांकि, इस कर को लागू करने में कई कारकों की भूमिका होती है। ये कारक यह निर्धारित करते हैं कि कितना कर भुगतान किया जाना चाहिए और मृतक कहां रहता था, संपत्ति पाने वाले के साथ उनके रिश्ते कैसे थे।
क्या भारत में कभी लगा है इनहेरिटेंस टैक्स?
भारत में इनहेरिटेंस टैक्स कानून 1985 तक मौजूद था। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसे खत्म कर दिया। इसे एस्टेट ड्यूटी एक्ट 1953 के जरिए पेश किया गया था। ये टैक्स तभी देय होगा, जब संपत्ति के विरासत वाले हिस्से की टोटल वैल्यू एक्सक्लूजन लिमिट से ज्यादा हो जाए। भारत में संपत्तियों पर यह टैक्स 85% तक निर्धारित किया गया था। इस टैक्स का मकसद आय असमानता को कम करना था।
क्यों खत्म हुआ ये टैक्स?
‘इकोनॉमिक टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का इनहेरिटेन्स टैक्स 1985 में निरस्त कर दिया गया था, क्योंकि इससे न तो समाज में आर्थिक असमानता को कम करने में मदद मिली और न ही इसने राजस्व में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1984-85 में एस्टेट ड्यूटी एक्ट के तहत कुल 20 करोड़ रुपये का टैक्स कलेक्ट किया गया था। लेकिन टैक्स कलेक्शन की लागत बहुत ज्यादा थी। इस टैक्स के जटिल कैल्कुलेशन स्ट्रक्टर ने ज्यादा से ज्यादा मुकदमेबाजी को जन्म दिया।