कुरान जलाकर चर्चा में आए इराकी रिफ्यूजी सलवान मोमिका की नॉर्वे में मौत का दावा किया जा रहा है। खुद को ‘एक्सट्रीम एक्स-मुस्लिम’ बताने वाले मोमिका इस्लाम के खिलाफ बोलने के कारण चर्चा में रहे। फिलहाल उनकी मौत की पुष्टि नहीं हो सकी, लेकिन एक्स-मुस्लिम समुदाय चर्चा में है। प्यू रिसर्च सेंटर का कहना है कि हर साल अमेरिका में ही 1 लाख से ज्यादा लोग आधिकारिक तौर पर इस्लाम छोड़ देते हैं।
कई सर्वे लगातार दावा कर रहे हैं कि इस्लाम दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ता धर्म है। प्यू रिसर्च का कहना है कि साल 2035 में सबसे ज्यादा इसी महजब के मानने वाले होंगे। फिलहाल ईसाई धर्म सबसे ऊपर है, जबकि इस्लाम दूसरे नंबर पर है, जिसके फॉलोअर सबसे ज्यादा हैं।
ये धर्म काफी तेजी से फैल तो रहा है, लेकिन इसके साथ ही एक अलग बात भी हो रही है। लोग इस्लाम छोड़ रहे हैं। ये लोग खुद को नास्तिक या किसी और रिलीजन को मानने वाले नहीं, बल्कि एक्स-मुस्लिम बताते हैं। यही उनकी पहचान है।
क्यों बनने लगे एक्स-मुस्लिम समुदाय
इस धर्म को छोड़ने वालों को कथित तौर पर मौत की धमकियां मिलती हैं। साल 2016 में इसपर एक डॉक्युमेंट्री भी बनी- इस्लाम नॉन-बिलीवर्स। नॉर्वे में बनी इस फिल्म में एक्स-मुस्लिमों के डर और खतरों पर बात की गई कि किस तरह उन्हें चरमपंथियों की धमकियां मिलती हैं।
या परिवार को मारने की धमकी मिलती है। ऐसे में एक्स-मुस्लिम्स ने एक काम ये किया कि वे अपने जैसी सोच वालों को जोड़ने लगे। यहां से बनी एक्स-मुस्लिम कम्युनिटी। ये एक तरह का सपोर्ट नेटवर्क है, जो एक सोच वालों की मदद करता है। इसमें कानूनी सलाह देने से लेकर कई तरह की चीजें शामिल हैं।
इस तरह करते हैं काम
लेकिन एक्स-मुस्लिम्स का सबसे बड़ा काम है, अपनी सोच को आगे ले जाना। यानी लोगों को इस्लाम से दूर करना। इसके लिए वे कई प्लेटफॉर्म पर जाते हैं। जैसे सोशल मीडिया, मीडिया और पब्लिक गेदरिंग जुटाना। ये लोग अलग-अलग जगहों पर मिलते रहते हैं।
चूंकि इनका काम धार्मिक विरोध है तो इस कम्युनिटी को धमकियां भी काफी मिलती हैं। ऐसे में बहुत से लोग नाम और चेहरा छिपाकर बात करते हैं। साल 2007 में जर्मनी में सेंट्रल काउंसिल ऑफ एक्स मुस्लिम बना, जो यूरोप का सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म था। इसके बाद ऐसे ग्रुप बनने लगे।
केरल में एक्स-मुस्लिम कम्युनिटी
अमेरिका और यूरोप का फलसफा बढ़ते-बढ़ते दुनिया के कई देशों में फैल गया। अब भारत के केरल में भी एक्स-मुस्लिम समुदाय है। ये पहचान गुप्त रखकर काम नहीं करते, बल्कि बाकायदा एक संगठन बना रखा है, जिसका नाम ही एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल (EMU) है। ये संगठन लगभग पांच साल पहले उनके लिए बना, जो इस्लाम छोड़ चुके थे।
केरल में अक्सर उन्हें धमकियां मिलतीं, या कई दूसरी परेशानियां आती थीं। ऐसे में एक सपोर्ट सिस्टम के लिए EMU बना। इसके अलावा भी एक ग्रुप है, जिसका नाम नॉन-रिलीजियस सिटिजन्स है। ये केवल इस्लाम को छोड़ने वाले या उससे नफरत करने वाले नहीं, बल्कि वे लोग हैं जो किसी भी धर्म को नहीं मानते। वे कहते हैं कि 18 साल का होने के बाद भी किसी को धर्म के बारे में बताया जाना चाहिए।
भारत में किस तरह के लोग हैं एक्स-मुस्लिम
इसमें ज्यादातर काफी पढ़े-लिखे लोग हैं। वे तर्क करते हैं कि इस्लाम में साइंस पर जोर नहीं, या फिर म्यूजिक और डांस की भी मनाही है। महिलाओं को प्रॉपर्टी में पुरुषों से आधा हक मिलता है। LGBTQIA को भी इस्लाम ने नहीं अपनाया इसलिए ये लोग भी धर्म से अलग हो रहे हैं। हालांकि इसका डेटा नहीं कि भारत में कितने लोग मुस्लिम धर्म छोड़कर एक्स-मुस्लिम हो रहे हैं।
एक्स- मुस्लिम साहिल, समीर, जफर हेरेटिक, सचवाला और आजाद ग्राउंड जैसे कई नाम हैं, जो भारत के एक्स-मुस्लिम हैं और यूट्यूब चैनल के जरिए अपनी बात कहते हैं। साल 2018 में छपी प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका में रहने वाले 23 प्रतिशत वयस्क जो कि मुस्लिम फैमिली में पले- बढ़े, अब अपनी पहचान को इस्लाम से नहीं जोड़ते हैं। इनमें से 7 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे इस्लाम की सीख से सहमत नहीं थे।
क्या इस्लामिक देशों में धर्म से दूरी
मुस्लिम-बहुल देशों में इस्लाम छोड़ने पर कड़ी सजा है। ऐसे में लोग सीधे-सीधे धर्म से दूरी का एलान नहीं कर पाते, लेकिन अपने तौर-तरीकों से ये बात जताने लगते हैं। जैसे लेबनान में 43% लोगों ने माना कि वे अपने घर या कंफर्ट जोन में इस्लाम की प्रैक्टिस नहीं करते। रिसर्च नेटवर्क अरब बैरोमीटर ने 25 हजार लोगों पर ये पोल किया था।
एक्स-मुस्लिम या नास्तिक बनने में वहां एक और मुश्किल ये भी है कि ऐसा कोई विकल्प आधिकारिक रूप में नहीं। जैसे नौकरी या जिन जगहों पर धर्म का कॉलम भरना होता है, वहां नॉन-रिलीजियस का ऑप्शन नहीं। मिडिल ईस्ट में धर्म पर हुआ सबसे बड़ा सर्वे साल 1981 से लेकर 2020 तक चलता रहा।
यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के इस सर्वे में पाया गया कि इराक, ट्यूनीशिया और मोरक्को जैसे देशों में इस्लाम को मानने वाले अब खुद को नास्तिक बताने लगे हैं। हालांकि ये चोरी-छिपे ही ऐसी बातें करते हैं। वही लोग खुलकर सामने आते हैं, जो देश छोड़कर कहीं और बस चुके या शरण ले चुके हों।
कौन था सलवान मोमिका
खुद को एक्टिविस्ट कहने वाला सलवान मोमिका इराक का रहने वाला था। उसने साल 2018 में इराक छोड़कर यूरोप में शरण ली थी। तब से वो लगातार अपने हवाले से इस्लाम का विरोध कर रहा था, और कुरान जला रहा है। स्वीडन में इसे लेकर काफी विरोध भी हुआ था लेकिन स्वीडिश सरकार ने फ्रीडम ऑफ स्पीच की बात कहकर उसे सुरक्षा भी थी। हाल में वो नॉर्वे शिफ्ट हुआ था।
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