मंदी की संभावनाओं के बीच क्या मंदी को मात दे पाएगी भारतीय अर्थव्यवस्था?

दुनिया मंदी के मुहाने पर है। अमेरिका, चीन, जर्मनी जैसी शीर्ष अर्थव्यवस्थाएं भी इससे अछूती नहीं रहेंगी। लेकिन मंदी की परछाई से दूर भारत विकास के पथ पर सरपट दौड़ता रहेगा।

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दुनिया की अर्थव्यवस्था पर मंदी का खतरा मंडरा रहा है। 21 फरवरी, 2024 को जारी अपनी रिपोर्ट में फ्रैंकलिन टेम्पलटन ने यह आशंका जताई है। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका मंदी में जाने की 45 प्रतिशत संभावना के साथ छठे स्थान पर है। 

वहीं, दूसरी सबसे आर्थिक शक्ति चीन इसकी संभावना 15 प्रतिशत, जबकि तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी के मंदी में जाने की 73 प्रतिशत संभावना है। लेकिन भारत पर मंदी का कोई खतरा नहीं है। विश्व बैंक ने भी अनुमान जारी कर इस आशंका को बल प्रदान किया है।

विश्व बैंक ने 2025 के लिए वैश्विक जीडीपी वृद्धि का अनुमान 30 आधार अंक यानी 0.30 प्रतिशत घटाकर 3 प्रतिशत से 2.7 प्रतिशत कर दिया है और 2024 की समान अवधि में इसके 2.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। वहीं, 2025 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि का अनुमान 20 हजार अंक बढ़ाकर 6.6 प्रतिशत करने के साथ 2024 में इसके 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। 

मंदी को मात देती भारतीय अर्थव्यवस्था

एसएंडपी ग्लोबल ने भी 2025 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि का अनुमान 40 आधार अंक बढ़ाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया है। इसलिए यह प्रश्न स्वाभाविक है कि जब दुनिया की अर्थव्यवस्था ढलान पर है, तो भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी क्यों है? ये सकारात्मक और उत्साहवर्धक पूवार्नुमान पूरी दुनिया में भारत व उसकी अर्थव्यवस्था के प्रति भरोसे को दर्शाते हैं।

भारत के तेज आर्थिक विकास का प्रमुख कारण है नरेंद्र मोदी सरकार का निवेश व पूंजीगत व्यय आधारित विकास पर विशेष ध्यान। बीते 10 वर्ष में सरकार ने बुनियादी ढांचे में लगभग 7 ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया है। पिछली सरकारों ने 1947 से 2014 तक 7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया था। 

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सरकार के प्रयासों का ही परिणाम है कि बीते 9 वर्ष में राष्ट्रीय राजमार्गों में 50,000 किलोमीटर की अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। 2014-15 तक कुल 97,830 किमी. राष्ट्रीय राजमार्ग थे, जो मार्च 2023 तक बढ़कर 1,45,155 किमी. हो गए। 2014 के बाद सड़क परिवहन एवं राजमार्ग का बजट 500 प्रतिशत बढ़ा है। 2020-21 में तो राजमार्ग निर्माण की गति 37 किमी. प्रतिदिन तक पहुंच गई, जो एक रिकॉर्ड है।

इसी तरह, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 2014 से अब तक 3.74 लाख किमी. सड़कें बनी हैं। इससे ग्रामीण सड़कों की लंबाई 2013-14 में 3.81 लाख किमी. से बढ़कर 7.55 लाख किमी. हो गई है। उधर, भारतीय रेलवे ने ब्रॉड गेज ट्रैक के शत प्रतिशत विद्युतीकरण का लक्ष्य रखा है। 

दिसंबर 2023 तक 93.83 प्रतिशत ब्रॉड गेज मार्ग का विद्युतीकरण किया जा चुका है। मतलब, दिसंबर 2023 तक 61,508 किमी. रेल मार्ग का विद्युतीकरण किया गया। इससे पहले 2014 तक 21,801 किमी. ब्रॉड-गेज नेटवर्क का ही विद्युतीकरण हुआ था।

सरकार ने 2025 में बुनियादी ढांचे में 11.1 लाख करोड़ रुपये के निवेश का बजट रखा है। बुनियादी ढांचे में यह निवेश, जिसे निश्चित पूंजी निर्माण कहा जाता है, आर्थिक विकास में पहला सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। इसके संकेतक को आईसीओआर या इंक्रीमेंटल कैपिटल आउटपुट रेशो कहा जाता है।

यह संकेतक दर्शाता है कि अपेक्षित विकास दर पाने के लिए कितनी अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता है। मान लीजिए, किसी देश को उत्पादन में 1 प्रतिशत की वृद्धि हासिल करने के लिए 1 प्रतिशत वृद्धिशील निवेश की आवश्यकता है यानी आईसीओआर 1 है।

आईसीओआर एक मानक है, जिसका उपयोग निवेश में वृद्धि के आधार पर जीडीपी की वृद्धि की गणना के लिए किया जाता है। भारत के मामले में आईसीओआर 4.4 है। इसी तरह, उत्पादकता आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं में कॉरपोरेट निवेश एक प्रमुख योगदानकर्ता है। 

नवंबर 2023 तक पीएलआई योजनाओं ने 1.03 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश आकर्षित किया। इससे 8.61 लाख करोड़ रुपये का उत्पादन और बिक्री हुई, जबकि निर्यात 3.2 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। साथ ही, 6.78 लाख से अधिक लोगों के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार भी उत्पन्न किया है। 

जनवरी 2024 तक 14 क्षेत्रों में 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक के अनुमानित निवेश के साथ 746 आवेदन स्वीकृत किए गए हैं। पीएलआई लाभार्थियों में 176 एमएसएमई हैं, जिनमें थोक दवाओं, चिकित्सा उपकरण, फार्मा, दूरसंचार, सफेद वस्तुओं, खाद्य प्रसंस्करण, कपड़ा और ड्रोन जैसे क्षेत्र शामिल हैं।

इसके अलावा, 2020-21 के बाद से मोबाइल फोन के उत्पादन में 1.25 गुना से अधिक और निर्यात में 4 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। पीएलआई योजना में जब और 2 दो लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा, तो रोजगार और निर्यात में कई गुना वृद्धि होगी, जो फिर से आर्थिक विकास को गति देगा। 2022-23 के दौरान कुल मोबाइल फोन निर्यात में पीएलआई लाभार्थियों की हिस्सेदारी लगभग 82 प्रतिशत रही।

रक्षा निर्यात में ऐतिहासिक वृद्धि 

इसके बाद आर्थिक विकास का अगला सबसे बड़ा चालक है निर्यात। 2024 में देश का व्यापारिक निर्यात लगभग 435.3 अरब डॉलर होने की उम्मीद है, जो 2023 में 447.46 अरब डॉलर था। एक वर्ष पहले की समान अवधि की तुलना में मार्च तिमाही में व्यापारिक निर्यात लगभग 3 प्रतिशत बढ़कर 118.2 अरब डॉलर हो जाएगा। 

रक्षा उत्पाद निर्यात में तो भारत ने मात्र एक वर्ष में 32.5 प्रतिशत की रिकॉर्ड वृद्धि हासिल की है। पहली बार देश का रक्षा निर्यात 21,000 करोड़ रुपये के पार गया है। भारत ने 84 देशों को रक्षा उत्पाद बेचकर यह उपलब्धि हासिल की, जिसमें मेक इन इंडिया से जुड़ी लगभग 50 भारतीय कंपनियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही।

इसी तरह, अप्रैल-दिसंबर 2023 में सेवा निर्यात बढ़कर 284.45 अरब डॉलर हो गया, जो अप्रैल-दिसंबर 2022 में 267.5 अरब डॉलर था। आस्ट्रेलिया, यूएई और यूरोप जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) होने के बाद निर्यात में वृद्धि की उम्मीद है। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ एफटीए के बाद इसमें और उछाल की उम्मीद है। कई वैश्विक खरीदारों ने चीन को छोड़ भारत का रुख किया है, जिससे निर्यात बढ़ा है।

वैश्विक आपूर्ति शृंखला का यह पुनर्गठन कोविड महामारी की देन है, जो चीन से दुनियाभर में फैली। चीन में लॉकडाउन के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई, जिसका दुनिया की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं पर असर पड़ा। 

तब 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन वैश्विक मंचों- संयुक्त राष्ट्र महासभा, जी-8 और जी-20 शिखर सम्मेलन में सभी देशों से अपनी वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को पुन: व्यवस्थित करने का आह्वान किया था, जिसका परिणाम दिखने लगा है।

आर्थिक विकास में अंतिम योगदानकर्ता है बढ़ी हुई खपत। एमएसपी में वृद्धि और सरकार द्वारा अनाजों की अधिक खरीद, बुनियादी ढांचा क्षेत्र में उच्च रोजगार, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, एक जिला-एक उत्पाद योजना, प्रधान आवास योजना, पीएलआई जैसी योजनाओं ने ग्रामीण व शहरी आबादी के हाथों में पर्याप्त तरलता पैदा की है। 

फरवरी 2024 में जारी घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, ग्रामीण परिवारों की औसत मासिक उपभोग व्यय (एमपीसीई) 3,773 रुपये है, जबकि शहरी परिवारों में यह 6,459 रुपये है। 2011-12 में प्रति व्यक्ति एमपीसीई 1,430 रुपये था। यानी इसमें 164 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर ने 2023 में 41 लाख वाहन बेचे, जो 2022 में 37.9 लाख की तुलना में 8.2 प्रतिशत अधिक है।

कुल मिलाकर घरेलू खपत में बढ़ोतरी ही देश की आर्थिक वृद्धि का आखिरी कारण है। भारत का आर्थिक विकास जिन तीन स्तंभों पर टिका हुआ है, वे पूरी तरह संतुलित हैं। इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत एक मजबूत आर्थिक विकास के लिए तैयार है और इसे मंदी का कोई खतरा नहीं है।

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