मीडिया किसी भी लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, जो जनमत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन जब इस स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की कोशिश की जाती है, तो यह न केवल लोकतंत्र के लिए खतरा है, बल्कि समाज के सूचना और विचारों के प्रवाह को भी बाधित करता है। हाल ही में, पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार द्वारा ‘जी-न्यूज‘ के सभी चैनलों को प्रतिबंधित करने की खबर ने मीडिया की स्वतंत्रता पर एक बार फिर से बहस छेड़ दी है।
पंजाब में Zee News पर प्रतिबंध
Zee News ने खुद इस बात की जानकारी दी है कि पंजाब में उनके सभी चैनलों को ब्लैकआउट कर दिया गया है। इस प्रतिबंध के पीछे का कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन मीडिया संस्थान का दावा है कि यह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है। उन्होंने कहा कि पंजाब में लोग अपने घरों में Zee के चैनल नहीं देख पा रहे हैं और यह अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सीधा हमला है। मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली AAP सरकार पर यह आरोप लगाया गया है कि वे सच को दबाने की कोशिश कर रहे हैं।
मीडिया पर प्रतिबंध: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत में मीडिया पर नियंत्रण का इतिहास नया नहीं है। समय-समय पर विभिन्न सरकारों ने मीडिया पर प्रतिबंध लगाए हैं, जिनका उद्देश्य सरकारी नीतियों या अधिकारियों की आलोचना को रोकना रहा है। यहाँ कुछ प्रमुख उदाहरण दिए गए हैं:
1. आपातकाल (1975-1977)
इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 1975 में आपातकाल की घोषणा की। इस दौरान:
- प्रेस सेंसरशिप: मीडिया पर सख्त सेंसरशिप लगाई गई। सभी समाचार पत्रों को सरकार की अनुमति के बिना कुछ भी प्रकाशित करने की अनुमति नहीं थी।
- मीडिया बंदी: कई समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को बंद कर दिया गया। पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया और संपादकों को जेल में डाला गया।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन: प्रेस की स्वतंत्रता को पूरी तरह से कुचल दिया गया और केवल सरकारी विचारधारा को प्रसारित करने की अनुमति थी।
2. राजीव गांधी सरकार (1980 के दशक)
राजीव गांधी के शासन के दौरान भी मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास किए गए:
- मानहानि विधेयक (Defamation Bill, 1988): इस बिल का उद्देश्य मीडिया की आलोचना को रोकना था। इसमें पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर मानहानि के मामलों में कड़ी सजा का प्रावधान था। हालांकि, व्यापक विरोध के बाद इस बिल को वापस ले लिया गया।
3. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार
- ABP Ananda विवाद (2018): पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने कथित तौर पर ABP Ananda चैनल पर प्रतिबंध लगाया था। चैनल ने मुख्यमंत्री की आलोचना की थी, जिसके बाद कई रिपोर्टों के अनुसार चैनल के प्रसारण में व्यवधान डाला गया।
वर्तमान परिदृश्य
Zee News के प्रतिबंध के बाद भाजपा नेताओं ने AAP सरकार पर तीखे हमले किए हैं। भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान लोकतंत्र की बात करते हैं, लेकिन सच दिखाने पर मीडिया को दबाने की कोशिश करते हैं। इसी प्रकार, जदयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने इस प्रतिबंध की निंदा करते हुए कहा कि AAP का जन्म मीडिया की फेवरिट संस्था के रूप में हुआ था, और अब वही मीडिया उनकी आलोचना करने पर प्रतिबंधित हो रही है।
प्रेस की स्वतंत्रता: संवैधानिक अधिकार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। यह अधिकार प्रेस की स्वतंत्रता को भी सम्मिलित करता है। जब मीडिया पर प्रतिबंध लगाए जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर इस संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन होता है। ऐसे प्रतिबंध न केवल पत्रकारों को भयभीत करते हैं, बल्कि नागरिकों को भी सही और निष्पक्ष जानकारी प्राप्त करने से वंचित करते हैं।
निष्कर्ष
पंजाब में Zee News के चैनलों पर प्रतिबंध लगाना प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है और इसे तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए। सरकारों को चाहिए कि वे आलोचना को स्वीकार करें और मीडिया की स्वतंत्रता को बनाए रखें, ताकि समाज में सही जानकारी का प्रवाह बना रहे। लोकतंत्र की सफलता इसी पर निर्भर करती है कि सभी विचार और आवाजें बिना किसी डर और दबाव के व्यक्त की जा सकें। प्रेस की स्वतंत्रता का सम्मान और संरक्षण हर नागरिक का कर्तव्य है, ताकि लोकतंत्र सशक्त और समृद्ध हो सके।
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