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कांग्रेस का अव्यावहारिक वादा: महालक्ष्मी योजना की आर्थिक चुनौतियां

लोकसभा चुनाव के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जनता से ऐसा वादा कर डाला कि अच्छे-अच्छे अर्थशास्त्रियों के भी कान खड़े हो गए।

Akash Gaur द्वारा Akash Gaur
28 May 2024
in अर्थव्यवस्था, राजनीति, समीक्षा
राहुल गांधी, चुनावी वादा, लोकसभा चुनाव 2024, कांग्रेस, महालक्ष्मी योजना,
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लोकसभा चुनाव के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जनता से ऐसा वादा कर डाला कि अच्छे-अच्छे अर्थशास्त्रियों के भी कान खड़े हो गए। राहुल गांधी का महालक्ष्मी योजना का वादा, जिसमें देश के गरीब परिवार की एक महिला को सालाना 1 लाख रुपये देने की बात कही गई है और यह कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी शामिल है। लेकिन जब इस वादे का विश्लेषण किया गया तो जो आंकड़े सामने आए, वे बेहद चौंकाने वाले हैं।

गरीब परिवारों की संख्या

सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि देश में कितने गरीब परिवार हैं जिन्हें इस योजना का लाभ मिलेगा। नीति आयोग द्वारा जनवरी 2024 में जारी आंकड़ों के अनुसार, मोदी सरकार के 9 साल के कार्यकाल में 24.82 करोड़ भारतीय गरीबी से बाहर निकले हैं। इस तरह, गरीबी में रह रहे लोगों का अनुपात 2013-14 के 29.17 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 11.28 प्रतिशत रह गया है।

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संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक, देश की मौजूदा जनसंख्या 1.44 अरब है। इस हिसाब से 16.24 करोड़ लोग अभी भी गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं। यदि एक परिवार में औसतन 4 सदस्य माने जाएं, तो कुल 4 करोड़ परिवार गरीबी रेखा में आते हैं।

महालक्ष्मी योजना की लागत

4 करोड़ गरीब परिवारों को सालाना 1 लाख रुपये की सहायता प्रदान करने के लिए कुल लागत 40 लाख करोड़ रुपये होगी। यह राशि हर साल खर्च करनी होगी। यह खर्चा देश के मात्र 11 प्रतिशत लोगों को फायदा पहुंचाएगा, जबकि देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह बहुत बड़ी राशि है।

देश का मौजूदा बजट

साल 2022 में भारत का कुल बजट 39 लाख करोड़ रुपये था, जबकि 2023 में संशोधित बजट 41.9 लाख करोड़ रुपये रहा। फरवरी 2024 में 2024-25 के लिए कुल 47.66 लाख करोड़ रुपये का बजट जारी करने का अनुमान है। सरकार की टैक्‍स और अन्य मदों से कुल कमाई 30.80 लाख करोड़ रुपये की होने का अनुमान है। राहुल गांधी का वादा सरकार की कुल कमाई से भी करीब 9.20 लाख करोड़ रुपये अधिक है।

भरपाई के विकल्प

अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो राहुल गांधी के इस वादे को पूरा करने के लिए पैसों की व्यवस्था कैसे की जाएगी, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। सबसे पहले, सरकार के सबसे बड़े खर्च वाले सेक्टर पर ध्यान देना होगा। मोदी सरकार ने 2020 में नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन योजना तैयार की थी जिसमें वित्तवर्ष 2025 तक 111.30 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाने का प्रावधान था। यानी हर साल 22 लाख करोड़ रुपये।

राहुल गांधी का वादा इस लक्ष्य का भी करीब दोगुना बैठता है। अगर इंफ्रा के सभी प्रोजेक्ट रोक भी दिए जाएं, तो भी यह पैसा पूरा नहीं पड़ेगा। 2022 से 2024 तक के तीन साल में सिर्फ 23 लाख करोड़ रुपये ही इंफ्रा पर खर्च किए जा सके। इसका मतलब यह है कि इंफ्रा पर होने वाले खर्च को पूरी तरह से बंद कर देने पर भी महालक्ष्मी योजना की पूरी लागत को कवर नहीं किया जा सकता।

अन्य विकल्प और चुनौतियां

राहुल गांधी को अपने किए गए वादे को पूरा करने के लिए अन्य विकल्पों पर भी विचार करना होगा, जैसे कर दरों में वृद्धि, नई कर योजनाओं का लागू करना, सरकारी सब्सिडियों में कटौती, या उधारी का सहारा लेना।

  1. कर दरों में वृद्धि: कर दरों में वृद्धि से सरकारी आय बढ़ाई जा सकती है, लेकिन इससे आम जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा।
  2. नई कर योजनाएं: नई कर योजनाएं लागू करने से सरकार की आय में वृद्धि हो सकती है, लेकिन इससे भी जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा।
  3. सरकारी सब्सिडियों में कटौती: सरकारी सब्सिडियों में कटौती से सरकार को कुछ धनराशि बच सकती है, लेकिन इससे गरीब और मध्य वर्ग के लोगों को परेशानी होगी।
  4. उधारी: उधारी का सहारा लेना एक विकल्प हो सकता है, लेकिन इससे देश पर आर्थिक भार बढ़ेगा और भविष्य में इसे चुकाने की जिम्मेदारी भी बढ़ेगी। इसका सबसे बड़ा उदहारण हमारा कंगाल पड़ोसी पाकिस्तान है जो आज अपना देश उधारी के पैसो पर चला रहा है। वहां की क्या हालत है उससे ही हम अंदाजा लगा सकते है कि कांग्रेस ने भी अगर अपनी अपनी इस योजना को चलाने के लिए उधारी का सहारा लिया तो भारत का क्या हाल होगा।

कांग्रेस का अव्यवहारिक दृष्टिकोण

अगर इन चुनावों में कांग्रेस की जीत होती है (जो की होता हुआ नहीं दिख रहा है) तो राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी द्वारा किया गया यह वादा अत्यंत अव्यावहारिक और जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के लिए आर्थिक रूप से अस्थिर पैदा करेगा।

यह वादा सिर्फ चुनावी रणनीति के तहत किया गया प्रतीत होता है, बिना यह सोचे कि इसके कार्यान्वयन के लिए धन की व्यवस्था कैसे की जाएगी। वर्तमान में, यह वादा केवल एक चुनावी रणनीति के रूप में ही दिखाई देता है, जिसे पूरा करना न केवल चुनौतीपूर्ण है, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी हानिकारक हो सकता है।

निष्कर्ष

राहुल गांधी का महालक्ष्मी योजना का वादा एक अव्यावहारिक और आर्थिक दृष्टि से असंभव दिखने वाला कदम है। यह योजना न केवल देश की आर्थिक स्थिति पर भारी दबाव डालेगी, बल्कि इसके कार्यान्वयन के लिए आवश्यक धनराशि जुटाना भी एक बड़ी चुनौती होगी। कांग्रेस पार्टी को यह समझना होगा कि इस तरह के वादे केवल चुनावी रणनीति के लिए नहीं किए जाने चाहिए, बल्कि इसके पीछे एक ठोस और व्यावहारिक आर्थिक योजना भी होनी चाहिए।

और पढ़ें:- देश के बजट का 15% हिस्सा मुस्लिमों के नाम करना चहाती थी कांग्रेस

Tags: Congresselection promiseLok Sabha elections 2024Mahalaxmi YojanaRahul Gandhiकांग्रेसचुनावी वादामहालक्ष्मी योजनाराहुल गाँधीलोकसभा चुनाव 2024
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