देश में इस वक्त लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं। दो चरणों के लिए मतदान हो चुके हैं। जिन सीटों पर अभी मतदान होना है, वहां तमाम दल चुनाव प्रचार में अपने ताकत झोंक रहे हैं। इस बीच, मध्य प्रदेश से कांग्रेस के लिए बुरी खबर आई। दरअसल, यहां पार्टी के उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने अपना नामांकन वापस ले लिया। इससे पहले ऐसा ही कुछ सियासी घटनाक्रम गुजरात के सूरत में भी घटा था।
नामांकन वापस लेने के अलावा कुछ उम्मीदवारों ने पहले अपने टिकट भी वापस कर दिए थे, जिसके चलते पार्टी को उम्मीदवार बदलने पड़े। आइये जानते हैं कि किन सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों ने नामांकन वापस लिया? नामांकन वापस लेने की वजह क्या रही? टिकट किन प्रत्याशियों ने वापस किए थे
किन सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों ने नामांकन वापस लिया?
चौथे चरण के चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया 29 अप्रैल को समाप्त हो गई। इसी चरण में मध्य प्रदेश की इंदौर सीट पर भी चुनाव होना है। हालांकि, वोटिंग होने से पहले यहां कांग्रेस मुकाबले से बाहर हो गई। दरअसल, इंदौर से कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी अक्षय बम ने नाम वापस ले लिया। कांग्रेस प्रत्याशी सोमवार को भाजपा विधायक रमेश मेंदोला के साथ कलेक्टर कार्यालय पहुंचे और अपना नाम वापस ले लिया।
कुछ देर बाद मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने सोशल मीडिया पर अक्षय के साथ फोटो पोस्ट करते हुए लिखा कि अक्षय का भाजपा में स्वागत है। बाद में अक्षय ने भाजपा कार्यालय में पार्टी की सदस्यता भी ले ली। इस दौरान उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक भारत श्रेष्ठ भारत बनाना चाहते हैं। मैं भी उनका साथ देना चाहता हूं।
उधर, बम के अचानक नामांकन वापस लेने से कांग्रेस ने भाजपा पर हमला बोला है। मध्यप्रदेश कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि डरा धमकाकर नामांकन वापस कराया गया है। भाजपा लोकतंत्र की हत्या कर रही है।
सूरत में क्या हुआ था?
गुजरात की सूरत सीट पर कांग्रेस बिना चुनाव लड़े ही हार गई। दरअसल, यहां से कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुम्भाणी का नामांकन पत्र 21 अप्रैल को खारिज हो गया। दरअसल, उनके तीन प्रस्तावकों ने जिला निर्वाचन अधिकारी को हलफनामा सौंपते हुए कहा था कि नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर उनके नहीं हैं।
इसके अलावा सूरत से कांग्रेस के वैकल्पिक उम्मीदवार सुरेश पडसाला का नामांकन पत्र भी अवैध करार दिया गया था। नामांकन पत्र खारिज होने से कांग्रेस शहर में चुनावी मुकाबले से बाहर हो गई। निर्वाचन अधिकारी सौरभ पारधी ने अपने आदेश में कहा कि कुम्भणी और पडसाला द्वारा सौंपे गए नामांकन पत्रों में प्रस्तावकों के हस्ताक्षरों में प्रथम दृष्टया गलतियां पाई गईं। जिसके बाद नामांकन पत्र खारिज कर दिए गए। उन्होंने कहा कि प्रस्तावकों के हस्ताक्षर असली नहीं दिखते।
सूरत में कांग्रेस के अलावा बाकी उम्मीदवारों ने अपना पर्चा वापस ले लिया जिसके चलते भाजपा यहां निर्विरोध जीत गई। चुनाव अधिकारी ने भाजपा प्रत्याशी मुकेश दलाल को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया। उधर गुजरात कांग्रेस ने नीलेश कुम्भाणी को छह साल के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया। पार्टी का कहना है कि या तो कुम्भाणी भाजपा से मिले हुए थे या अपना पर्चा भरते समय पूरी तरह लापरवाही बरती थी।
टिकट किन प्रत्याशियों ने वापस किए थे?
चुनावों के बीच कांग्रेस के कई उम्मीदवारों ने अपने टिकट भी लौटा दिए। ऐसा ही एक नाम है रोहन गुप्ता का जो अब भाजपा के सदस्य हैं। दरअसल, 12 मार्च को घोषित कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची में गुजरात की अहमदाबाद पूर्व से रोहन गुप्ता का नाम शामिल था, लेकिन उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। बाद में पार्टी ने अहमदाबाद पूर्व से हिम्मत सिंह पटेल को अपना उम्मीदवार घोषित किया।
उधर रोहन ने यह कहते हुए टिकट वापस किया था कि उनके पिता की तबीयत ठीक नहीं है और वह चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। हालांकि, 22 मार्च को रोहन गुप्ता ने पार्टी के संचार विभाग से जुड़े एक कांग्रेस नेता पर लगातार अपमान और चरित्र हनन का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इसके कुछ दिन बाद ही वह भाजपा में शामिल हो गए।
सनातन के अपमान का आरोप लगाते हुए रोहन गुप्ता ने कहा, ‘कितने विरोधाभास हो सकते हैं। एक संचार प्रभारी हैं, जिनके नाम में राम है, उन्होंने हमसे सनातन का अपमान होने पर चुप रहने को कहा था।’ रोहन का कहना था कि बिना किसी उम्मीद के उनके परिवार ने कांग्रेस के लिए कार्य किया। लेकिन उनका अपमान किया गया और स्वाभिमान को कुचला गया। इसलिए उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का फैसला लिया।
राजस्थान में कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव लड़ने से मना किया
गुजरात की तरह राजस्थान की राजसमंद लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी सुदर्शन सिंह रावत ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। उन्होंने पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा को पत्र लिखकर किसी और को टिकट देने की बात कही थी। बाद में राजसमंद सीट पर कांग्रेस ने दामोदर गुर्जर को चुनाव मैदान में उतारा था।
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