भारतीय सिनेमा और मनोरंजन जगत के सितारे अपनी प्रसिद्धि और प्रभाव का उपयोग करके विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आवाज उठाते हैं। यह किसी भी समाज के लिए एक सकारात्मक संकेत है जब इसके प्रसिद्ध चेहरे समाज के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता दिखाते हैं। लेकिन जब यह संवेदनशीलता चयनात्मक होती है, तो यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न खड़ा करती है: क्यों ये भारतीय सितारे पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचारों या कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अन्याय पर चुप्पी साध लेते हैं?
पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ अत्याचार
पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यक सदियों से सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक भेदभाव का सामना कर रहे हैं। वहां के हिंदू नागरिकों पर आए दिन अत्याचार होते हैं, उनके मंदिर तोड़े जाते हैं, लड़कियों का अपहरण कर जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है, और उनकी जमीनों पर अवैध कब्जे होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने बार-बार इन घटनाओं पर चिंता जताई है, लेकिन भारतीय सेलिब्रिटीज़ ने शायद ही कभी इस मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद की हो।
कई लोग तर्क देते हैं कि भारतीय सेलिब्रिटीज़ का पाकिस्तान में हो रहे हिंदू अत्याचारों पर चुप रहना उनके अपने व्यवसायिक हितों से जुड़ा हो सकता है। पाकिस्तान और अन्य मुस्लिम देशों में उनकी फिल्में और प्रोजेक्ट्स अच्छे खासे व्यापारिक लाभ कमाते हैं। ऐसे में, इस मुद्दे पर बोलकर वे अपने वित्तीय लाभ को जोखिम में नहीं डालना चाहते।
कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का विस्थापन
कश्मीरी पंडितों का मसला भी भारतीय सेलिब्रिटीज़ के चयनात्मक सामाजिक सक्रियता का एक स्पष्ट उदाहरण है। 1990 के दशक में, हज़ारों कश्मीरी पंडितों को आतंकवाद और धार्मिक कट्टरता के कारण अपने घर-बार छोड़ने पड़े और आज तक वे शरणार्थियों की तरह जी रहे हैं। इस नरसंहार और विस्थापन पर जब-जब चर्चा होती है, भारतीय सेलिब्रिटीज़ का मौन रहना दुखदायी है।
इसका एक प्रमुख कारण हो सकता है कि कश्मीर मुद्दा भारत में अत्यंत संवेदनशील और राजनीतिक रूप से विभाजित मुद्दा है। किसी भी सेलिब्रिटी द्वारा इस पर टिप्पणी करना उनके करियर के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इसलिए वे इस पर चुप्पी साधना ही उचित समझते हैं।
चयनात्मक सक्रियता
भारतीय सेलिब्रिटीज़ का सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर चयनात्मक रूप से बोलना एक गंभीर समस्या है। वे उन मुद्दों पर बोलने में जल्दी होते हैं जो या तो उन्हें सीधे प्रभावित करते हैं या जिन पर बोलने से उन्हें समाज में प्रशंसा और प्रतिष्ठा मिलती है। यह देखना महत्वपूर्ण है कि कौन-से मुद्दे उनके लिए प्रासंगिक होते हैं और कौन-से नहीं।
क्यों यह चयनात्मकता?
- आर्थिक और व्यवसायिक हित: पाकिस्तान या मुस्लिम देशों में अपनी फिल्में और ब्रांड्स का प्रचार करने वाले सेलिब्रिटीज़ इन देशों में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर बोलकर अपने व्यवसायिक हितों को खतरे में नहीं डालना चाहते।
- राजनीतिक विवादों से बचाव: कश्मीर जैसे संवेदनशील राजनीतिक मुद्दों पर बोलना उन्हें राजनीतिक विवादों में घसीट सकता है, जिससे उनकी छवि और करियर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- प्रचार और सोशल मीडिया ट्रेंड्स: कई बार सेलिब्रिटीज़ उन्हीं मुद्दों पर बोलते हैं जो सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे होते हैं और जिनसे उन्हें ज्यादा प्रचार मिल सकता है।
नैतिक जिम्मेदारी
सेलिब्रिटीज़ को समझना चाहिए कि उनकी लोकप्रियता और प्रभाव के साथ एक नैतिक जिम्मेदारी भी आती है। जब वे चयनात्मक होकर सामाजिक मुद्दों पर बोलते हैं, तो वे एक प्रकार की असमानता और पूर्वाग्रह को जन्म देते हैं।
उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे समाज के रोल मॉडल हैं और उनकी बातें और कार्रवाइयाँ समाज को प्रभावित करती हैं। यदि वे केवल उन्हीं मुद्दों पर बोलेंगे जो उनके लिए फायदेमंद हैं, तो वे अपने प्रशंसकों को एक गलत संदेश भेज रहे हैं।
निष्कर्ष
AllEyesonRafah जैसे अभियान भारतीय सेलिब्रिटीज़ की चयनात्मक सामाजिक सक्रियता की वास्तविकता को उजागर करते हैं। यह समय है कि ये सेलिब्रिटीज़ अपने प्रभाव का उपयोग सही तरीके से करें और उन सभी मुद्दों पर बोलें जो वास्तव में समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं, चाहे वह मुद्दा पाकिस्तान में हिंदुओं के अत्याचार का हो या कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अन्याय का।
इससे न केवल उनकी सामाजिक जिम्मेदारी पूरी होगी बल्कि समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन भी आएगा। समाज के प्रति उनकी वास्तविक संवेदनशीलता तभी साबित होगी जब वे चयनात्मकता को छोड़कर हर प्रकार के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाएंगे।
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