विवेकानंद शिला स्मारक पर साधना में लीन हुए पीएम मोदी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के कन्याकुमारी स्थित 'विवेकानंद शिला स्मारक' पर अपनी साधना शुरू कर दी है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के कन्याकुमारी स्थित ‘विवेकानंद शिला स्मारक‘ पर अपनी साधना शुरू कर दी है। चुनाव प्रचार के शोर-शराबे के थमने के बाद पीएम मोदी ने भारत के सुदूर दक्षिणी छोर पर स्थित इस महत्वपूर्ण स्थल का दौरा किया, जहां बंगाल की खाड़ी, हिन्द महासागर और अरब सागर का मिलन होता है। 

उनका यह दौरा दो दिवसीय है, जिसमें उन्होंने कन्याकुमारी के भगवती अम्मन मंदिर में भी दर्शन किए। पीएम मोदी की इस यात्रा का उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत साधना है बल्कि राष्ट्रीय एकता का संदेश देना भी है, क्योंकि विवेकानंद ने यहीं पर ज्ञान प्राप्त किया था और राष्ट्र के प्रति अपने विचारों को सुदृढ़ किया था।

पीएम मोदी की ऐतिहासिक यात्रा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा एक ऐतिहासिक संदर्भ भी रखती है। आज से 33 वर्ष पूर्व, 11 दिसंबर 1991 को भी वे यहाँ पहुंचे थे। उस समय भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने ‘एकता यात्रा’ की शुरुआत की थी, जो 26 जनवरी 1992 को कश्मीर के श्रीनगर स्थित लाल चौक पर तिरंगा फहराने के साथ समाप्त हुई थी। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य आतंकवाद के खिलाफ राष्ट्रीय एकता का संदेश देना था और इसे 14 राज्यों से होकर गुजरने वाली इस यात्रा ने सफलता पूर्वक पूरा किया।

इस स्मारक की कहानी है रोचक

इस स्मारक के निर्माण की कहानी भी बहुत रोचक और प्रेरणादायक है। इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह रहे एकनाथ रानडे ने बनवाया था। एकनाथ रानडे ने स्वामी विवेकानंद की जन्म-शताब्दी के अवसर पर इस स्मारक की कल्पना की थी। 

RN वेंकटरमनम, जिन्होंने 18 वर्षों तक एकनाथ रानडे के साथ काम किया, ने ‘Organiser’ को दिए गए इंटरव्यू में बताया कि तमिलनाडु में RSS के प्रांत-प्रचारक दत्ताजी डिडोलकर के साथ स्वयंसेवकों ने विवेकानंद शिला की चर्चा शुरू की थी।

स्वामी विवेकानंद ने की यहां साधना

स्वामी विवेकानंद यहां तैर कर पहुंचे थे और तीन दिनों तक साधना की थी, जिसके बाद उन्हें अपने जीवन का उद्देश्य समझ में आया और ‘भारत माता’ का विचार भी स्पष्ट हुआ। इस स्मारक के निर्माण में कई व्यवधान आए, विशेषकर ईसाइयों के गढ़ में। एकनाथ रानडे ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए राज्य स्तरीय समिति को राष्ट्रीय समिति में बदल दिया और इस अभियान को सफल बनाया। 

उन्होंने 300 से अधिक सांसदों के हस्ताक्षर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपे, जिन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भक्तवत्सलम से बात की और इस परियोजना को आगे बढ़ाया।

1964 में शुरू हुआ था इस स्मारक का काम

नवंबर 1964 में इस स्मारक का निर्माण कार्य शुरू हुआ और 1970 में इसका उद्घाटन हुआ। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता तमिलनाडु के मुख्यमंत्री M करूणानिधि ने की थी। अनुमान है कि यह स्मारक 1.35 करोड़ रुपये की लागत से बनकर तैयार हुआ, जिसमें से 80 लाख रुपये आम जनता के दान से जुटाए गए थे। आम लोगों से एक रुपये, दो रुपये और पांच रुपये के दान लिए जाते थे। इस परियोजना में राज्य और केंद्र सरकार के अलावा भारतीय सेना के जवानों ने भी दान दिया।

एकनाथ रानडे का इस परियोजना के प्रति समर्पण इतना अधिक था कि उन्होंने स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा बनाने वाले कलाकारों को भी स्वामीजी के बारे में पढ़ने के लिए कहा, ताकि वे तन-मन से काम कर सकें और परिणाम सटीक हो। चेन्नई में गांधी स्टेचू और वहां के मरीना बीच पर लेबर स्टेचू बनाने वाले DP रॉय चौधरी उन शिल्पकारों में से एक थे। अंत में सोनवडेकर द्वारा बनाई गई प्रतिमा का चयन हुआ। आज 110 एकड़ में फैले विवेकानंदपुरम का अस्तित्व भी है।

बगल की शिला पर संत तिरुवल्लुवर की प्रतिमा स्थापित करने का विचार भी एकनाथ रानडे का ही था। उनका मानना था कि इस छोटी शिला पर किसी और की प्रतिमा लगाने का प्रयास हो सकता है, जिनका कद स्वामी विवेकानंद जैसा न हो। संत तिरुवल्लुवर तमिलनाडु के एक महान संत और दार्शनिक थे। 

इस दौरान एकनाथ रानडे ने MGR से भी मुलाकात की थी, जो लोकप्रिय अभिनेता से राजनेता बने थे और मुख्यमंत्री थे। MGR ने सलाह दी थी कि यह काम सरकार को अपने हाथ में लेकर कराना चाहिए। यह काम सरकार ने किया, लेकिन उद्घाटन के मौके पर कमिटी में विवेकानंद केंद्र का भी नाम था।

यह स्मारक भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा का महत्व ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है। इस यात्रा से उन्होंने न केवल स्वामी विवेकानंद के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की है, बल्कि राष्ट्रीय एकता और समरसता का संदेश भी दिया है। यह स्मारक भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।

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