देश में लगातार बढ़ती गर्मी का कारण क्या?

इस समय देश के कई राज्य भीषण गर्मी से झुलस रहे हैं। दिल्ली में तो इस साल पारे ने 48 डिग्री सेल्सियस के स्तर को पार कर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।

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इस समय देश के कई राज्य भीषण गर्मी से झुलस रहे हैं। दिल्ली में तो इस साल पारे ने 48 डिग्री सेल्सियस के स्तर को पार कर सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। दिल्ली का नजफगढ़ क्षेत्र देश का सबसे गर्म क्षेत्र बना हुआ है।

 उल्लेखनीय है कि 47 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर गंभीर लू की स्थिति मानी जाती है और मौसम विभाग आने वाले दिनों में भी दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों में हीटवेव को लेकर अलर्ट जारी कर चुका है। 

एक ओर जहां हीटवेव के कारण लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं, वहीं 22 मई की शाम उत्तराखंड में पौड़ी और उत्तरकाशी जिलों में अचानक बादल फट गए और भीषण गर्मी के बीच आफत की बारिश ने बहुत कुछ तबाह कर दिया। बादल फटने से कई एकड़ कृषि भूमि पानी में बह गई, अनेक मकान क्षतिग्रस्त हो गए और कुछ मवेशियों की मौत हो गई।

हीटवेव के कारण लोगों के बीमार होने और हीट स्ट्रोक का खतरा बहुत बढ़ जाता है। हीट स्ट्रोक से सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती है। यही कारण है कि लोगों को गर्मी से बचने और धूप में बाहर नहीं निकलने की अपील मौसम विभाग द्वारा लगातार की जा रही है। अभी अगले कुछ दिनों तक उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान में रातें भी गर्म रहेंगी। 

मौसम विभाग के अनुसार रात का उच्च तापमान खतरनाक माना जाता है क्योंकि इससे शरीर को ठंडा होने का मौका नहीं मिलता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 1998 से 2017 के बीच दुनियाभर में हीटवेव के कारण 1.66 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई।

जहां तक भारत की बात है तो केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जुलाई 2023 में संसद में दिए गए एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया था कि भारत में 2015 से 2022 के बीच हीटवेव के कारण 3812 मौतें हुई। 2021 में प्रकाशित एक शोध में कहा गया था कि 1971 से 2019 के बीच भारत में हीट वेव की 706 घटनाएं हुई और इन पांच दशकों में हीटवेव ने भारत में 17 हजार से भी ज्यादा लोगों की जान ली। 

2010 से अनुमानित साढ़े छह हजार लोग गर्मी से संबंधित बीमारियों से मर चुके हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक हीटवेव के स्वास्थ्य को काफी नुकसान होते हैं, जिनमें प्रायः डिहाइड्रेशन (पानी की कमी), ऐंठन, उष्माघात इत्यादि शामिल होते हैं। 

इसके अलावा थकान, कमजोरी, चक्कर आना, सिरदर्द, उल्टी, मांसपेशियों में ऐंठन आदि लू लगने के संकेत देते हैं। उष्माघात के लक्षणों में शरीर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक होना, दौरे पड़ना या कोमा शामिल हैं, जो एक घातक स्थिति मानी जाती है।

हीटवेव को लेकर इस समय दिल्ली एनसीआर, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड के विभिन्न हिस्सों में स्थिति गंभीर बनी हुई है, जहां लू की लपटें आग की गर्म भट्ठी जैसी प्रतीत हो रही हैं। 

उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में जहां चिलचिलाती धूप और झुलसा देने वाली गर्मी से लोगों का हाल बेहाल है, वहीं मौसम विभाग द्वारा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, विदर्भ, गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ में भी उष्ण लहर की स्थिति कायम रहने की संभावना जताई गई है। उत्तर प्रदेश में हीटवेव का पिछले पांच वर्षों का रिकॉर्ड टूट गया है, जहां 2019 के बाद 2024 में मई का महीना इतना गर्म रिकॉर्ड किया गया है।

इस दौरान प्रदेश के अधिकांश हिस्सों का अधिकतम तापमान 48 डिग्री के आसपास रहा। राजस्थान के बाड़मेर में भी 22 मई को अधिकतम तापमान 48 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जबकि फलोदी में 47.8 डिग्री, फतेहपुर में 47.6 डिग्री, चुरू में 47.5 डिग्री, पिलानी, जालोर और जैसलमेर में 47.2 डिग्री तथा वनस्थली में 47.1 डिग्री तापमान दर्ज किया गया। 

बताया जा रहा है कि राजस्थान के कुछ सीमावर्ती इलाकों में तो तापमान 50 डिग्री तक पहुंच गया है। गुजरात में 22 मई को कांडला में 46.1, अहमदाबाद में 46, सुरेंद्रनगर में 45.8 और गांधीनगर में 45.8 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया। 

मौसम विभाग के अनुसार 22 मई को देशभर में 24 से भी ज्यादा स्थानों पर अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा दर्ज किया गया और मौसम विज्ञान विभाग ने अगले कुछ दिनों में उत्तर-पश्चिम भारत में तापमान में 3-4 डिग्री की बढ़ोतरी की भविष्यवाणी की है, जिससे हालात और बिगड़ सकते हैं।

प्रचण्ड गर्मी के कारण जहां बिजली की मांग बहुत ज्यादा बढ़ने से ग्रिडों पर भारी दबाव बढ़ रहा है, वहीं अनेक इलाकों में जलस्रोत भी सूख रहे हैं, जिससे देश के कुछ हिस्सों में सूखे जैसी स्थिति भी पैदा हो रही है। केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार भीषण गर्मी के ही कारण पिछले सप्ताह देश के करीब 150 प्रमुख जलाशयों में जल भंडारण पांच वर्षों में सबसे निचले स्तर पर गिर गया, जिससे कई राज्यों में पानी की कमी बढ़ गई और जल-विद्युत उत्पादन पर काफी असर पड़ा। 

अब सवाल यह है कि आखिर इस बार आसमान से इतनी आग क्यों बरस रही है? इस बारे में मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि दरअसल मानसून से पहले हर साल काफी गर्मी तो पड़ती है लेकिन मानसून से पहले उष्णकटिबंधीय चक्रवात भी बनते हैं, जिससे तूफानी हवाओं के साथ बारिश आती है। 

इन उष्णकटिबंधीय चक्रवात से मौसम में बदलाव होता है। ये उष्णकटिबंधीय चक्रवात अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उठते हैं लेकिन इस वर्ष एक भी चक्रवात नहीं आया है और चक्रवात बनने की आशंका भी कम ही दिख रही है। यही कारण है कि चक्रवात नहीं बनने से इस साल पूरे देश में अधिकांश राज्यों में और ज्यादा आग बरस रही है। मौसम वैज्ञानिकों में मुताबिक पिछले साल बिपरजोय चक्रवात 21 दिन तक चला था, जिससे काफी राहत मिली थी।

भीषण गर्मी की ये है वजह 

वैज्ञानिकों के मुताबिक आसमान से बरसती आग ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का ही असर है। जलवायु परिवर्तन से न सिर्फ तापमान बढ़ रहा है बल्कि मौसम का पैटर्न भी बदल रहा है, जो भविष्य में सामने आने वाले गंभीर खतरों का स्पष्ट संकेत है। तापमान में पहले के मुकाबले तेजी से बदलाव आ रहा है, जिसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ रहा है। 

तापमान में वृद्धि से आगामी वर्षों में लू, गर्मी का मौसम ज्यादा समय तक रहने और सर्दी के मौसम का समय घटने जैसी स्थितियां पैदा होंगी। इस बारे में मौसम वैज्ञानिकों का स्पष्ट तौर पर कहना है कि जिस जलवायु परिवर्तन के बारे में अब तक हम केवल पढ़ते-सुनते रहे थे, वह अब हमारे सामने आकर खड़ा हो गया है।

भारत में वैसे तो 1980 के दशक से ही तेज गर्मी पड़ रही है लेकिन अमेरिकी संस्था ‘बर्कले अर्थ’ के मुताबिक 1851-1900 की तुलना में 1980 तक केवल 0.4 डिग्री तापमान बढ़ा था लेकिन उसके बाद से यह अंतर आधे समय में ही 0.6 डिग्री बढ़ गया है अर्थात् भारत 2020 तक एक डिग्री ज्यादा गर्म हो चुका है, जिसके लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार माना जा रहा है।

एक अध्ययन के आधार पर लंदन के इम्पीरियल कॉलेज के शोधकर्ताओं डा. मरियम जकरिया तथा डा. फ्रेडरिक औटो का कहना है कि भारत में 50 वर्षों में कहीं एक बार ऐसी भीषण गर्मी  महसूस की जाती थी लेकिन अब यह एक सामान्य बात हो गई है और अब वे हर चार साल में एक बार ऐसी भयंकर तपिश की उम्मीद कर सकते हैं।

अत्यधिक गर्मी और लू के कारण हर साल न केवल कई लोगों की मौतें हो जाती हैं, लोग बीमार पड़ते हैं, वहीं यह खेती के लिए भी नुकसानदेह है और इसके कारण ऊर्जा तथा जल स्रोतों पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है।

भारत में गेहूं तथा कुछ अन्य फसलों की पैदावार में गिरावट का प्रमुख कारण भी मौसम, तापमान और प्रदूषण को माना जा रहा है। कुछ अध्ययनों में यह चिंताजनक तथ्य भी सामने आए हैं कि भारत में करीब 75 प्रतिशत श्रमिक भीषण गर्मी से परेशान हैं और बढ़ती गर्मी तथा उमस से आशंका जताई जा रही है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को इस दशक के अंत तक प्रचण्ड गर्मी से लगभग साढ़े चार प्रतिशत यानी करीब 150 से 250 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर का नुकसान हो सकता है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के मुताबिक लू से अर्थव्यवस्था को चौतरफा नुकसान होता है। डब्ल्यूएमओ का कहना है कि बढ़ते तापमान का अर्थ हीटवेव का बढ़ना, बहुत ज्यादा मात्रा में बर्फ का पिघलना, समुद्र जलस्तर का बढ़ना तथा मौसम की चरम घटनाओं का और ज्यादा विनाशकारी होना है, जिसका सीधा प्रभाव पर्यावरण, स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और सतत विकास पर पड़ेगा। 

ब्रिटेन के मौसम विभाग द्वारा तो यह भविष्यवाणी की जा चुकी है कि आगामी पांच वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग के खतरों के बीच विश्वभर में तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस से भी अधिक बढ़ने की संभावना है।

शोधकर्ताओं के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक तापमान 2016 तथा 2020 में सबसे गर्म वर्षों के साथ एक डिग्री सेल्सियस या उसके आसपास ज्यादा रहा लेकिन 2023 से 2026 की अवधि में रिकॉर्ड सबसे गर्म वर्ष होगा। वैसे इतिहास के सबसे गर्म वर्षों में लगभग सभी साल पिछले तथा इस दशक से ही रहे हैं। 

ब्रिटिश मौसम कार्यालय के एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा है कि यदि जलवायु परिवर्तन नहीं हो रहा होता तो ऐसा चरम तापमान प्रत्येक 312 वर्षों में एक बार ही देखने को मिलता। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने भारत और पाकिस्तान में हर तीन साल बाद प्रचण्ड लू की आशंका जताते हुए दावा किया कि जलवायु परिवर्तन गर्मी की तीव्रता को जिस तेजी से बढ़ा रहा है, उससे इन क्षेत्रों के लोगों को आने वाले वर्षों में सौ गुना ज्यादा लू के थपेड़े झेलने पड़ सकते हैं।

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