महाराष्ट्र में 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले रहे। राज्य में बीजेपी को बड़ा झटका लगा जब मुस्लिम वोटरों ने उसके विरोध में इंडी गठबंधन को एकजुट होकर समर्थन दिया। इस गठबंधन में एनसीपी (शरद पवार), भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस, और शिवसेना (यूबीटी) शामिल थे। बीजेपी अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल करने में नाकाम रही।
महाराष्ट्र में, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने 7 सीटें जीतीं जबकि बीजेपी ने 9 सीटें हासिल कीं। वहीं, एनसीपी (शरद पवार) ने 8, कॉन्ग्रेस ने 13 और शिवसेना (यूबीटी) ने 9 सीटें जीतीं। यह साफ संकेत था कि मुस्लिम मतदाताओं ने बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के खिलाफ विपक्षी पार्टियों को अपना समर्थन दिया।
देवेंद्र फडणवीस का इस्तीफा और हार की जिम्मेदारी
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बीजेपी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश की। उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों में हुए नुकसान की पूरी जिम्मेदारी मैं लेता हूं। मुझे राज्य विधानसभा चुनावों की तैयारियों के लिए समय चाहिए, इसलिए मैं अपने मंत्री पद से मुक्त होना चाहता हूं।” फडणवीस ने यह भी कहा कि किसानों के मुद्दों और संविधान में बदलाव के झूठे प्रचार ने वोटरों को प्रभावित किया, जिसका असर मुस्लिमों और मराठा समुदाय के वोटों पर पड़ा।
शिवसेना (यूबीटी) को मुस्लिम समर्थन
शिवसेना (यूबीटी) के नेता और महाराष्ट्र के मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि मुस्लिमों द्वारा बीजेपी के खिलाफ जारी ‘फतवों’ की वजह से ही शिवसेना (यूबीटी) और अन्य विपक्षी पार्टियों को मुंबई, सांगली, बारामती, शिरुर और डिंडोरी में अधिक सीटें मिलीं। केसरकर ने कहा कि मुस्लिम वोटर आश्वस्त थे कि उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व की विचारधारा को छोड़ दिया है, जिससे उन्हें मुस्लिम समुदाय का समर्थन मिला।
केसरकर ने यह भी दावा किया कि एकनाथ शिंदे की शिवसेना को मुंबई और मराठी मतदाताओं का समर्थन मिला। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के लिए पाकिस्तान में साजिश रची गई थी, जिसमें कुछ लोगों ने साथ दिया।
फतवों का प्रभाव और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण
पुणे में इस्लामी धर्मगुरुओं ने बीजेपी, शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) के खिलाफ फतवा जारी किया। मुस्लिम मतदाताओं से कॉन्ग्रेस, एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवारों को समर्थन देने का आग्रह किया गया। यह फतवा पुणे के कोंडवा क्षेत्र में आयोजित ‘हज़रत मौलाना सज्जाद नोमानी की तकरीर’ कार्यक्रम में जारी किया गया।
मौलाना सज्जाद नोमानी ने अपने भाषण में कहा कि मुस्लिम समुदाय को अपने मताधिकार का सही दिशा में इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने मुस्लिमों को डराया कि मोदी सत्ता में आए, तो मजार और मदरसे तोड़ दिए जाएँगे।
शिवसेना-यूबीटी और मुस्लिम समुदाय का समर्थन
शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व की विचारधारा छोड़ दी, जिसकी वजह से उन्हें मुस्लिम समुदाय का समर्थन मिला। मुंबई में उनकी रैली में इस्लामिक झंडे फहराए गए। इस्लामिक झंडे लहराने का वीडियो वायरल हो गया था, जिसमें मुस्लिम समर्थकों के साथ शिवसेना-यूबीटी के कार्यकर्ता पटाखे फोड़ते नजर आए।
बीजेपी के नितेश राणे ने उद्धव ठाकरे की आलोचना करते हुए कहा कि उन्हें खुद को हिंदू नेता बालासाहेब ठाकरे का बेटा कहने का कोई अधिकार नहीं है। राणे ने दावा किया कि रैली में पाकिस्तानी झंडा फहराया गया था, लेकिन बाद में स्पष्ट हुआ कि यह इस्लामिक झंडा था।
निष्कर्ष
मुंबई में मुस्लिम समुदाय ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) के लिए उसी जोश के साथ काम किया जो 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से नहीं देखा गया था। इस चुनाव में कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), और शिवसेना (यूबीटी) जैसी पार्टियों को मुस्लिम समुदाय का भरपूर समर्थन मिला, जबकि इंडी गठबंधन ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा था।
इससे स्पष्ट होता है कि मुसलमान बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर वोटिंग कर रहे थे। यह चुनाव परिणाम एक संदेश देता है कि धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दों के बजाय विकास और समावेशिता पर ध्यान देना आवश्यक है। आने वाले समय में, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में राजनीति की दिशा क्या होगी, यह देखना दिलचस्प होगा।
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