मणिपुर की समस्याओं को प्राथमिकता देना हमारा कर्तव्य: मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बीती 10 जून को नागपुर में अपने संबोधन के दौरान मणिपुर संकट पर गहरी चिंता व्यक्त की।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बीती 10 जून को नागपुर में अपने संबोधन के दौरान मणिपुर संकट पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने इस मुद्दे को राष्ट्रीय प्राथमिकता देने का आग्रह किया और कहा कि यह आवश्यक है कि हम इस समस्या को जल्द से जल्द हल करें।

मणिपुर में शांति की प्रतीक्षा

भागवत ने अपने भाषण में कहा, “मणिपुर एक साल से शांति की प्रतीक्षा कर रहा है। यह 10 सालों तक शांतिपूर्ण था। ऐसा लग रहा था कि पुरानी बंदूक संस्कृति खत्म हो गई है… लेकिन यह अचानक तनाव से भड़की आग में जल रहा है। कौन इसका संज्ञान लेगा? इसे प्राथमिकता देना हमारा कर्तव्य है।” भागवत का यह बयान मणिपुर में वर्तमान स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करता है और यह बताता है कि राज्य को शांति और स्थिरता की तत्काल आवश्यकता है।

विविधता का सम्मान और धर्मांतरण

आरएसएस प्रमुख ने अपने संबोधन में विविधता को स्वीकार करने और दूसरों के विश्वास का सम्मान करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “गैर-भारतीय विश्वास में यह है कि हम सही हैं, बाकी सब गलत हैं। इसे छोड़ना चाहिए। किसी भी धर्मांतरण की आवश्यकता नहीं है।” भागवत का यह विचार भारतीय समाज की विविधता को सम्मानित करने और धार्मिक सौहार्द्र को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि धार्मिक विश्वासों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए और किसी भी प्रकार के जबरन धर्मांतरण का विरोध किया जाना चाहिए।

जाति प्रथा का अंत

भागवत ने अपने भाषण में दैनिक जीवन में जाति प्रथा को बंद करने का भी आग्रह किया। उन्होंने कहा, “हजार साल तक हमने जो अपराध किया, उसके प्रायश्चित के लिए यह करना होगा… रोटी (सामूहिक भोजन) और बेटी (अंतरजातीय विवाह) संबंध होने दें।” भागवत का यह बयान भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद के खिलाफ एक मजबूत संदेश है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें अपनी पुरानी गलतियों को सुधारने के लिए सामाजिक बंधनों को तोड़ना होगा और अंतरजातीय संबंधों को बढ़ावा देना होगा।

बाहरी विचारधाराओं का विश्लेषण

भागवत ने अपने संबोधन में बाहरी विचारधाराओं का भी उल्लेख किया और कहा, “बाहरी लोग मानते थे कि हम सही हैं, बाकी सब गलत हैं। इसे ठीक करना होगा क्योंकि यह आध्यात्मिक नहीं है। हमें उन विचारधाराओं में मौजूद आध्यात्मिकता का समर्थन करना होगा। हमें सोचना होगा कि पैगंबर का इस्लाम क्या है, यीशु मसीह का ईसाई धर्म क्या है।” यह बयान भारतीय समाज के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक समन्वय की आवश्यकता को दर्शाता है। भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि हमें बाहरी विचारधाराओं का सम्मान करना चाहिए और उनकी आध्यात्मिकता को समझने की कोशिश करनी चाहिए।

लोकसभा चुनाव और आरएसएस

हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों पर भागवत ने कहा, “चुनावों में किसी भी पक्ष को झूठ नहीं बोलना चाहिए… विचार भिन्न होते हैं और इसलिए हम बहुमत पर भरोसा करते हैं… बिना वजह संघ को चुनाव चर्चा में घसीटा गया।” भागवत का यह बयान लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर जोर देता है। उन्होंने यह भी कहा कि आरएसएस को अनावश्यक रूप से चुनावी विवादों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए और संगठन की भूमिका समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण तक सीमित रहनी चाहिए।

निष्कर्ष

मोहन भागवत के इस संबोधन ने मणिपुर संकट, धार्मिक सौहार्द्र, जातिवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों पर महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने भारतीय समाज की विविधता और समावेशिता को बनाए रखने के लिए एक मजबूत संदेश दिया है। भागवत का यह भाषण समाज में व्याप्त समस्याओं के समाधान के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है और राष्ट्रीय एकता और समृद्धि की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

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