ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी लौटाएगी 500 साल पुरानी हिंदू संत की मूर्ति।

ब्रिटेन की प्रसिद्ध ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी ने दक्षिण भारत के संत तिरुमंकई अलवर की 500 साल पुरानी ऐतिहासिक मूर्ति को भारत को लौटाने का निर्णय लिया है।

ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी, ब्रिटेन, मूर्ति, खोई हुई मूर्तियां, भारत सरकार, एशमोलियन म्यूजियम, संत तिरुमंगई अलवर

ब्रिटेन की प्रसिद्ध ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी ने दक्षिण भारत के संत तिरुमंगई अलवर की 500 साल पुरानी ऐतिहासिक मूर्ति को भारत को लौटाने का निर्णय लिया है। यह मूर्ति कांस्य से बनी है और ऑक्सफॉर्ड के एशमोलियन म्यूजियम में रखी गई थी। लगभग 50 साल पहले यह मूर्ति तमिलनाडु के एक मंदिर से गायब हो गई थी।

मूर्ति की खोज और भारत सरकार का प्रयास

भारतीय सरकार ने चार साल पहले इस मूर्ति को वापस पाने के लिए आवश्यक कागजातों सहित ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी को आवेदन भेजा था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मूर्ति को भारत में लाने से पहले अभी चैरिटी आयोग का अनुमोदन बाकी है।

मूर्ति का विवरण

कांस्य की यह मूर्ति 60 सेंटीमीटर लंबी है और यह 16वीं सदी के प्रसिद्ध तमिल कवि और संत तिरुमंगई अलवर की है। यह मूर्ति डॉ. जे.आर. बेलमोंट नाम के कलेक्टर के माध्यम से एशमोलियन म्यूजियम पहुंची थी। 1967 में इस मूर्ति को सोथबी के नीलामी घर से ऑक्सफॉर्ड विश्वविद्यालय के संग्रहालय में ले लिया गया था।

मूर्ति के अस्तित्व का दावा और प्रमाण

नवंबर 2019 में एक शोध छात्र ने इस ऐतिहासिक मूर्ति के ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी के म्यूजियम में होने का दावा किया था। उसने अपने दावों के समर्थन में सबूत भी प्रस्तुत किए थे। इन्हीं सबूतों के आधार पर फरवरी 2020 में मूर्ति शाखा की CID ने ब्रिटेन स्थित भारतीय दूतावास को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी। 

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि ऑक्सफॉर्ड के एशमोलियन म्यूजियम में मौजूद संत तिरुमंकाई अलवर की प्रतिमा लगभग 50 साल पहले तमिलनाडु के कुम्भाकोणम नामक स्थान पर बने एक मंदिर से गायब हुई थी। माना जा रहा है कि यह मूर्ति मंदिर से लूटी गई थी।

एशमोलियन म्यूजियम का बयान

भारतीय दूतावास के आवेदन पर विचार करते हुए 11 मार्च 2024 को एशमोलियन म्यूजियम ने एक बयान जारी किया। इस बयान में म्यूजियम ने भारत की तरफ से पेश किए गए सबूतों को सही माना था। म्यूजियम ने यह भी बताया कि मामले को अंतिम निर्णय के लिए चैरिटी आयोग के पास भेजा जा रहा है। माना जा रहा है कि चैरिटी आयोग जल्द ही इस मामले पर फैसला लेगा।

भारतीय धरोहरों की वापसी

यह उल्लेखनीय है कि पिछले एक दशक में भारत विदेशों से अपनी कई प्राचीन धरोहरें वापस लाने में सफल रहा है। यह संत तिरुमंगई अलवर की मूर्ति भी भारत की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस मूर्ति की वापसी से भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के प्रयासों को और बल मिलेगा।

भारत सरकार और विभिन्न सांस्कृतिक संगठनों के प्रयासों से यह संभव हो पाया है कि विदेशों में मौजूद भारत की प्राचीन धरोहरें धीरे-धीरे अपने मूल स्थानों पर लौट रही हैं। इससे न केवल भारत के इतिहास और संस्कृति का संरक्षण हो रहा है, बल्कि भारतीय जनता को अपनी धरोहरों के प्रति गर्व का अनुभव भी हो रहा है।

अंत में, यह निर्णय न केवल भारत और ब्रिटेन के बीच सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि भारत की ऐतिहासिक धरोहरें अपने उचित स्थान पर सुरक्षित रहें। ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी का यह कदम अन्य संग्रहालयों और संस्थानों के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत बनेगा, जो भारतीय धरोहरों को सही मालिकों को लौटाने के प्रयासों में लगे हैं।

निष्कर्ष

भारत की ऐतिहासिक धरोहरों की वापसी का यह सिलसिला एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे देश की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और उसे भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी। संत तिरुमंगई अलवर की मूर्ति की वापसी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी, जो भविष्य में और भी कई धरोहरों की वापसी की उम्मीद जगाएगी।

और पढ़ें:- भारत की खोई हुई विरासत को पुन: वापस लाने का काम कर रही ‘भारत स्वाभिमान योजना’।

Exit mobile version