लोकसभा चुनाव सम्पन्न हो गए। 292 सीटों के साथ भाजपा नीत राजग को स्पष्ट बहुमत मिला है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। 1962 के बाद यह पहला मौका है, जब कोई पार्टी लगातार तीसरी बार सत्तारूढ़ हुई है। देशविरोधी ताकतों ने भारत विरोधी एजेंडे के तहत मोदी सरकार के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाया और भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए पूरा जोर लगाया।
चैटजीपीटी को बनाने वाली कंपनी ओपनएआई के अनुसार इस चुनाव में इस्राएल की एक कंपनी स्टोइक (रळडकउ) ने कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) की सहायता से चुनाव को प्रभावित करने की साजिश रची थी। फिर भी राजग जनमत की गाड़ी को 292 तक खींच लाया, तो इसे ‘400 पार’ माना जाना चाहिए। साथ ही, सभी के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर कैसे राष्ट्रविरोधी ताकतों, वामपंथी लॉबी ने इस चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास किया।
लेफ्टिनेंट जनरल (से.नि.) नितिन कोहली कहते हैं, ‘‘पिछले 10 साल में देश में बड़े पैमाने पर विकास हुआ है। मोदी सरकार ने रक्षा क्षेत्र को भी मजबूत किया। लेकिन वैश्विक ताकतें नहीं चाहती थीं कि फिर से मोदी सरकार बने, क्योकि अगर देश में राजनीतिक स्थिरता रहेगी तो आर्थिक उन्नति होगी जो कि पश्चिमी शक्तियां नहीं चाहतीं, इसलिए साजिश रची गई।’’
चुनाव में भारत विरोधी एजेंडे को हवा आईटी विशेषज्ञ नंदिनी शर्मा के अनुसार, ‘‘यूट्यूब, फेसबुक और एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बेहद शातिराना ढंग से इंडी गठबंधन ने ‘संविधान बदल देंगे’, ‘आरक्षण खत्म कर देंगे’, ‘योगी जी को हटा देंगे’ जैसे भ्रामक पोस्ट वायरल कराए। इसके लिए विशेषज्ञों की मदद ली गई।’’
डिसइंफो लैब नाम के एक संगठन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है, ‘‘इस लोकसभा चुनाव में हेनरी लुइस फाउंडेशन (एचएलएफ) और जॉर्ज सोरोस ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (ओएसएफ) ने भारत में मतदाताओं की राय को प्रभावित करने की बड़ी कोशिश की।
डिसइंफो की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मतदान के दौरान प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया की सहायता से चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की गई। इस कोशिश में विदेशी मीडिया ही नहीं, बल्कि भारत में मौजूद कुछ संस्थान भी शामिल थे।
विदेशों से रची गई साजिश चुनाव को प्रभावित करने के लिए फ्रांस, कनाडा, इस्राएल और अमेरिका तक से साजिशें रची गईं। विशेषकर फ्रांस के कुछ प्रतिष्ठित समाचारपत्र इसमें शामिल रहे। अखबारों में फ्रांस के राजनीतिक विश्लेषक क्रिस्टोफ जॉफरलेट के बयानों के आधार पर लेख छापे गए। डिसइंफो लैब ने अपनी रिपोर्ट में कनाडा के रिकन पटेल का भी नाम लिया है।
दावा किया गया है कि ‘‘भारत में आम चुनाव को प्रभावित करने के लिए रिकन पटेल के संस्थान नामती को एचएलएफ और ओएसएफ ने आर्थिक मदद पहुंचाई। एचएलएफ ने नामती को तीन लाख डॉलर, जबकि ओएसएफ ने 13.85 करोड़ डॉलर की आर्थिक मदद की।’’
एचएलएफ द्वारा इससे पहले भी कट्टरपंथी इस्लामियों और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को आर्थिक मदद पहुंचाई गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘क्रिस्टोफ और उनके सहयोगी गाइल्स वर्नियर्स ने अशोका विश्वविद्यालय में त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा (टीसीपीडी) के माध्यम से एक मनगढ़ंत कहानी को बढ़ावा दिया कि भारत की राजनीति में निचली जातियों का कम प्रतिनिधित्व है।’’
रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि क्रिस्टोफर ने 2021 में ‘जाति जनगणना की आवश्यकता’ पर एक लेख लिखा था। डिसइंफो लैब की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इसके एवज में क्रिस्टोफ जॉफरलेट को अमेरिका के हेनरी लुइस फाउंडेशन (एचएलएफ) ने अत्यधिक धनराशि दी थी। डिसइंफो लैब के अनुसार जॉफरलेट को ‘हिंदू बहुसंख्यकों के समय में मुस्लिम’ नामक लेख पर काम करने के लिए 3.85 लाख डॉलर की धनराशि दी गई।
डिसइंफो लैब का एक दावा यह भी है कि ‘‘एचएलएफ ने 2020 से 2024 तक भारत विरोधी एजेंडा चलाने के लिए कुछ और भी संस्थानों को धनराशि मुहैया कराई।’’ रिपोर्ट में बर्कले सेंटर फॉर रिलीजन, पीस एंड वर्ल्ड अफेयर्स का भी नाम उजागर किया गया है।
बर्कले को 3.46 लाख डॉलर की आर्थिक सहायता प्रदान की गई। इसके बाद बर्कले संस्थान ने हिंदू अधिकार और भारत की धार्मिक कूटनीति पर एक रिपोर्ट तैयार की। एचएलएफ ने सीईआईपी यानी कार्नेगी इडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस को सत्तावादी दमन, हिंदू राष्ट्रवाद और बढ़ते हिंदुओं पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए 1.20 लाख डॉलर की धनराशि दी।
सीईआईपी को इसके बाद एक और रिपोर्ट तैयार करने के लिए 40 हजार डॉलर की धनराशि दी गई। आरोप है कि यह धनराशि 2019 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ‘सत्ता में भाजपा: भारतीय लोकतंत्र और धार्मिक राष्ट्रवाद’ पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए दी गई।
एचएलएफ ने ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) से एशिया में हिंसा पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए तीन लाख डॉलर की धनराशि दी। एचआरडब्ल्यू ने अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान और अफगानिस्तान का नहीं, बल्कि भारत का नाम लिया। इसके अलावा आड्रे ट्रुश्के के संस्थान साउथ एशिया एक्टिविस्ट कलेक्टिव (एसएएसएसी) को भी एचएलएफ ने हिंदू राष्ट्रवाद पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए धनराशि दी।
सोशल मीडिया पर भारत विरोधी रवैया
चुनावों में वामपंथी मानसिकता वाले यूट्यूबरों और सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स ने एक से बढ़कर एक झूठी कहानियां गढ़कर भारतीय मतदाताओं को भ्रमित किया। ध्रुव राठी जैसे यूट्यूबरों, जिसके राजनीतिक जुड़ाव और झूठ को तथ्य बताने के खेल का खुलासा कई बार हुआ है, ने बड़े पैमाने पर प्रोपेगेंडा फैला कर लोगों को प्रभावित करने का प्रयास किया।
राठी के सिर्फ ‘मोदी: द रियल स्टोरी’ वीडियो को 27 मिलियन बार देखा गया। यूट्यूब, फेसबुक और एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इंडी गठबंधन की भ्रामक पोस्ट्स वायरल होती रहीं, जबकि भाजपा समर्थक पोस्ट की पहुंच जान-बूझकर कम की गई।
ध्रुव राठी हो या मोदी विरोधी कोई और यूट्यूबर, सबने सरकार की उपलब्धियों को बहुत बेईमानी से खारिज किया। बड़ी उपलब्धियों की या तो चर्चा नहीं की या फिर उनमें भी कुछ न कुछ खामियां निकालीं।
जॉर्ज सोरोस की भारत विरोधी मुहिम
पिछले साल अमेरिकी अरबपति उद्योगपति और भारत विरोधी एजेंडे के मुखिया जॉर्ज सोरोस ने जर्मनी के म्यूनिख रक्षा सम्मेलन में कहा था, ‘‘भारत तो एक लोकतांत्रिक देश है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं। मोदी के तेजी से बड़ा नेता बनने की अहम वजह भारतीय मुसलमानों के साथ की गई हिंसा है।’’
इससे पहले जनवरी 2020 में दावोस में हुई वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेते हुए सोरोस ने कहा था, ‘‘भारत को हिंदू राष्ट्रवादी देश बनाया जा रहा है।’’
सोरोस ने वैश्विक मीडिया में यह भ्रम भी फैलाया कि भारत में मोदी नागरिकता कानून (सीएए) के जरिए लाखों मुसलमानों से नागरिकता छीनने की कोशिश कर रहें हैं। सोरोस ने पिछले साल वैश्विक मीडिया में मोदी और भारत विरोधी कई बयान दिए और लोकसभा चुनाव के पहले और चुनाव के दौरान उनकी छवि बिगाड़ने की कोशिश की।
अर्बन नक्सली और एनजीओ गिरोह
भारत के विरोधी अर्बन नक्सलियों और एनजीओ ने प्रधानमंत्री मोदी का बेतहाशा विरोध किया, क्योकि मोदी सरकार नक्सलवाद के खिलाफ है। गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कहा है कि आतंकवाद और नक्सलवाद लोकतांत्रिक तरीके नहीं हैं और इन्हें समाप्त कर देना चाहिए।
जो हथियार डालकर आते हैं, उनका स्वागत है। अगर हथियार लेकर आओगे, तो उसका जवाब तो सुरक्षाबल देंगे। नक्सलवाद पर सख्ती की वजह से इन्होंने देशभर में फैले मोदी विरोधी एनजीओ गैंग की मदद से मोदी सरकार के खिलाफ प्रोपेगेंडा चलाया।
एआई से चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश
चैटजीपीटी को बनाने वाली कंपनी ओपनएआई के अनुसार इस्राएल की कंपनी स्टोइक ने मोदी सरकार को लक्षित करते हुए एआई के माध्यम से चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास किया। कंपनी का कहना है, ‘‘उसने 24 घंटे के भीतर कार्रवाई करते हुए ऐसे प्रयासों को रोक दिया था।
अपनी वेबसाइट पर जारी एक रिपोर्ट में कंपनी ने कहा कि इस्राएल आधारित एक पॉलिटिकल कैम्पेन मैनेजमेंट फर्म स्टोइक ने गाजा संघर्ष के साथ-साथ भारतीय चुनावों पर भी कुछ विवादित कंटेंट तैयार किया था, जो भाजपा के खिलाफ था।’’
ओपनएआई ने बताया कि उसने इस्राएल से संचालित किए जा रहे ऐसे कई अकाउंट्स पर रोक लगाई, जिनसे एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम, वेबसाइटों और यूट्यूब के लिए कंटेंट तैयार किए जा रहे थे। कंपनी ने बताया कि इस मुहिम से कनाडा, अमेरिका और इस्राएल में अंग्रेजी और हिब्रू भाषा से लोगों को चिह्नित किया जा रहा था।
मई में अंग्रेजी के माध्यम से भारतीय लोगों को चिह्नित करना शुरू किया गया। मई में नेटवर्क ने ऐसे कमेंट बनाने शुरू किए, जो भारत पर केंद्रित थे। उनमें सत्तारूढ़ भाजपा की आलोचना की जा रही थी, जबकि विपक्षी पार्टी कांग्रेस की प्रशंसा। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मोदी सरकार को गिराने के लिए हर संभव प्रयास किए गए।
भारत और बाहर से एजेंडा चलाने वाले लोगों को पहचानने की जरूरत है। तमाम कोशिशों के कारण भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला लेकिन राजग को स्पष्ट बहुमत मिलना एक सुखद संकेत है, जो यह दर्शाता है कि भारत विरोधी ताकतें पूरी तरह से पराजित हुई हैं।
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