बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लंबे समय से राज्य के लिए विशेष राज्य का दर्जा (Special Category Status, SCS) प्राप्त करने की वकालत की है। उनका कहना है कि यह दर्जा बिहार की विकास आवश्यकताओं और चुनौतियों को देखते हुए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख में, हम उन कारणों की जांच करेंगे जिनकी वजह से नीतीश कुमार इस दर्जे के लिए निरंतर प्रयासरत हैं और इसके संभावित प्रभावों पर भी विचार करेंगे।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
2013 में, नीतीश कुमार ने तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार पर बिहार के लिए SCS की मांग को लेकर दबाव डालने के लिए एक रैली का आयोजन किया था। 2024 में भी, नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) या जेडीयू इस मांग को प्रमुखता से उठा रहे हैं। जेडीयू, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इस गठबंधन से उनकी यह प्रमुख मांग है।
विशेष राज्य का दर्जा: एक परिचय
विशेष राज्य का दर्जा एक सांविधिक दर्जा है, जो 5वीं वित्त आयोग द्वारा लाया गया था। इसे देने की जिम्मेदारी पूर्व योजना आयोग की राष्ट्रीय विकास परिषद को सौंपी गई थी। इस दर्जा को प्राप्त करने के लिए पहाड़ी इलाका, कम जनसंख्या घनत्व, अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के बीच रणनीतिक स्थिति, आर्थिक और बुनियादी ढांचे की पिछड़ापन, और राज्य की वित्तीय स्थिति जैसे मानदंड होते हैं।
बिहार की आर्थिक स्थिति
बिहार भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक है। 9.76 लाख करोड़ रुपये के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के साथ, यह राज्य भारत की जनसंख्या में तीसरे सबसे बड़े हिस्से के लिए बहुत कम योगदान करता है। राज्य की प्रति व्यक्ति आय मात्र 59,637 रुपये है, जो भारत में सबसे कम है।
बुनियादी ढांचे की कमी
बिहार में बुनियादी ढांचे की कमी भी प्रमुख समस्या है। सड़कों की घनत्व में राष्ट्रीय रैंकिंग के तीसरे स्थान को छोड़कर, राज्य के अन्य बुनियादी ढांचे में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। यह स्थिति निवेश आकर्षित करने में भी विफल रही है।
ऐतिहासिक गलतियां और राजनीतिक अस्थिरता
स्वतंत्र भारत में बिहार की सबसे बड़ी बाधा फ्रेट इक्वलाइजेशन पॉलिसी थी, जिससे राज्य के संसाधन तटीय राज्यों में जाते रहे। इसके अलावा, 1950 से 1990 के बीच, राज्य में राजनीतिक अस्थिरता भी रही, जिससे विकास में बाधा उत्पन्न हुई।
नीतीश कुमार का कार्यकाल और सुधार
2005 से 2012 तक नीतीश कुमार का कार्यकाल बिहार के लिए एक स्वर्णिम अवधि थी। इस दौरान राज्य ने आर्थिक और सामाजिक सुधार देखे। इस अवधि में राज्य की अर्थव्यवस्था प्रति वर्ष औसतन 12 प्रतिशत की दर से बढ़ी। इसके बावजूद, SCS की मांग बनी रही।
वर्तमान स्थिति
2023 में, नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा में SCS के लिए एक प्रस्ताव पारित किया। हालांकि, 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर SCS की अवधारणा समाप्त हो चुकी है। इस रिपोर्ट ने सभी राज्यों के लिए विभाज्य पूल निधियों के हस्तांतरण को बढ़ाने की सिफारिश की है।
विशेष राज्य का दर्जा: फायदे और चुनौतियां
विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने वाले राज्यों को केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं में अधिक वित्तीय सहायता मिलती है। इसके अलावा, इन्हें उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, आयकर और कॉर्पोरेट टैक्स में महत्वपूर्ण रियायतें मिलती हैं। हालांकि, बिहार के पूर्व वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी का कहना है कि राज्य को मोदी सरकार से SCS प्रदान किए जाने की तुलना में अधिक मिला है।
राजनीति और भविष्य की रणनीति
नीतीश कुमार की SCS की मांग को लेकर राजनीति भी होती रही है। 2013 की दिल्ली रैली के बाद, नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को उम्मीदवार बनाए जाने के मतभेदों पर एनडीए को छोड़ दिया और लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ हाथ मिला लिया। यह राजनीतिक अस्थिरता राज्य के विकास को प्रभावित करती रही है।
निष्कर्ष
बिहार को निश्चित रूप से एक विशेष पैकेज की सख्त जरूरत है जो उसकी जरूरतों के अनुकूल हो, चाहे वह SCS हो या अन्य रूप में। लेकिन जब तक बातचीत जारी है, राज्य सरकार को अपने दम पर जो कुछ भी कर सकती है, करना चाहिए, जैसे राज्य की प्रशासन में आकार ले रही नई ‘ब्यूरोक्रेटिक हेगेमनी’ पर बहुत जरूरी कार्रवाई करना।
विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने की नीतीश कुमार की मांग आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके सफल होने के लिए राज्य की आंतरिक राजनीति और प्रशासनिक क्षमता को मजबूत करना आवश्यक है। बिहार को एक संतुलित और दीर्घकालिक विकास योजना की जरूरत है, जो राज्य की विशेष चुनौतियों और अवसरों का समुचित तरीके से उपयोग कर सके।
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