मणिपुर हिंसा: प्रधानमंत्री मोदी का सीधा हस्तक्षेप क्यों है महत्वपूर्ण?

मणिपुर में केंद्र सरकार, खासकर प्रधानमंत्री मोदी की निष्क्रियता के कारण भाजपा को भारी राजनीतिक नुकसान हुआ है।

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मणिपुर में जातीय हिंसा के 14 महीने बीत जाने के बावजूद, राज्य में खून-खराबा जारी है। कुकी उग्रवादियों द्वारा मैतेई समुदाय पर हमले, घरों में लूटपाट, आगजनी और हत्याओं ने राज्य को अस्थिर बना दिया है। सैकड़ों मैतेई लोग राहत शिविरों में शरण ले रहे हैं। इस संघर्ष ने न केवल मणिपुर में बल्कि समूचे देश में भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचाया है। इस मामले में अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सीधा हस्तक्षेप अनिवार्य हो गया है।

चुनावी पराजय और राजनीतिक नुकसान

मणिपुर में केंद्र सरकार, खासकर प्रधानमंत्री मोदी की निष्क्रियता के कारण भाजपा को भारी राजनीतिक नुकसान हुआ है। कांग्रेस ने मैतेई बहुल इनर मणिपुर सीट और नागा-कुकी बहुल आउटर मणिपुर सीट पर भाजपा को पराजित किया। मतदान के आंकड़े दर्शाते हैं कि मैतेई, नागा और कुकी-चिन समुदायों ने कांग्रेस को भारी समर्थन दिया, जो 2022 के विधानसभा चुनावों में 60 में से केवल पांच सीटें जीत पाई थी।

मणिपुर की सुरक्षा और प्रशासनिक पंगुता

केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने राज्य सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह के माध्यम से मणिपुर की स्थिति को संभालने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) की तैनाती और सुरक्षा व्यवस्था की कमान संभालने के बावजूद हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है।

जातीय संघर्ष और उग्रवादी गतिविधियां

कुकी उग्रवादियों द्वारा मैतेई लोगों की हत्याओं और अपहरण ने स्थिति को और भी भयावह बना दिया है। इससे मैतेई कट्टरपंथी समूहों – अरमाबाई टेंगोल और मैतेई लीपुन – का उदय हुआ। इन समूहों ने पुलिस शस्त्रागारों से हथियार लूटकर खुद को सशक्त किया। मैतेई और कुकी उग्रवादी समूहों के बीच जारी हिंसा के कारण राज्य में शांति स्थापित करने में असमर्थता बनी हुई है।

सुरक्षा बलों पर अविश्वास

मैतेई समुदाय को केंद्रीय सुरक्षा बलों पर भरोसा नहीं है, जबकि कुकी-चिन लोग मणिपुर पुलिस की तैनाती का विरोध कर रहे हैं। केंद्रीय सुरक्षा बलों पर कुकी उग्रवादियों का पक्ष लेने के आरोप लग रहे हैं। इस प्रकार, राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में सुरक्षा बलों की निष्क्रियता ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है।

अवैध प्रवास और मादक पदार्थों की तस्करी

म्यांमार से आए कुकी-चिन लोगों के अवैध प्रवास ने मणिपुर के पहाड़ी जिलों में जनसांख्यिकीय असंतुलन पैदा कर दिया है। ये अवैध अप्रवासी आरक्षित वनों को नष्ट कर अफीम की खेती कर रहे हैं। मादक पदार्थों की तस्करी से कुकी उग्रवादी समूहों को धन मिल रहा है, जिससे वे हथियार खरीद और भर्ती में सक्षम हो रहे हैं।

राज्य की प्रशासनिक और आर्थिक स्थिति

मणिपुर में प्रशासनिक पंगुता और भय का माहौल है। वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई हैं, स्वास्थ्य सेवाओं की हालत खस्ता है, और शैक्षणिक संस्थान मुश्किल से चल रहे हैं। हजारों युवा शिक्षा और रोजगार की तलाश में राज्य छोड़ चुके हैं। बेरोजगारी और आर्थिक अस्थिरता बढ़ रही है।

केंद्र सरकार की जिम्मेदारी और प्रधानमंत्री का हस्तक्षेप

राज्य के लोगों का मानना है कि केंद्र सरकार मणिपुर की स्थिति को सुलझाने में असफल रही है। प्रधानमंत्री मोदी का मणिपुर पर चुप्पी साधना राज्य के लोगों में गहरी नाराजगी पैदा कर रहा है। उनकी निष्क्रियता को राज्य के प्रति उदासीनता के रूप में देखा जा रहा है।

अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री मोदी मामले को अपने हाथ में लें और तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई शुरू करें। मणिपुर में कानून और व्यवस्था को रिमोट कंट्रोल से नहीं संभाला जा सकता। राज्य की निर्वाचित सरकार और मुख्यमंत्री को कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए।

निष्कर्ष

अगर सरकार निर्णायक, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम करती है, तो उग्रवादी समूहों को निष्क्रिय किया जा सकता है और हिंसा को समाप्त किया जा सकता है। मणिपुर में नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर को अपडेट करना भी महत्वपूर्ण है, ताकि कुकी-चिन अवैध प्रवासियों का पता लगाया जा सके और उन्हें म्यांमार वापस भेजा जा सके।

प्रधानमंत्री मोदी को मणिपुर की स्थिति को सुधारना अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनानी चाहिए। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा, जो राज्य में शांति और स्थिरता बहाल करेगा।

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