राम सेतु के जलमग्न संरचना का पहले कभी न देखा गया मानचित्र।

इसरो और नासा के आईसीईसैट-2 उपग्रह के वैज्ञानिकों ने पहली बार जलमग्न राम सेतु का एक विस्तृत मानचित्र तैयार किया है।

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और नासा के आईसीईसैट-2 उपग्रह के वैज्ञानिकों ने पहली बार जलमग्न राम सेतु का एक विस्तृत मानचित्र तैयार किया है। यह मानचित्र, टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 10-मीटर रेजोल्यूशन पर आधारित है और छह वर्षों के डेटा संग्रहण के बाद तैयार किया गया है। यह किसी भी जलमग्न संरचना के लिए पहला ऐसा विस्तृत मानचित्र है।

इस अद्वितीय मानचित्र की लंबाई 29 मीटर है और यह समुद्र तल से 8 मीटर ऊपर उठता है। इसे इसरो के जोधपुर और हैदराबाद के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र के वैज्ञानिकों ने प्रकाशित किया है। यह मानचित्र नासा के आईसीईसैट-2 उपग्रह से प्राप्त जल-प्रवेशी फोटोन का उपयोग करके राम सेतु के बारे में सूक्ष्म विवरण प्रदान करता है।

अद्वितीय तकनीकी उपलब्धि

वैज्ञानिकों के अनुसार, “रिपोर्ट नासा उपग्रह आईसीईसैट-2 के जल-प्रवेशी फोटोन का उपयोग करके राम सेतु के बारे में सूक्ष्म विवरण प्रदान करने वाली पहली रिपोर्ट है। हमारे निष्कर्ष राम सेतु और इसकी उत्पत्ति को समझने में सहायता कर सकते हैं।” इसरो के वैज्ञानिकों ने अमेरिकी उपग्रह की उन्नत लेजर तकनीक का उपयोग करके इस मानचित्र को विकसित किया है। टीम का नेतृत्व गिरिबाबु डांडाबाथुला ने किया और उन्होंने 11 संकीर्ण चैनलों की खोज की, जिनकी गहराई 2-3 मीटर है, जिससे मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य के बीच पानी का प्रवाह हो सकता है।

राम सेतु की भूवैज्ञानिक विशेषताएं

राम सेतु की जलमग्न श्रृंखला चूना पत्थर की शोल्स की एक श्रृंखला है। टीम ने 3-डी-व्युत्पन्न मापदंडों का उपयोग करके इस पुल की वर्तमान भौतिक विशेषताओं का निर्धारण किया, जैसे कि समोच्च, ढलान विश्लेषण और वॉल्यूमेट्रिक्स। इन मापदंडों ने पुल की भौगोलिक और भौतिक संरचना को बेहतर ढंग से समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

सांस्कृतिक महत्व

राम सेतु, जो भारत में धनुषकोडी को श्रीलंका के तलाईमन्नार द्वीप से जोड़ता है, का सांस्कृतिक महत्व भी है क्योंकि इसका उल्लेख रामायण में मिलता है। 9वीं सदी ईस्वी तक, फारसियों ने इस पुल को ‘सेतु बन्ध’ के नाम से पुकारा था। रामेश्वरम के मंदिर के रिकॉर्ड्स के अनुसार, यह पुल 1480 तक समुद्र स्तर के ऊपर था, जब एक तूफान ने इसे नष्ट कर दिया।

निष्कर्ष

इसरो और नासा के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह विस्तृत मानचित्र न केवल राम सेतु की संरचना और उसकी उत्पत्ति को समझने में मदद करेगा, बल्कि इस क्षेत्र के भूवैज्ञानिक और सांस्कृतिक अध्ययन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसरो की इस उपलब्धि ने भारत को वैश्विक स्तर पर उन्नत तकनीकी अनुसंधान में एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया है और भविष्य में भी ऐसे और खोजों की संभावना को प्रबल किया है।

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