इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में अवैध धर्मांतरण के मामले में एक आरोपी को जमानत देने से इंकार कर दिया। इस फैसले ने धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मांतरण के अधिकार पर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने इस मामले पर अपनी राय रखते हुए संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का उल्लेख किया और कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार किसी अन्य व्यक्ति को धर्मांतरित करने के अधिकार तक नहीं बढ़ाया जा सकता।
न्यायालय का अवलोकन
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने स्पष्ट रूप से कहा कि संविधान नागरिकों को अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है। लेकिन यह अधिकार किसी भी व्यक्ति को दूसरे को धर्मांतरित करने का अधिकार नहीं देता। यह महत्वपूर्ण है कि संविधान द्वारा दिया गया धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्तिगत है और इसे सामूहिक धर्मांतरण के अधिकार के रूप में नहीं देखा जा सकता।
व्यक्तिगत और सामूहिक अधिकारों का भेद
न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा, “संविधान हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार देता है। लेकिन यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार किसी दूसरे को धर्मांतरित करने के अधिकार के रूप में विस्तारित नहीं किया जा सकता।” न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि किसी व्यक्ति के धर्मांतरण का अधिकार।
पहले के फैसले की पुनरावृत्ति
2 जुलाई को दिए गए एक अन्य फैसले में भी न्यायालय ने इसी तरह के विचार व्यक्त किए थे। उस आदेश में न्यायालय ने कहा था कि यदि धर्मांतरण की प्रक्रिया को रोका नहीं गया तो देश की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक बन सकती है।
संविधान और धर्मांतरण
संविधान का अनुच्छेद 25 नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार दूसरों को धर्मांतरित करने की अनुमति नहीं देता। यह स्पष्ट है कि धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्तिगत है और इसे सामूहिक धर्मांतरण के अधिकार के रूप में नहीं देखा जा सकता।
अवैध धर्मांतरण पर न्यायालय का दृष्टिकोण
न्यायालय ने अवैध धर्मांतरण के मामलों पर कठोर रुख अपनाते हुए कहा कि ऐसे सम्मेलनों को तुरंत रोका जाना चाहिए जहां धर्मांतरण हो रहा हो। न्यायालय का मानना है कि यदि इस प्रक्रिया को रोका नहीं गया तो यह देश की धार्मिक और सामाजिक संरचना को प्रभावित कर सकता है।
निष्कर्ष
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह फैसला धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मांतरण के अधिकार के बीच के भेद को स्पष्ट करता है। यह निर्णय अवैध धर्मांतरण के मामलों पर न्यायालय के कठोर रुख को दर्शाता है और यह सुनिश्चित करता है कि संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का दुरुपयोग न हो। न्यायालय का यह दृष्टिकोण समाज में धार्मिक सद्भाव और सामंजस्य बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मांतरण के अधिकार के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भी आवश्यक है। न्यायालय का यह फैसला एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि कैसे संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का सही उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है और समाज में सामंजस्य बनाए रखा जा सकता है।
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