जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) ने हाल ही में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के अध्ययन के लिए तीन नए केंद्र स्थापित करने की घोषणा की है। यह घोषणा न केवल विश्वविद्यालय की शैक्षिक क्षमता को विस्तार देती है, बल्कि भारतीय ज्ञान पद्धति और राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के सिद्धांतों के अनुरूप भी है। इस निर्णय को विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक में 29 मई, 2024 को स्वीकृति मिली थी। इन केंद्रों की स्थापना ‘स्कूल ऑफ संस्कृत एन्ड इंडिक स्टडीज’ के तहत की जाएगी।
समिति का गठन और उसकी भूमिका
JNU ने इस निर्णय के पूर्व एक समिति का गठन किया था। इस समिति को दायित्व दिया गया था कि वो ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020’ और भारतीय ज्ञान पद्धति को विश्वविद्यालय में लागू कराने के तरीके तलाशे। समिति के अध्ययन और सुझावों के आधार पर ही यह निर्णय लिया गया कि विश्वविद्यालय में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के अध्ययन के लिए विशेष केंद्र स्थापित किए जाएँ।
केंद्रों की स्थापना के उद्देश्य
इन नए केंद्रों की स्थापना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- भारतीय ज्ञान पद्धति का संवर्धन: हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म की गहन अध्ययन और शोध द्वारा भारतीय ज्ञान पद्धति का विस्तार और संवर्धन।
- शैक्षिक और सांस्कृतिक अध्ययन: इन धर्मों के इतिहास, संस्कृति, दर्शन और साहित्य का विस्तृत अध्ययन और विश्लेषण।
- अंतरधार्मिक संवाद: विभिन्न धर्मों के बीच संवाद और सहिष्णुता को बढ़ावा देना।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के लक्ष्यों की पूर्ति: नीति के अंतर्गत भारतीय शिक्षा प्रणाली में पारंपरिक ज्ञान और मूल्य आधारित शिक्षा को समाहित करना।
जेएनयू का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
यह वही जेएनयू है जहाँ कभी वामपंथी छात्रों ने देश विरोधी नारेबाजी की थी, फरवरी 2016 की यह घटना मीडिया में सुर्खियाँ बनी थीं। इस पृष्ठभूमि में, विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय संस्कृति और धर्मों के अध्ययन के लिए केंद्रों की स्थापना एक महत्वपूर्ण परिवर्तन दर्शाती है। यह परिवर्तन विश्वविद्यालय की शिक्षा प्रणाली और सांस्कृतिक दृष्टिकोण में एक संतुलन लाने का प्रयास है।
दिल्ली विश्वविद्यालय का उदाहरण
इससे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) भी ‘सेंटर फॉर हिन्दू स्टडीज’ की स्थापना कर चुका है। DU के इस केंद्र के तहत मास्टर्स डिग्री का कोर्स उपलब्ध कराया गया और जल्द ही स्नातक डिग्री लाने की भी योजना है। इसके अतिरिक्त, DU में पहले से ही बौद्ध धर्म के अध्ययन को लेकर एक केंद्र है, जिसे अब ‘सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज इन बुद्धिज़्म’ के रूप में विकसित किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने इस उद्देश्य के लिए 35 करोड़ रुपए का फंड भी प्रदान किया है।
जेएनयू के अन्य पहल
इसके साथ ही, JNU में अन्य महत्वपूर्ण पहल भी की जा रही हैं:
- वॉटर कलेक्शन सेंटर्स और चेक डैम्स की स्थापना: छात्रों की लंबे समय से पानी की कमी की शिकायतों को ध्यान में रखते हुए, वॉटर कलेक्शन सेंटर्स और चेक डैम्स की स्थापना की जा रही है।
- दिव्यांग छात्रों के लिए ऑडिट: दिव्यांग छात्रों के लिए उपलब्ध सुविधाओं और समस्याओं को लेकर एक ऑडिट किया जाएगा।
- कर्मचारियों की सुरक्षा: एक संविदा पर बहाल कर्मचारी की आत्महत्या के बाद कर्मचारियों की सुरक्षा के संबंध में कदम उठाए जा सकते हैं।
छात्रों की भूमिका
छात्रों की भूमिका इस पूरे परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने कुलपति शांतिश्री D पंडित से मिलकर अपनी समस्याओं और सुझावों को रखा, जिससे विश्वविद्यालय प्रशासन को इन मुद्दों पर ध्यान देने का अवसर मिला। यह दर्शाता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र समुदाय के बीच संवाद और सहयोग की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं।
निष्कर्ष
जेएनयू में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के अध्ययन के लिए केंद्रों की स्थापना एक स्वागत योग्य कदम है। यह न केवल विश्वविद्यालय की शैक्षिक और सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करेगा, बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के उद्देश्यों की पूर्ति में भी सहायक सिद्ध होगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय के उदाहरण से प्रेरणा लेते हुए, जेएनयू भी भारतीय ज्ञान पद्धति के संवर्धन और विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके साथ ही, वॉटर कलेक्शन सेंटर्स, दिव्यांग छात्रों के लिए ऑडिट और कर्मचारियों की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान देकर विश्वविद्यालय ने यह साबित किया है कि वह अपने छात्रों और कर्मचारियों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील है।
इस प्रकार, यह निर्णय न केवल जेएनयू के शैक्षिक परिदृश्य को विस्तार देगा, बल्कि भारतीय संस्कृति और धर्मों के अध्ययन में नए आयाम जोड़ेगा। इस परिवर्तनकारी पहल के माध्यम से, जेएनयू न केवल एक अकादमिक संस्थान के रूप में बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षक के रूप में भी स्थापित हो सकता है।
और पढ़ें:- उत्तराखंड की चारधाम तीर्थ यात्रा: एक आर्थिक और धार्मिक महायात्रा