दिल्ली के साकेत कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख नेता, मेधा पाटकर को आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी ठहराया गया है। यह मामला दिल्ली के उप-राज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दायर किया गया था। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने मेधा पाटकर को पांच महीने की कैद और दस लाख रुपये जुर्माने का आदेश दिया है, जिसे वीके सक्सेना को भुगतान करना होगा। इस फैसले में न्यायालय ने मेधा पाटकर के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सजा की अवधि को 30 दिनों तक निलंबित रखने का भी आदेश दिया।
अदालत का फैसला
24 मई को अदालत ने मेधा पाटकर को भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत दोषी ठहराया था। यह धारा आपराधिक मानहानि से संबंधित है और इसमें अधिकतम दो साल की सजा का प्रावधान है। अदालत ने पाया कि मेधा पाटकर ने वीके सक्सेना के खिलाफ गलत जानकारी के आधार पर आरोप लगाए थे, जिनका उद्देश्य केवल उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना था।
मामले का इतिहास
मामले का इतिहास 25 नवंबर, 2000 से शुरू होता है, जब मेधा पाटकर ने अंग्रेजी में एक बयान जारी कर वीके सक्सेना पर हवाला के जरिये लेनदेन का आरोप लगाया था और उन्हें ‘कायर’ कहा था। पाटकर ने सक्सेना पर गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रखने का आरोप लगाया था। यह बयान सक्सेना की ईमानदारी और उनके कार्यों पर सीधा हमला था।
बचाव में मेधा पाटकर
मेधा पाटकर ने अदालत में अपनी सफाई में कहा कि वीके सक्सेना 2000 से ही उनके खिलाफ झूठे और मानहानि वाले बयान जारी करते रहे हैं। पाटकर ने यह भी आरोप लगाया कि 2002 में सक्सेना ने उन पर शारीरिक हमला किया था, जिसके बाद उन्होंने अहमदाबाद में एफआईआर दर्ज कराई थी। उन्होंने दावा किया कि सक्सेना कॉरपोरेट हितों के लिए काम कर रहे थे और सरदार सरोवर प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों के खिलाफ थे।
कानूनी प्रक्रिया
वीके सक्सेना ने 2001 में अहमदाबाद की कोर्ट में मेधा पाटकर के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया था। इस मामले को गुजरात के ट्रायल कोर्ट ने संज्ञान में लिया था। 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गुजरात से दिल्ली के साकेत कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया था। 2011 में मेधा पाटकर ने खुद को निर्दोष बताते हुए ट्रायल का सामना करने की बात कही थी। जब वीके सक्सेना ने अहमदाबाद में केस दायर किया था, उस समय वे नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे।
निष्कर्ष
इस मामले में अदालत का फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। मेधा पाटकर के आरोप, जो बिना ठोस प्रमाण के लगाए गए थे, न केवल वीके सक्सेना की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने का प्रयास थे, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि समाज में झूठे आरोपों के माध्यम से किसी की छवि खराब करना कितना खतरनाक हो सकता है।
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