9 अगस्त का दिन भारत के लिए खास था। क्योंकि टोक्यो ओलिम्पिक के गोल्डन बॉय नीरज चोपड़ा अब पेरिस में जेवलिन थ्रो करने जा रहे थे।
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में पढ़ रही चार पांच सहेलियां भी इस मौके को मिस नहीं करना चाहती थीं। ये सभी ट्रेनी डॉक्टर्स थीं। नीरज का वो इवेंट देर रात तक चला…
नीरज ने अपने सीजन का दूसरा बेस्ट थ्रो किया और सिल्वर मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया। लेकिन कोलकाता में उनकी एक फैन के साथ जो हुआ…उसने पूरे देश को शर्मसार कर दिया।
31 साल की एक ट्रेनी डॉक्टर मैच देखने के बाद सेमिनार रूम में ही पढ़ाई में जुट गई थी, क्योंकि वहां कोई रेस्ट रूम नहीं था। पढ़ते-पढ़ते डॉक्टर सो जाती है, लेकिन फिर उसकी आंखें कभी नहीं खुलती। सुबह उसका क्षत-विक्षत शव मिलता है। आज उस घटना को 10 दिन से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका है, केस सीबीआई को ट्रांसफर किया जा चुका है, लेकिन कई बड़े सवाल हैं, जिनका जवाब अभी तक किसी के पास नही है।
पहला सवाल: अस्पताल प्रबंधन ने मृतका के परिजनों को इंतजार क्यों करवाया ?
मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने मृतका के परिजनों को देर से जानकारी क्यों दी और हत्या को सुसाइड क्यों बताया गया? उन्हे तीन घंटे तक बॉडी क्यों नहीं दिखाई गई ? इस दौरान क्राइम सीन पर क्या चल रहा था ?
दूसरा सवाल: अंतिम संस्कार में जल्दबाज़ी, लेकिन FIR में देरी क्यों ?
जानकारी सामने आई है कि पुलिस ने मृतक ट्रेनी डॉक्टर के परिवार पर दबाव डाल कर उसका अंतिम संस्कार जल्दी करवा दिया। अंतिम संस्कार हुआ रात करीब 8.30 बजे, जबकि FIR दर्ज की गई रात 11.45 बजे। यानी अंतिम संस्कार से करीब तीन घंटे बाद। आखिर ऐसा क्यों किया गया ? FIR दर्ज करने में कई घंटे लगाने वाली पुलिस अंतिम संस्कार करवाने के लिए इतनी जल्दी में क्यों थी? ताकि बाद में किसी तरह की छानबीन के लिए सबूत ही न बचें ?
तीसरा सवाल : जहां वारदात, वहीं रेनोवेशन क्यों ? क्या CBI जांच से पहले सबूत मिटाने की कोशिश ?
जिस सेमिनार रूम में वारदात हुई, उसके ठीक सामने वाले रूम में मरम्मत के नाम पर तोड़फोड़ क्यों की गई। जानकारी के मुताबिक क्राइम सीन से सिर्फ 20 फीट की दूरी पर स्थिति एक कमरे को रेनेवोशन के नाम पर तोड़ा गया, वहां रंगाई और पुताई की गई। और ये सब हुआ आरजीकर मेडिकल कॉलेज के प्रिसिंपल संदीप घोष के कहने पर वो भी पुलिस के सामने । जिस अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर की इतनी बेरहमी से रेप और हत्या हुई हो वहां डॉक्टर्स के लिए रेस्टरूम के नाम पर रेनोवेशन करवाने को क्या सबूत मिटाने का प्रयास नहीं समझा जाना चाहिए, जबकि डॉक्टर्स तो पहले ही हड़ताल पर बैठे थे। क्या इस मरम्मत को जांच पूरी होने तक टाला नहीं जा सकता था, और इसे सबूतों को मिटाने की कोशिश के तौर पर क्यों नहीं लिया जाना चाहिए ?
चौथा सवाल: भीड़ कहां से आई, और वारदात वाली इमारत में तोड़फोड़ क्यों?
मीडिया में खबरें आने के बाद जब मरम्मत का काम रोक दिया गया तो उसके कुछ घंटे बाद ही हजारों की भीड़ रातों-रात अस्पताल में घुस आती है। ये भीड़ प्रदर्शन कर रहे डॉक्टर्स पर हमला कर देती है और एमरजेंसी ब्लॉक पहुंच कर वहां तोड़फोड़ करती है। ये भीड़ उसी एमजरेंसी बिल्डिंग को निशाना बनाती है, जिसके कोने कोने में वारदात के सबूत बिखरे रहे होंगे। सीसीटीवी कैमरे तक तोड़ दिए जाते हैं ? हांलांकि पुलिस दावा करती है कि सबूत सुरक्षित हैं। अब पुलिस ने इसमें करीब 40 लोगों की पहचान की है, इसमे एक आरोपी के टीएमसी नेताओं के साथ संबंध बताए जा रहे हैं। जबकि फैजल, शाहरुख, कासिम, सरफराज और रेहान नाम के कुछ अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार किया गया है और ये सब अस्पताल के पास ही बस्तियों में रहते हैं।
मजे की बात ये है कि कोलकाता पुलिस इस दौरान बिल्कुल असहाय नजर आती है। उसे न तो भीड़ के इरादों का पता चलता है, और नहीं इतनी बड़ी भीड़ के अस्पताल पहुंचने का। लेकिन अपनी खामियों को मानने की जगह पुलिस कमिश्नर विनीत गोयल उल्टा इसके लिए मीडिया को ही दोषी ठहरा देते हैं।
अब सवाल ये है कि ये भीड़ किसके इशारे पर और किसलिए वहां पहुंची थी ? और इस भीड़ ने सिर्फ उसी इमारत पर हमला क्यों किया, जहां वारदात हुई थी ? क्या इसकी स्क्रिप्ट पहले से ही लिखी जा चुकी थी। और इस पटकथा के लेखक-निर्देशक कौन थे?
इस हमले की टाइमिंग भी इसलिए अहम है, क्योंकि इसके ठीक एक दिन बाद सीबीआई इस केस में जांच शुरू करने वाली थी, तो क्या भीड़ या उसमें शामिल लोग सीबीआई के पहुंचने से पहले ही सबूत नष्ट करना चाहते थे ?
पांचवा सवाल: मृतका की डायरी के पेज किसने फाड़े ?
मृतका के परिजनों के मुताबिक ट्रेनी डॉक्टर रोजाना डॉयरी लिखती थी, और उसमें दैनिक गतिविधियों का ब्योरा दर्ज करती थी, लेकिन घटना के बाद जब उसकी डायरी बरामद की गई, तो उसमें कई पन्ने गायब मिले। आखिर इन गायब पन्नों का राज क्या है ? इन्हें क्यों फाड़ा गया ? क्या इनमें मेडिकल कॉलेज प्रबंधन से जुड़े कुछ राज दर्ज थे और क्या इनका संबंध इस वारदात से तो नहीं है ?
क्योंकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो आरजीकर मेडिकल कॉलेज में ऐसी कई अवैध गतिविधियां चल रही थीं, जिनकी भनक ट्रेनी डॉक्टर को लग चुकी थी और अगर ये राज सामने आते तो, कई सफेदपोश हस्तियों के राजफाश का डर था। तो क्या ये सब उस ट्रेनी डॉक्टर को चुप कराने के लिए तो नहीं किया गया, जिसे रेप और मर्डर का रूप दे दिया गया। ताकि मीडिया से लेकर विपक्ष का फोकस कहीं और शिफ्ट हो जाए और असल कहानी नेपथ्य पर चली जाए ? बहरहाल इस केस में जिस तरह पुलिस ने शुरुआती छानबीन की है, उसमें कई खामियां हैं और मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की भूमिका तो सवालों के घेरे में है ही। लेकिन इसके बावजूद आरजी कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष पर कार्रवाई करने की जगह उन्हें किसी दूसरे मेडिकल कॉलेज का प्रिंसपल बना दिया गया। ये भी अपने आप में हैरानी का विषय है और इसे लेकर आज सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से गंभीर सवाल पूछे हैं।
उम्मीद है कि सीबीआई इन सवालों की तहों तक पहुंचेगी और सच को सामने लाएगी