10 साल बाद जम्मू कश्मीर में एक बार फिर चुनाव होने जा रहे हैं। 90 विधानसभा सीटों वाले इसे राज्य में (PoK की 24सीट अतिरिक्त) हरियाणा के साथ ही चुनावों का ऐलान हुआ था। जम्मू-कश्मीर की भौगौलिक स्थिति और सुरक्षा इंतजामों देखते हुए यहां तीन चरणों में चुनाव करवाए जाने हैं, जो कि 18 सितंबर से 1 अक्टूबर तक चलेंगे और 4 अक्टूबर को नतीजों का ऐलान होगा।
कांग्रेस को बताना होगा कि क्या वो 370 बहाल करना चाहती है ?
ये चुनाव कितने अहम होने वाले हैं, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि बीजेपी ने इस दौरान जहां अपनी चुनावी टीम का ऐलान कर दिया है, तो वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और नेता विपक्ष राहुल गांधी खुद कश्मीर में हैं, जहां उन्होने फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन का फैसला किया है।
जाहिर है इस गठबंधन के बाद अब कांग्रेस पर आर्टिकल 370 को लेकर अपना रुख साफ करने का भी दबाव बढ़ गया है। अब उसे स्पष्ट करना ही होगा कि क्या वो भी नेशनल कॉन्फ्रेंस की तरह 370 का समर्थन करती है, या वो इसे हटाए जाने के केंद्र सरकार के फैसले के साथ है। क्योंकि फारुख अब्दुल्ला साफ कर चुके हैं कि 370 की बहाली उनके एजेंडे में सबसे ऊपर है और कांग्रेस का इस पर क्या रुख है, ये वो ही जाने।
आर्टिकल 370 के बाद बदले कश्मीर में पहले चुनाव
करीब एक दशक बाद होने वाले ये चुनाव इस नजरिए से भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि बीते 10 सालों में इस राज्य ने जितने बदलाव देखे हैं, शायद ही भारत के किसी अन्य हिस्से या प्रदेश ने महसूस किए हैं। ये बदलाव सामाजिक भी हैं, आर्थिक भी और स्पष्ट रूप से राजनैतिक भी, और इन बदलावों का मूल कारक है आर्टिकल 370 का निरस्त होना। संविधान का वो विवादित अनुच्छेद, जिसकी वजह से जम्मू कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा हासिल था और इस अनुच्छेद की आड़ लेकर जम्मू कश्मीर में भारत के कानून, विशेषकर संविधान के कई हिस्से तक लागू नहीं होने दिए गए। जिसमें कई मौलिक अधिकार और sc/st/obc आरक्षण तक शामिल हैं।
अंतत: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 को रद्द करने का फैसला किया और 5 अगस्त 2019 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संसद में ऐलान के साथ ही ये विवादित अनुच्छेद अतीत का हिस्सा बन गया। (याद रहे, ये मोदी सरकार के सबसे बड़े और साहसिक फैसलों में एक है
आर्टिकल 370 रद्द होने के बाद मुख्यधारा में लौटा कश्मीर
आर्टिकल 370 रद्द होने के बाद कश्मीर की बदली तस्वीरें हर किसी ने देखी हैं और महसूस भी की हैं। फिर चाहे वो कंटीली बाड़ों से घिरे रहने वाले लाल चौक का तिरंगे से जगमग होना हो, या फिर कर्फ्यू के सन्नाटे में लिपटी रहने वाली श्रीनगर की सड़कों पर सैलानियों की भीड़।
आंकड़े बताते हैं कि अब कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं न के बराबर हो चुकी हैं, और घाटी के युवा अब मुख्यधारा की तरफ लौट रहे हैं। बदलाव की इसी बयार के बीच कश्मीर में पहला मल्टीप्लेक्स खुल चुका है (कट्टरपंथियों की वजह से सिनेमाहॉल बंद हो चुके थे) निजी निवेश आ रहा है और जी-20 बैठक का भी आयोजन हो चुका है। कुल मिलाकर ये कश्मीर 2.0 है, जिसकी आज से 5-6 साल पहले कल्पना तक नहीं की जा सकती थी।
आर्टिकल 370 पर कांग्रेस की न तो YES, न ही NO
आर्टिकल 370 हटाने का ये ऐलान, इस मायने में भी मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ, क्योंकि इससे देश की अधिकांश राष्ट्रीय या बड़ी क्षेत्रीय पार्टियां हतप्रभ रह गईं। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी या फिर BSP जैसे दल न तो सरकार के इस फैसले को स्वीकार ही कर पाए और न ही इसका विरोध कर सके। कश्मीर के क्षेत्रीय दलों, जैसे पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस जरूर आर्टिकल 370 को बहाल करने की मांग करते रहे हैं, बल्कि ये उनके चुनावी एजेंडे का हिस्सा भी है।
लेकिन कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर बीच का रास्ता अपनाती रही है। आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने एक प्रस्ताव पास किया था और आर्टिकल 370 हटाए जाने को लेकर मोदी सरकार के तरीके की आलोचना की थी, लेकिन उसका विरोध मुख्यरूप से आर्टिकल 370 रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया को लेकर ही था। कांग्रेस ने ऐसा कभी नहीं कहा कि वो आर्टिकल 370 के पक्ष में है, या फिर वो उसे बहाल करेगी। यही नहीं राहुल गांधी भी 370 पर स्पष्ट रूप से कुछ भी कहने से बचते रहे हैं।
गुपकार समझौता: कांग्रेस का पहले हां, फिर ना
हालांकि यहां ये जानना भी जरूरी है कि कांग्रेस आर्टिकल 370 को लेकर बने गुपकार एलायंस का शुरुआती हिस्सा थी। इस गठबंधन का गठन 4 अगस्त 2019 को श्रीनगर में एनसी मुखिया फारुख अब्दुल्ला के गुपकार रोड स्थिति आवास में हुआ था। जिसमें कश्मीर की मुख्य पार्टियों के अलावा कांग्रेस ने भी शिकरत की थी। इन दलों के आपसी समझौते को PAGD यानी पीपल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन कहा गया। इस डिक्लेरेशन का मकसद था जम्मू कश्मीर में 5 अगस्त 2019 से पहले की स्थिति को बहाल करना। यानी आर्टिकल 370 और 35-A की वापसी।
दिलचस्प बात ये है कि 22 अगस्त 2020 को जारी किए गए दूसरे गुपकार घोषणापत्र में जिन सात दलों ने दस्तखत किए थे, उनमें कांग्रेस भी एक थी।
हालांकि कुछ महीने बाद, 17 नवंबर 2020 को कांग्रेस ने खुद को गुपकार गठबंधन से अलग कर लिया और दावा किया कि उन्होने ऐसे किसी घोषणापत्र पर दस्तखत नहीं किए। (कांग्रेस ने कभी भी आर्टिकल 370 हटाए जाने का समर्थन भी नहीं किया)
आर्टिकल 370- कांग्रेस के सामने आगे कुआं-पीछे खाई !
लेकिन अब जबकि कांग्रेस, जम्मू कश्मीर चुनाव के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन को तैयार है, तो उसे ये भी स्पष्ट करना चाहिए कि गठबंधन के सहयोगी होने के नाते वो आर्टिकल 370 बहाल करने की NC की मांग का समर्थन करती है या नहीं ?
दरअसल आर्टिकल 370 रद्द होने के बाद जम्मू – कश्मीर के सियासी हालात भी बदल चुके हैं। परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में कुल 7 नई विधानसभा सीटें जोड़ी गई हैं, जिसमें 6 जम्मू और 1 सीट कश्मीर में जोड़ी गई है। इस तरह जम्मू क्षेत्र में अब कुल 43 विधानसभा सीट हैं, तो वहीं कश्मीर में 46। जम्मू में जिन क्षेत्रों में नए विधानसभा क्षेत्र जोड़े गए हैं, कठुआ,सांबा और हीरानगर, वहां हिंदुओं की आबादी 85% से अधिक है, जबकि राजौरी, पुंछ, और किश्तवाड़ में भी हिंदू मतदाता 30 से 35 प्रतिशत के बीच हैं। यानी जम्मू कश्मीर में, जहां अभी तक कश्मीर क्षेत्र का प्रभुत्व दिखता था (आजादी के बाद सारे मुख्यमंत्री कश्मीर से हुए हैं) वो प्रभुत्व स्पष्ट रूप से जम्मू क्षेत्र की तरफ झुका है और पहली बार हिंदू मतदाता इस राज्य का सियासी भविष्य तय करने में बड़ी भूमिका अदा करेंगे।
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इन बदले हुए समीकरणों में राहुल गांधी का ये गठबंधन उन्ही का नुकसान न कर बैठे। क्योंकि अगर वो खुल कर 370 का समर्थन करते भी हैं, तो भी इस बात की संभावना कम ही है, कि कांग्रेस को कश्मीर में कोई फायदा मिले। जबकि इससे हिंदू बहुल जम्मू में नुकसान की पूरी आशंका है, जहां इस बार 43 सीट हैं।
370 का समर्थन करके जम्मू-कश्मीर में आरक्षण का विरोध करेगी कांग्रेस ?
यही नहीं कश्मीर में पहली बार 9 सीटें SC समुदाय के लिए आरक्षित की गई हैं, और ये आरक्षण आर्टिकल 370 के रद्द होने की वजह से ही मुमकिन हो सका है। ऐसे में अगर कांग्रेस NC के साथ आर्टिकल 370 के पक्ष में खड़ी दिखती है, तो इन सीटों पर उसे किसी किस्म का समर्थन मिलेगा ? ये तो बड़ा सवाल है ही, ये भी सवाल है कि आरक्षण के नाम पर राजनीति कर रही कांग्रेस क्या जम्मू कश्मीर में आरक्षण के विरोध में दिखना चाहेगी ?
कुल मिलाकर ये गठबंधन कांग्रेस को एक ऐसे दोराहे पर खड़ा कर सकता है, जहां जम्मू कश्मीर में उसे कोई फायदा हो न हो, राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा नुकसान पहुंच सकता है।
लेकिन गठबंधन की बैसाखी की आदत डाल चुकी कांग्रेस का पूरा जोर फिलहाल बीजेपी को रोकने पर है और इसके लिए वो किसी भी समझौते को तैयार नजर आ रही है।