भारत के दीक्षांत समारोहों में औपनिवेशिक पोशाक का अंत: एक ऐतिहासिक बदलाव

दीक्षांत समारोह में भारतीय पोशाक पहनना सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण निर्णय।

भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जो देश के चिकित्सा संस्थानों में दीक्षांत समारोहों की परंपरा को एक नई दिशा देने वाला है। शुक्रवार को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए नए आदेश के तहत, अब एम्स और अन्य चिकित्सा संस्थानों में दीक्षांत समारोहों के लिए औपनिवेशिक ड्रेस कोड को बदलकर भारतीय पोशाक को अपनाया जाएगा। यह कदम औपनिवेशिक विरासत को समाप्त करने और भारतीय सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण निर्णय है।

गाउन और टोपी औपनिवेशिक शासन का प्रतीक

इस ड्रेस कोड की शुरुआत 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश राज के दौरान हुई थी, खासकर लॉर्ड कार्नवालिस के वायसराय के समय में। ब्रिटिश साम्राज्य ने अपने उपनिवेशों में पश्चिमी शिक्षा और औपचारिकता का प्रतिनिधित्व करने के लिए गाउन और टोपी जैसे वस्त्र अपनाए। ये वस्त्र यूरोप के मध्य युग से शुरू हुए थे और एक विशिष्ट औपचारिकता की पहचान बन गए थे। यह पोशाक औपनिवेशिक शासन की ताकत और प्रभाव का प्रतीक बनी और भारतीय शिक्षा संस्थानों में इसे लागू किया गया। वर्तमान में चल रही परंपरा एक औपनिवेशिक विरासत है, जिसे बदलने की जरूरत है। इसके साथ ही, यह कदम भारतीय समाज के विभिन्न हिस्सों के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव और एकता को भी प्रोत्साहित करेगा।

ड्रेस बनाने में स्‍थानीय परंपरा को अपनाएं

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने कहा है कि यह निर्णय लिया गया है कि चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने में लगे एम्स/आईएनआई सहित मंत्रालय के विभिन्न संस्थान उस राज्य की स्थानीय परंपराओं के आधार पर अब अपने संस्थान के दीक्षांत समारोह के लिए उपयुक्त भारतीय ड्रेस डिजाइन कर सकते हैं। इस प्रकार, भाजपा का यह निर्णय भारतीय समाज के सांस्कृतिक आत्मसम्मान और पहचान को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।

विश्‍व नाथ झा। 

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