जानें बांग्‍लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की तख्तापलट की घटना के पीछे का सच

बांग्‍लादेश की पांच बार प्रधानमंत्री रही शेख हसीना को उनके समर्थक हमेशा ‘आयरन लेडी’ के रूप में सराहते रहे हैं। पर अब उनके 17 साल के शासन का नाटकीय ढंग से अंत हो गया है।

हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बीच 5 अगस्‍त को शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्‍तीफा देकर देश छोड़ दिया। बांग्‍लादेश में पिछले कुछ समय से छात्र आंदोलन के दौरान सरकार के रुख और सुरक्षा बलों की कार्रवाई के दौरान सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी। इसके खिलाफ उभरे जन आक्रोश को देखते हुए अनहोनी की आशंका पहले से ही जताई जा रही थी। लगातार बिगड़ते हालात के बीच मजबूरन शेख हसीना को देश छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा।

आंदोलन की पृष्‍ठभूमि लम्‍बे समय से बन रही थी

बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट और इतने बड़े पैमाने पर हिंसक आंदोलन के पीछे एक बड़ी वजह ये भी रही कि लोगों में असंतोष लंबे समय से पनप रहा था। लगभग 17 करोड़ आबादी वाले बांग्लादेश ने हाल के सालों में तेज आर्थिक विकास दर्ज की, इसके बावजूद बेरोजगारी काफी है, अनुमान है कि लगभग 1 करोड़ 8 लाख युवा बेरोजगार हैं और पढ़े-लिखे युवाओं में बेरोजगारी दर ज्यादा है। इसलिए युवा सरकारी नौकरियों में कोटा का विरोध कर रहे थे। उन्हें लगा कि इससे उनके लिए रोजगार के मौके और कम हो जाएंगे। इसलिए युवाओं ने अंतिम में करो या मरो की नीति पर चलने का फैसला किया।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आरक्षण के मसले पर उभरे छात्र आंदोलन को बांग्‍लादेश के मौजूदा हालात का एक तात्‍कालिक कारण जरूर माना जा सकता है। पर इसकी पृष्‍ठभूमि लम्‍बे समय से बन रही थी। पिछला चुनाव उन्‍होंने विपक्षी दलों के बहिष्‍कार के बीच जीता। इसके अलावा उन पर सरकारी संस्‍थओं के दुरुपयोग और सत्‍ता की ताकत से विरोध का दमन करने और विपक्षी कार्यकर्ताओं की हत्‍या तक के आरोप लग रहे हैं। 1971 के मुक्ति संग्राम में भाग लेने वालों के वंशजों के लिए 30 प्रतिशत सरकारी नौकरियों को आरक्षित करने वाली नीति का विरोध करते हुए व्‍यापक रूप से आवामी लीग के नेतृत्‍व वाली सरकार के पतन में एक महत्‍वपूर्ण कारक के रूप में देखा जा सकता है।

बाहरी प्रभावों का भी पड़ा असर

इसके अतिरिक्‍त बाहरी प्रभावों जैसे कि अमेरिका और चीन के बीच भू-राजनीतिक प्रतिस्‍पर्धा और कट्टरपंथी तत्‍वों के लिए पाकिस्‍तान का मौन समर्थन ने स्थिति को और जटिल बना दिया। बांग्‍लादेश में बार बार होने वाली राजनीतिक अस्थिरता को इस्‍लामवादी ताकतों के लगातार उभार के लिए भी जिम्‍मेदार ठहराया जा सकता है। इस धारणा के विपरीत कि बांग्‍लादेश के एक स्‍वतंत्र राज्‍य के रूप में गठन ने ‘दो राष्‍ट्र सिद्धांत’ को बदनाम कर दिया, जिसके कारण भारत का विभाजन हुआ और ‘राजनीतिक इस्‍लाम’ का उदय हुआ, बांग्‍लादेश में इस्‍लामवाद के पुनरुत्‍थान ने इन अवधारणाओं की पुष्टि की है। राजनीतिक इस्‍लाम के आदर्श जिन्‍हें कभी बांग्‍लादेश के निर्मार्ण के साथ ही समाप्‍त माना गया था आज भी स्थिर लोकतंत्र की स्‍थापना के लिए चुनौती बने हुए हैं। ध्‍यान देने वाली बात यह है कि राजनीत‍ि इस्‍लाम केवल जमात- ए- इस्‍लामी तक सीमित नहीं है जो बांग्‍लादेश का सबसे बड़ा इस्‍लामी समूह है।

शेख हसीना की सरकार द्वारा उठाए गए कदमों खास तौर पर युद्ध अपराधियों के खिलाफ मुकदमे और आतंकवादियों पर कार्रवाई, जिसमें जमात- ए- इस्‍लामी जैसे समूहों पर प्रतिबंध लगाना भी शामिल है, ने इन तकतों को अस्‍थायी रूप से नियंत्रित करने में कामयाबी हासिल की, हालांकि जेईआई के गहरे सामाजिक आधार ने इसे फिर से मजबूत होने का मौका दिया, जबकि इसके कई नेताओं को युद्ध अपराध के मुकदमों के जरिए फांसी दी गई।

भारत में राजनीतिक मंथन का दौर शुरू

बांग्‍लादेश की पूर्वप्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत का भरोसेमंद सहयोगी के रूप में जाना जाता है । अब उनके सत्‍ता से बाहर होने के बाद भारत में राजनीतिक मंथन का दौर शुरू हो गया है। भारत सरकार बांग्‍लादेश की राजनीतिक गतिविधी पर पैनी नजर रखी हुई है। सुरक्षा इंतजामों अैर कूटनीतिक तैयारियों को लेकर भारत सरकार काफी गंभीर है। शेख हसीना के 17 साल के कार्यकाल के बाद सत्‍ता से जाने का मतलब है कि भारत ने इस क्षेत्र में एक भरोसेमंद साथी खो दिया है। हसीना भारत का मित्र रही हैं और भारत ने बांग्‍लादेश से संचालित आतंकवादी समूहों का मुकाबला करने के लिए उनके साथ मिलकर काम किया है। इस साझेदारी ने दोनों देशों को एक दूसरे के करीब ला दिया और भारत ने कई परियोजनाओं के लिए बांग्‍लादेश को सहयोग और सहायता दिया।

हसीना ने सैन्‍य शासित बांग्‍लादेश को स्थिरता प्रदान की

बांग्‍लादेश के संस्‍थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना 2009 से सामरिक रूप से अति महत्‍वपूर्ण इस दक्षिण एशियाई देश की बागडोर संभाल रही थीं। उन्‍हें जनवरी में हुए 12 वें आम चुनाव में लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री चुना गया था। हसीना को सैन्‍य शासित बांग्‍लादेश को स्थिरता प्रदान करने के लिए जाना जाता है। साथ ही उनके विरोधियों द्वारा उन्‍हें एक ‘निरंकुश’ नेता बताकर उनकी आलोचना भी की जाती है। हसीना सबसे लम्‍बे समय तक शासन करने वाली दुनिया की कुछ चुनिंदा महिलाओ में से एक हैं। बांग्‍लादेश में हफ्तों से चल रही उथल- पुथल पर भारत ने अपनी सधी हुई प्रतिक्रिया दी थी और कहा था कि बांग्‍लादेश का यह आंतरिक मामला है,यानी भारत ने उन्‍हें मौन समर्थन दिया था। चुनावों में धांधली करने के आरोपों के बावजूद भारत द्वारा उनका समर्थन करना भारत और पश्चिमी देशों के बीच विवाद का विषय रहा है। बांग्‍लादेश छोड़ने के बाद हसीना का भारत में शरण लेना भी विरोधियों को नहीं भा रहा है।

विश्व नाथ झा।

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