लोक लुभावन घोषणा करना सुक्‍खू सरकार के लिए बना जी का जंजाल

चुनावी घोषणाओं के चक्‍कर में कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की आर्थिक स्थिति लचर।

हिमाचल की सुक्‍खू सरकार आर्थिक संकट से जुझ रही है। इसका मुख्‍य कारण है विधानसभा चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस ने दस चुनावी रेवड़ियां बाटने का वाद किया था। जिसके तहत अभी महिलाओं को प्रतिमाह 1500 रुपये देने की शुरुआत हुई है, जिसके लिए सालाना 1000 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। आर्थिक संकट के कारण मुख्‍यमंत्री और मंत्री को अपना ही वेतन-भत्‍ता बहरहाल छोड़ना पड़ रहा है।

क्‍या है कर्ज बढ़ने की वजह? 

सालभर का बजट हिमाचल प्रदेश का 58,444 करोड़ रुपये का है। जिसमें वे केवल वेतन, पेंशन और पुराना कर्जा चुकाने में 42,079 करोड़ रुपये चला जा रहा है। क्‍योंक‍ि 20,000 हजार करोड़ रुपये सालाना तो सिर्फ ओल्‍ड पेंशन स्‍कीम का खर्च माना जा रहा है। नौबत ये है कि 28 हजार कर्मचारियों को पेंशन, ग्रेच्‍युटी और दूसरी मद का 1000 करोड़ रुपये तो सरकार दे ही नहीं पाई है।

गोबर खरीद, दूध खरीद, 300 यूनिट निशुल्‍क बिजली आदि देने की योजना अभी हवा हवाई है। ओपीएस लागू करने से 2.5 प्रतिशत अतिरिक्‍त ऋण सुविधा हाथ से चली गई। केंद्र प्रायोजित योजनाओं से दो हजार करोड़ की विकासात्‍मक परियोजनाएं किसी तरह चल रही है। अनावश्‍यक वादे सत्‍ता प्राप्‍त करने के लिए किए जाते रहे ना कि हालात संभालने का काम हुआ। तभी तो हिमाचल प्रदेश पर अभी 87 हजार करोड़ रुपये के करीब कर्ज है। 31 मार्च 2025 तक हिमाचल प्रदेश पर 94,922 करोड़ रुपये के लोन का भार हो जाएगा।

अगर सुक्‍खू सरकार के बजट को और सुक्ष्‍मता से देखें तो 100 रुपये का अगर बजट है तो 25 रुपये वेतन देने में, 17 रुपये पेंशन देने में 11 रुपये ब्‍याज चुकाने में, 9 रुपये कर्ज चुकाने में, 10 रुपये अनुदान देने में खर्च हो जाता है। 28 रुपये बचता है, जिसमें विकास का काम भी करना है और मुफ्त के वादों को भी पूरा करना है। कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक इसका प्रत्‍यक्ष उदाहरण है। चुनावी घोषणाओं के चक्‍कर में दोनों ही राज्‍यों की आर्थिक स्थिति लचर हो गई है।

चुनाव के दौरान लोक लुभावन घोषणाएं करना आज चुनाव जीतने का जरिया बन गया है। अब सवाल यह उठता है कि क्‍या इससे जनता का भला हो सकता है? इस तरह की घोषणाएं लोकतंत्र को मजबूत करने की जगह कमजोर करेगी।

विश्‍व नाथ झा।

 

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