न्‍याय की मांग करने वालों पर ममता सरकार का कहर टूटा

दुष्‍कर्म और हत्‍या की वारदात को रोकने में नाकाम रही पुलिस निहत्‍थे छात्रों पर अत्‍याचार कर रही।

पश्चिम बंगाल में आए दिन हो रही अमानवीय घटनाओं से आहत होकर वहां के छात्र एवं जनता ने मंगलवार को ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ नबन्‍ना मार्च निकाला। यह मार्च ‘छात्र समाज’ ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुए डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या के खिलाफ  आयोजित किया था। ममता बनर्जी की सरकार इस मार्च को अवैध ठहराते हुए कहा है कि यह शरारती तत्‍वों द्वारा अशांति फैलाने का प्रयास है। ऐसी खुफिया जानकारी थी।

क्‍या है नबन्‍ना मार्च?

नबन्‍ना बिल्डिंग कोलकाता के हावड़ा में स्थित है। यहीं से राज्‍य का पूरा शासन -प्रशासन संचालित किया जाता है। इसी बिल्डिंग में राज्‍य की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी, मुख्‍य सचिव और गृह मंत्रालय का कार्यालय  हैं।छात्रों के मार्च को रोकने के लिए ममता बनर्जी की पुलिस दमन करने पर उतर गई। मार्च को असफल बनाने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज, वाटर कैनन के इस्‍तेमाल के साथ ही आंसू गौस के गोले भी दागे, पर प्रदर्शनकारी रुकने का नाम नहीं लिया। प्रदर्शनकारियों को हावड़ा ब्रिज पार करने से रोकने के लिए पुलिस ने जमकर लाठियां चलाई, जिसमें कई छात्र घायल भी हो गये। इसके साथ ही कई छात्रों पर एफआईआर भी दर्ज की गई है।

सरकार की दमनकारी नीति घातक

यह घटना तब हुई जब छात्र न्‍याय की मांग को लेकर शांतिपूर्ण तरिके से प्रदर्शन कर रहे थे। सरकार और पुलिस की दमनकारी कार्रवाई की जितनी निंदा की जाय वो कम है। ममता बनर्जी की बंगाल पुलिस एक तरफ दुष्‍कर्म और हत्‍या जैसी वारदात को रोकने में अक्षम है वहीं निर्दोष छात्रों के साथ अमानुसिक कार्रवाई कर रही है क्‍या ऐसा ममता सरकार सोची समझी साजिश के तहत जनता के साथ कर रही है।

मानवाधिकार संगठनों और विपक्षी दलों ने कार्रवाई को शर्मनाक बताया

राज्‍य सरकार की कार्रवाई की आलोचना करते हुए कई मानवाधिकार संगठनों और विपक्षी दलों ने इसे अत्‍यंत दुखद और शर्मनाक बताया है। उनका कहना है कि इस तरह की अमानुसिक पुलिसिया कार्रवाई न केवल लोकतंत्र के लिए घातक है बल्कि यह भी दर्शाती है कि सरकार आम नागरिकों के अधिकारों और सुरक्षा को लेकर कितनी संवेदनशील है। सोशल मीडिया पर पुलिस की कार्रवाई की जमकर आलोचना की जा रही है। लोगों का कहना है कि सरकार की प्राथमिकता न्‍याय की बजाय विरोधियों को दबाने में है, जिससे समाज में और असंतोष पैदा होगा।

विश्‍व नाथ झाा।

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