पांच बिंदुओं में समझिए आतिशी ही क्यों ?

क्या है दिल्ली के लिए केजरीवाल का 'इस्तीफा' दांव

कहते हैं कि राजनीति के खेल में व्यक्ति का अपना भाग्य भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। और दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनने जा रही आतिशी का भाग्य भी इस समय उनका पूरा साथ दे रहा है। अपनी सियासी पारी में आतिशी मात्र 4 साल में ही विधायक, मंत्री और अब मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं ।
दरअसल 177 दिन जेल में बिताने के बाद जब 15 सितंबर को दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल बाहर आए थे, तो उन्होने ऐलान किया था कि दो दिन बाद वो CM की कुर्सी से इस्तीफा देंगे और फिर जनता की अदालत में जाएंगे।
हर किसी को उम्मीद थी कि केजरीवाल ने जिस तरह जेल जाने के बाद पत्नी सुनीता केजरीवाल को कमान सौंपी थी, कुछ वैसा ही वो इस बार भी करेंगे और दिल्ली को राबड़ी 2.0 के दर्शन होंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और चौकाने वाला फैसला लेते हुए केजरीवाल ने आतिशी को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया।
लेकिन सवाल है कि आतिशी ही क्यों? क्या आम आदमी पार्टी में कोई और चेहरा नहीं था।
इसे आप कुछ आसान बिंदुओं में समझ सकते हैं कि आखिर केजरीवाल ने आतिशी पर ही क्यों भरोसा जताया? और इससे केजरीवाल ने सियासत का कौन सा सिरा साधने की कोशिश की है?

पहला कारण- केजरीवाल की भरोसेमंद हैं आतिशी
सबसे पहला कारण तो ये है कि आतिशी केजरीवाल की भरोसेमंद हैं और ये केजरीवाल के विश्वास का नतीजा ही है कि आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं। केजरीवाल को आतिशी पर कितना विश्वास है, इसका अंदाज इसी से लगता है कि उन्होंने आतिशी को 13 अहम विभाग सौंप रखे थे। जेल जाते समय केजरीवाल ने बेशक पत्नी सुनीता केजरीवाल को आगे कर संकेत दिये थे कि उनकी राजनीतिक उत्तराधिकारी सुनीता केजरीवाल हैं। यही नहीं आतिशी ने भी केजरीवाल के जेल में रहने के दौरान पार्टी और अपने नेता का बखूबी बचाव किया था और वो हर फ्रंट पर मजबूती से खड़ी नजर आई थीं।

दूसरा कारण- परिवारवाद के आरोप से मुक्ति
अगर केजरीवाल सुनीता केजरीवाल को कमान सौंपते तो, कहीं न कहीं परिवारवाद का आरोप लगना तय था। और एक आंदोलन से निकली एक ऐसी पार्टी के मुखिया के तौर पर, जिसने अलग तरह की राजनीति की उम्मीद जगाई थी, वहां अगर वो अपनी ही पत्नी को नेता बनाते, तो उन पर भी लालू यादव जैसी परिवारवादी राजनीति की राह पर चलने का टैग लग जाता और परिवारवाद को लेकर मुखर रहने वाली बीजेपी आने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों में इसे मुद्दे के तौर पर पूरी ताकत से उठाती।

तीसरा कारण- दिल्ली का शीशमहल
दरअसल जब से मुख्यमंत्री केजरीवाल के सरकारी आवास के अंदर की तस्वीरें मीडिया में सामने आई थीं। और उनके लाखों के पर्दों और विदेशी साजोसामान की खबरें लोगों तक पहुंची थी, तब से ही उन पर कई तरह के सवाल उठने लगे थे। बीजेपी ने तो उनके इस आवास को शीशमहल के नाम से प्रचारित करना शुरू कर दिया था और जाहिर सी बात है अगर खुद को आम आदमी कहने वाली पार्टी का मुखिया इतने खास और आलीशान मकान में रहेगा तो इसका भी मुद्दा बनना तय था । लेकिन अब आतिशी को सीएम बनाकर केजरीवाल ने इसका भी निदान कर दिया है, क्योंकि अगर आतिशी अगर अब इस आवास में रहेंगी तो ठीकरा उनके सिर पर फूटेगा।

चौथा कारण- स्वाति मालीवाल फैक्टर का डैमेज कंट्रोल
स्वाति मालीवाल के साथ जो कुछ भी हुआ और मीडिया में जिस तरह आम आदमी पार्टी और उनके नेता की फजीहत हुई, उससे कहीं न कहीं पार्टी की छवि भी कमजोर हुई है। और चूंकि इस मामले में खुद केजरीवाल के PA विभव कुमार शामिल थे। ऐसे में पार्टी की इमेज महिला विरोधी की भी बन रही थी। खुद स्वाति मालीवाल संसद से लेकर सड़क तक इस मुद्दे पर उन्हे घेर रही हैं। ऐसे में आतिशी को सीएम बनाकर इसकी भी काट की जा सकेगी।
पांचवा कारण- बलि का बकरा बनाने की तैयारी !
आतिशी पर सियासी बलि का बकरा बनने के कयास इसलिए लग रहे हैं क्योंकि चार माह के भीतर ही उन्हें चुनावी परीक्षा पास करनी है। फरवरी में दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने हैं। और नैतिकता की दुहाई देकर नई राजनीति शुरू करने का नारा देने वाली आम आदमी पार्टी चारों ओर से आरोपों से घिरी हुई है। उसके शीर्ष नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में रहे। कई तो अब भी जेल में हैं। यानी आम आदमी पार्टी अपने गठन के बाद से पहली बार न सिर्फ बुरे दौर का सामना कर रही है। बल्कि जनता की पसंद के रूप में भी निम्न स्तर पर है। ऐसे में पार्टी यदि चुनाव हारेगी तो हार का ठीकरा आतिशी पर फोड़ के केजरीवाल स्वयं बच निकलेंगे। और यदि जीत मिलती है तो वे प्रचारित कर सेहरा अपने सर बांधेंगे। यही वजह है कि केजरीवाल ने अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री नहीं बनाया। यदि सुनीता के हाथों में कमान रहते पार्टी की हार होती तो वह सीधा केजरीवाल के सर पड़ती। यही कारण है कि दोनों हाथों में लडडू रखते हुए केजरीवाल ने आतिशी पर दांव खेला है।

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