पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने आगरा में एक कार्यक्रम के दौरान एक बयान दिया जिस पर पूरे देश में काफी बवाल हुआ। उनका यह कहना था कि बटेंगे तो कटेंगे। इस कथन की लोगों ने अपने अपने तरीके से व्याख्या की। विभिन्न राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ आई जो कि आनी स्वाभाविक भी थी। अब इस बयान के पूरे संदर्भ को समझना आवश्यक है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि विपक्ष पिछले कुछ समय से लगातार जातिगत जनगणना कि मांग और देश में सांप्रदायिक विभाजन के अपने दावे को लेकर प्रचार कर रहा है। इस प्रचार का आम चुनाव में विपक्ष को फायदा भी मिलता दिखा। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी इन मुद्दों से ऊपर उठकर विकास और सुशाशन को प्राथमिकता देने की बात को कह रही है। उसका मानना है कि सरकार के इतने वर्षों के कार्यकाल के दौरान बिना किसी भेदभाव के सरकारी योजनाओं का लाभ समाज के सभी वर्गों, जतियों और धर्मों के लोगों को मिला है। यह सफलता ही नरेंद्र मोदी सरकार के सुशाशन और पारदर्शिता की गारंटी है। इन सबके साथ ही भारतीय जनता पार्टी अपने राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व के मुद्दे को किसी भी तरह पीछे नहीं छोड़ना चाहती है। भाजपा को यह बात अच्छी तरह से पता है कि हिन्दुत्व के मुद्दे को पीछे करके मण्डल की राजनीति के सामने आगे नहीं बढ़ा जा सकता। यह बात जरूर सही है कि पिछले एक दशक की अपनी यात्रा में भाजपा ने बहुत अच्छे तरीके से सामाजिक इंजीनियरिंग को अपने पक्ष में करके मण्डल और कमंडल दोनों को ही साथ में लेकर बढ़ने का काम किया और इसका परिणाम यह रहा कि भारतीय जनता पार्टी सरकार और संगठन दोनों ही स्तरों पर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई।
वस्तुत: इस प्रयास के पीछे भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का श्रम निश्चित ही महत्वपूर्ण है परंतु 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद समाजविज्ञानियों एवं चुनावी विश्लेषकों ने भाजपा की सफलता के पीछे संघ के कार्य और संगठन के प्रयासों को स्वीकार करना प्रारंभ कर दिया। 1990 के चुनावी घटनाक्रमों के पश्चात राजनीतिक दल यह भली-भांति समझ चुके थे कि भारत में चुनावी सफलता तब तक संभव नहीं है जब तक की दलित बहुजन समुदाय के बड़े वर्ग को अपने साथ में मिलाया जाए। काशीराम, मायावती, मुलायम सिंह यादव, रामविलास पासवान, लालू यादव तथा एचडी देवगौड़ा इत्यादि ने 2004 तक इसे सिद्ध भी किया। इस बात का उल्लेख इतिहासकार और मानव वैज्ञानिक बद्रीनारायण अपनी पुस्तक रिपब्लिक आफ हिन्दुत्व में करते हैं कि किस प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, समाज की दलित, वंचित एवं पिछड़े समुदायों के मध्य समाज, परिवार, मूल्य एवं राष्ट्रवाद के मुद्दे के साथ उन्हें हिंदुत्व की विचारधारा से संगठित रखने का प्रयास करता है। बद्रीनारायण ने संघ को लेकर पढ़े – लिखे शहरी एवं लेफ्ट लिबरल लोगों द्वारा गढ़ी गई विभाजनकारी एवं रूढ़िवादी सोच की विचारधारा से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने स्वयंसेवकों के माध्यम से सामाजिक आयाम के विभिन्न प्रतीकों, नायकों, विचारों को संगठित कर सांस्कृतिक एकीकरण के भाव द्वारा देश को संगठित करने का प्रयास कर रहा है। संघ का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद सपेरों, मुसहरों जैसी उपेक्षित जातियों और घुमंतू तथा अर्ध घुमंतु समुदायों के बीच किस प्रकार समन्वय स्थापित कर उन्हें समाज की मुख्य धारा में स्थान दिया जाए। संघ इन सभी वृहत्तर संकल्पनाओं पर कार्य कर रहा है।
जिसका परिणाम राजनीतिक रूप से उसके वैचारिक सियासी संगठन भारतीय जनता पार्टी को प्राप्त होता रहा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस समावेशी नीति का परिणाम भारतीय जनता पार्टी के संगठन के स्तर पर भी पड़ा जहां समाज के सभी वर्गों का समुचित प्रतिनिधित्व दिखाई पड़ता है। इस प्रकार भारतीय जनता पार्टी का प्रयास यह है कि समाज के सभी वर्गों को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अंतर्गत हिंदुत्व की विचारधारा से संगठित कर आगे बढ़ा जाए। विपक्ष द्वारा जातिगत जनगणना के सवाल एवं आरक्षण के मुद्दों पर फैलाया गया विमर्श भाजपा के मंडल और कमंडल को एक तस्तरी में लेकर आगे बढ़ाने के मिशन में अवरोध जैसा है। अब पुन: भारतीय जनता पार्टी का प्रयास अपने हिंदुत्व के मुद्दे को और धार देने का है। भाजपा के हिन्दुत्व की मुहिम को धार देने मे सबसे बड़ा नाम योगी आदित्यनाथ का है। आगरा में वीर दुर्गादास राठौर की प्रतिमा का अनावरण करते हुए सीएम योगी ने कहा- राष्ट सर्वोपरि है, राष्ट्र से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता है। लेकिन यह तभी संभव होगा, जब हम सब एक साथ रहेंगे। हम बटेंगे तो कटेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि बांग्लादेश में देख रहे हो न क्या हो रहा है? ऐसी गलती यहां नहीं होनी चाहिए। एक रहेंगे तो सुरक्षित रहेंगे। वास्तविकता में योगी आदित्यनाथ ने यह बात इस संदर्भ में कही कि यदि समाज अपने निहित स्वार्थों मे उलझ कर जाति, पंथ, संप्रदाय और मजहब के झगड़ों में उलझकर रह जाता है तो या तो वह विरोधियों द्वारा समाप्त कर दिया जाता है, अथवा उनका गुलाम बना लिया जाता है। यह बात भारत के संदर्भ में सही भी है। भारत के समाज ने जब जब अपने निहित स्वार्थ को प्राथमिकता दी तब तब शत्रुओं द्वारा इसे परतंत्र कर अधिकारों से वंचित रखा गया। औरंगजेब ने अनेकों बार जोधपुर पर कब्जा करने का प्रयास किया, लेकिन वीर दुर्गादास राठौर के कारण वह असफल रहा। औरंगजेब ने धोखे से महाराजा जसवंत सिंह से संधि की, और उन्हें अफगानियों से लड़ने के बहाने लेकर चला गया, लेकिन पीछे से उनकी हत्या कर दी। इसके बाद, उसने महाराजा के पुत्र अजीत सिंह को मारने की साजिश रची। वीर दुर्गादास राठौर ने एक सन्यासी के वेश में अजीत सिंह को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया और बाद में उनका राज्याभिषेक किया। दुर्गादास राठौर ने राष्ट्र, स्वदेश, और स्वधर्म की रक्षा के लिए जीवन भर संघर्ष किया। अजीत सिंह ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी दिया था, लेकिन दुर्गादास राठौर ने इसे अस्वीकार कर दिया। इन्हीं दुर्गादास राठौर की प्रतिमा अनावरण के दौरान ही योगी आदित्यनाथ ने इनके माध्यम से ही लोगों से साथ मिलकर रहने की अपील की थी। उनके अनुसार यदि समाज में बिखराव रहेगा तो विपक्षी किसी न किसी रूप में उसका फायदा उठाने का प्रयास करते रहेंगे। इस बयान कि प्रतिक्रिया स्वरूप अनेकों राजनीतिज्ञों ने इसे योगी आदित्यनाथ द्वारा हिन्दुत्व का खेला गया राजनीतिक कार्ड बताया।
योगी आदित्यनाथ का यह बयान किस प्रकार भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से मेल खाता है इसका प्रमाण भाजपा द्वारा इस मुद्दे का खुल कर समर्थन करने से पता चलता है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने इसका समर्थन करते हुये कहा कि आज के समय में जाति और समुदाय के नाम पर राजनीति करने वाले लोग जिस प्रकार की बातें करते हैं, उसका असली स्वरूप समझना आवश्यक है। यदि हम 70 से 75 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की बात करें, तो यह लोग भारत के हर हिस्से में थे। वे आज के बंगाल में थे, और तब के बांग्लादेश (जो पहले पूर्वी बंगाल था) में भी थे। लेकिन आज की स्थिति में ये 75 प्रतिशत लोग कहां गए? वे या तो कट गए, या कन्वर्ट हो गए। यही कारण है कि 32 प्रतिशत जनसंख्या घटकर 7 प्रतिशत तक रह गई। जब 32 प्रतिशत जनसंख्या थी, तो उसमें से 75 प्रतिशत एससी, एसटी, और ओबीसी थे। तो सवाल उठता है कि वे 25-26 प्रतिशत लोग कहां चले गए?” उन्होने इस संदर्भ में जोगेन्द्र मण्डल जो आजाद पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने थे, का उदाहरण भी प्रस्तुत किया। उनके अनुसार जोगेंद्रनाथ मंडल जो कि पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री थे, दलित समुदाय से थे, और वे इसी झांसे में आ गए थे कि जातियों को अलग करके मुस्लिम समुदाय के साथ एक कॉम्बिनेशन करेंगे। वे पाकिस्तान चले गए, लेकिन वहां पहुंचने के बाद उन्होंने जो देखा, वह बेहद दर्दनाक था। उन्होंने देखा कि किस प्रकार दलितों को चुन-चुनकर मारा गया। गांवों को घेर लिया गया, और कहा गया कि या तो इस्लाम धर्म स्वीकार करो, या फिर मर जाओ। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने उनकी बात नहीं सुनी और उनको अपना इस्तीफा देना पड़ा। अंत में वे दुखी होकर भारत लौट आए। गुमनामी में उन्होंने अपनी ज़िंदगी बिताई, और उनके द्वारा देखी गई दर्दनाक घटनाएँ आज भी एक चेतावनी के रूप में हमारे सामने हैं। यहां तक कि आजाद हिंदुस्तान में भी, चाहे वह कश्मीर हो या किसी अन्य स्थान का मामला, जैसे धुबरी, बरपेटा, करीमगंज, या मालदा, जो कुछ हुआ, वह इस कटु सच्चाई का प्रमाण है।
यह एक प्रकार की राजनीति है, जिसकी तरफ योगी आदित्यनाथ जी ने संकेत किया है”। राजनीतिक परिदृश्य को देखकर ऐसा लगता है कि भविष्य मे ऐसे और भी बयान और राजनीतिक दलों कि प्रतिक्रियाएं आएंगी। परंतु गंभीरता पूर्वक विचार करें तो तकनीकी के इस युग में भारत को सामाजिक वैमनस्य से बचाने के लिए व्यक्ति, समाज, नागरिक संस्थाओं और सरकार इन सभी स्तरों पर जागरूकता और प्रयास करने होंगे। आज के समय में भारत के चारों ओर जो अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र चल रहे हैं, वे स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। अफगानिस्तान ने तबाही झेल ली है। पाकिस्तान में अस्थिरता और संकट गहराता जा रहा है। श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है, और अब बांग्लादेश में भी स्थिति चिंताजनक है। ऐसे समय में, भारत इन परिस्थितियों से बचा हुआ है और मजबूती से खड़ा है, तो ऐसे समय यहाँ के नागरिकों की राष्ट्र को संगठित रखने की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृढ़ नेतृत्व और रणनीतिक दृष्टिकोण की वजह से, भारत हर चुनौती का सामना करने में सक्षम हुआ है। उनकी नीतियों और कड़े फैसलों ने देश को सुरक्षा और स्थिरता प्रदान की है, जिससे भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से अपनी स्थिति बनाए हुए है। यह यथार्थ है कि वर्तमान में अनेकों वैश्विक संकटों के बावजूद, मोदी जी के नेतृत्व में भारत ने खुद को सुरक्षित और मजबूत बनाए रखा है, और देशवासियों को भी कठिन समय में आत्मविश्वास और साहस प्रदान किया है।
-(डा. आलोक कुमार द्विवेदी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दर्शनशास्ञ में पीएचडी हैं। वर्तमान में वह KSAS, लखनऊ में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। यह संस्थान अमेरिका स्थित INADS, USA का भारत स्थित शोध केंद्र है। डा. आलोक की रुचि दर्शन, संस्कृति, समाज और राजनीति के विषयों में हैं।)