कहीं पिटाई, कहीं गिरफ़्तारी, कहीं हटा देते हैं माइक: राहुल-अखिलेश की राह पर इल्तिजा मुफ़्ती

पत्रकारों पर खुन्नस निकाल कर क्या मिलेगा?

जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती की बेटी इल्तिजा मुफ़्ती आजकल सुर्ख़ियों में हैं। उनका एक वीडियो ख़ासा वायरल हो रहा है। इस वीडियो में उन्होंने किसी ग़रीब की मदद नहीं की है, न ही राष्ट्र के प्रति अपना कोई समर्पण दिखाया है, और न ही भारत के दुश्मनों को ललकारा है। असल में, इस वीडियो में उन्होंने भारत की ही एक समाचार एजेंसी को बदनाम किया है। उसका माइक पकड़ने से इनकार कर दिया है। ANI का नाम आप सबने सुना होगा, सोशल मीडिया पर इसकी खबरें देखी होंगी, कई मीडिया संस्थान खबरों के लिए ANI की सेवाएँ लेते हैं।

वीडियो में देखा जा सकता है कि इल्तिजा मुफ़्ती पहले तो ANI की माइक अपने हाथ में ले लेती हैं, उसके बाद कहती हैं कि वो इस माइक को हाथ में नहीं लेंगी। न तो किसी ने उन्हें बलपूर्वक वो माइक दी थी और न ही किसी ने धमकाया था कि वो माइक ले लें। फिर भी, एक मीडिया संस्थान को बदनाम करने का क्या तुक है? अगर वो समाचार एजेंसी उनके खिलाफ होती, तो क्या वो अपने पत्रकार को उनके चुनाव प्रचार को कवर करने के लिए भेजती? अगर उसने अपने पत्रकार को इल्तिजा मुफ़्ती के चुनाव प्रचार में लगाया, इसका मतलब है कि वो सभी पक्षों को दिखा रहा है।

अगर आप ANI पर सर्च करेंगे तो आपको इल्तिजा मुफ़्ती का बयान दिखेगा। इस बयान में उन्होंने कहा है कि वो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हृदय में जम्मू कश्मीर की जनता के लिए नरमी पैदा करेंगी। ANI ने बिना काट-छाँट के उनके एक बयान को चलाया है। इसके बावजूद आखिर समाचार एजेंसी से उनकी नफरत क्या कहती है? अगर में ये एक क्रम का हिस्सा है, ये मीडिया को अप्रत्यक्ष धमकी है कि तुम हमारी तरफ पूरी तरह खुल कर आओ, वरना तुम्हारा पूरी तरह बहिष्कार किया जाएगा। और हाँ, ये सब धमकी तक ही सीमित नहीं है।

आप देखिए, हाल ही में राहुल गाँधी अमेरिका दौरे पर गए थे। वहाँ ओवरसीज कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा के समर्थकों द्वारा ‘इंडिया टुडे’ के एक पत्रकार रोहित शर्मा के साथ ज्यादती की गई। इसके खिलाफ DD न्यूज़ के एंकर अशोक श्रीवास्तव के नेतृत्व में ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ (PCI) में पत्रकारों के साथ विरोध प्रदर्शन किया। पत्रकारों के खिलाफ हिंसा कैसे भड़कती है? इल्तिजा मुफ़्ती ने जो हरकत की, यहीं से इसकी शुरुआत होती है। पहले बदनाम किया जाता है, फिर पिटाई कर दी जाती है। ANI का वो पत्रकार सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहा था, अपने वेतन के लिए काम कर रहा था – उस पत्रकार को नीचा दिखा कर किसी को क्या मिलेगा?

पत्रकारों को अप्रत्यक्ष रूप से धमकाते हुए हम सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी को देख चुके हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने एक पत्रकार का पहले नाम पूछा, जब उन्होंने सरनेम में ‘सिंह’ सुना तो कहने लगे कि ये तो शूद्र नहीं है न। आखिर एक पत्रकार को इस तरह जलील करने का क्या तुक बनता है? वो तो चैनल के कर्मचारी होते हैं। इसी तरह राहुल गाँधी एक पत्रकार से सरेआम पूछने लगे थे, “आपके मालिक का क्या नाम है।” इसके बाद वो ‘नाम बताओ-नाम बताओ’ चिल्लाने लगे। इसके बाद पत्रकार को राहुल गाँधी के समर्थकों ने पीटना शुरू कर दिया।

एक तरफ ये नेता इस तरह की हरकत करते हैं, वहीं दूसरी तरफ प्रेस की स्वतंत्रता की बातें करते हैं। दोनों एक साथ कैसे चल सकता है? इतना ही नहीं, इनकी सरकार कहीं बनती है तो वहाँ पत्रकारों को परेशान भी करते हैं। पंजाब में ‘टाइम्स नाउ नवभारत’ की महिला पत्रकार को गिरफ्तार किया गया। राजस्थान में कॉन्ग्रेस थी तब एंकर अमन चोपड़ा के घर पर पुलिस पहुँची। कहीं पत्रकारों का माइक न पकड़ कर उनका मजाक बनाया जा रहा है, कहीं उनकी पिटाई हो थी, कहीं उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। ये उनकी ही हरकत है, जो लोग केंद्र सरकार को तानाशाह बताते चलते हैं।

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