ग्राउंड रिपोर्टः हरियाणा में फिर चौकाएंगे साइलेंट वोटर्स!

जाटों का बहुत मुखर होना कांग्रेस की मजबूती भी और कमजोरी भी है, इससे दूसरी जातियों के वोटर भाजपा के पाले में गोलबंद हो सकते हैं OBC और दलित वर्ग के अधिकतर मतदाता साइलेंट हैं, जो इस चुनाव में निर्णायक साबित होने जा रहे हैं

नई दिल्ली। हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर मीडिया और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं और जाटों के बड़े वर्ग के सरकार के खिलाफ मुखर होने पर से लगता है मानो मामला कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा है, लेकिन जमीन पर घूमने पर पता चलता है कि सच्चाई कुछ और है। भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला 50-50 का है। यानी कुछ भी हो सकता है। यह सच है कि 10 साल सत्ता में रहने के बाद भाजपा के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी फैक्टर हावी है, लेकिन यह भी गौर करने वाली बात है कि अलोकप्रिय हो जाने के कारण मनोहर लाल खट्टर के मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद हरियाणा में अब भाजपा के प्रति ऐसा गुस्सा नहीं है कि वो कांग्रेस के पक्ष में कोई लहर पैदा कर सके। जनता की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि मामला 50-50 है। जो दल आखिर तक जनता को साधने में सफल होगा, उसी के पक्ष में नतीजे आएंगे। साइलेंट वोटर्स चौंका सकते हैं

जाटों के मुखर होने से क्रिया की प्रतिक्रिया
हरियाणा में जिस तरह से 90 में से 72 टिकट पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर और बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने बांटे हैं, उससे जनता में संदेश चला गया है कि कि कांग्रेस इस राज्य में हुड्डा परिवार के ठेके पर चल रही है। जाटों को जिस तरह से हुड्डा के दौर में सत्ता की मलाई खाने को मिली और पिछले 10 साल में जिस तरह से भाजपा ने एक जाति के वर्चस्व को खत्म कर सबका साथ-सबका विकास पर ध्यान दिया, उससे जाट कांग्रेस की सरकार फिर से लाने के लिए एकजुट हैं। जाटों के कांग्रेस के पक्ष में मुखर होने और शहर से लेकर गांव तक आक्रामक होने से जनता में संदेश जा रहा है कि कांग्रेस की सरकार आने का मतलब जाटों की सरकार आने का है।
कांग्रेस को भी इस बात का पहले से अंदेशा रहा, यही वजह है कि पार्टी ने हुड्डा को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने से परहेज किया। लेकिन, हुड्डा के टिकट वितरण से यह संदेश गया कि राज्य में कांग्रेस की उन्होंने फ्रेंचाइजी ले रखी है। हुड्डा के मुख्यमंत्री के दौर में जिस तरह से जाटों का राज्य में वर्चस्व रहा और इसका दूसरी जातियों को दंश झेलना पड़ा, उसकी टीस आज भी अन्य जातियों को है। कांग्रेस के पक्ष में जाटों के गोलबंद होने से क्रिया की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। गैर जाट OBC मतदाताओं में हलचल है। हालांकि, अभी यह कहना मुश्किल है कि गैर जाट ओबीसी का ऊंट किस करवट बैठेगा, लेकिन इतना जरूर है कि जाटों के मुखर होने से ओबीसी वर्ग की छोटी-छोटी जातियां भाजपा के पक्ष में जाने पर खेल पलट सकता है।

भाजपा छोटी जातियों को कर रही गोलबंद
भाजपा ने ओबीसी और दलितों में छोटी-छोटी जातियों को गोलबंद करने के लिए माइक्रोमैनेजमेंट पर कार्य कर रही है। भाजपा को पता चलता है कि उसकी सफलता ओबीसी पर ही निर्भर है। नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद जहां सैनी मतदाता पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में लामबंद हैं, वहीं जाटों से असहज महसूस करने वाली जातियों का गैर जाट मुख्यमंत्री मिलने के बाद से भाजपा के प्रति रुझान देखा जा रहा है।

किंगमेकर जातियों को साध रही भाजपा
दलित वर्ग की जातियां
वाल्मीकि बाजीगर, सैंसी, धानक, कबीरपंथी, खटिक
ओबीसी वर्ग
सैनी, कश्यप, नाई, धोबी, जोगी, तेली, प्रजापति, छिन्दे, यादव, गडरिया, गुज्जर
अन्य
ब्राह्मण, बनिया, पंजाब खत्री

दलितों के वोट पर भाजपा की निगाह
जिस तरह से कुमारी शैलजा को कांग्रेस में अपमानित होना पड़ा है, उससे राज्य में दलितों के वोट बैंक को भाजपा ने रिझाने की कोशिशें तेज की हैं। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर मनोहर लाल खट्टर और नायब सिंह सैनी तक कांग्रेस को दलित विरोधी साबित करने में जुटे हैं। हाल में दलितों के कुछ संगठनों ने रैली कर राहुल गांधी के आरक्षण खत्म करने के अमेरिका में दिए बयान पर विरोध भी जताया। भाजपा भी राहुल के अमेरिका में आरक्षण विरोधी बयानों को लेकर दलितों के बीच जा रही है। अगर दलित वोटों में भाजपा सेंधमारी करने में सफल हुई तो नतीजे चौंकाएंगे।

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