देश में जातिगत जनगणना पर चल रही बहस के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के ताजा रुख की व्याख्या करने में राजनैतिक पंडित जुटे हैं। कोई इसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के लिए नसीहत बता रहा है, तो आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव इसकी अपने मुताबिक व्याख्या कर रहे हैं। जातिगत जनगणना पर आरएसएस ने जो कहा है, वह मोदी सरकार के लिए क्यों संदेश या नसीहत नहीं है, इस पर आगे बढ़ने से पहले संघ का बयान समझने की जरूरत है।
संघ ने जातिगत जनगणना पर क्या कहा
केरल के पलक्कड़ में आरएसएस की अखिल भारतीय समन्वय बैठक हो रही है। इसमें आरएसएस से जुड़े 32 संगठनों के साथ ही बीजेपी के नेता भी हिस्सा ले रहे हैं। इस दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जातिगत जनगणना से जुड़े सवाल पर संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा, ‘हिंदू समाज में जाति और जातीय संबंध एक संवेदनशील मुद्दा है। यह राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए महत्वपूर्ण है। इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है, ना कि केवल चुनाव या राजनीति को ध्यान में रखकर। कल्याणकारी योजनाओं में उन जातियों पर ध्यान देने की जरूरत है, जो पिछड़ रही हैं। अगर सरकार को संख्या की जरूरत है, तो वह संख्या ली जा सकती है। पिछड़ रहे समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए जातिगत जनगणना का इस्तेमाल होना चाहिए। लेकिन इसका इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए एक राजनीतिक उपकरण के रूप में नहीं होना चाहिए।‘
संघ के रुख का पहला संदेश
संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार ने कहा था कि जहां-जहां हिंदू रहता है वहां वहां संघ पहुंचना चाहिए। इस लिहाज से संघ का जातिगत जनगणना पर जो रुख है, उसके सामाजिक निहितार्थ भी देखने की जरूरत है। समाज में जाति की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अगर समाज में जातिगत तनाव की स्थिति पैदा होती है, तो वह देश की एकता के लिए किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है। यह बात सही है कि संघ ने पहली बार खुले मंच से जातिगत जनगणना का समर्थन किया है। लेकिन यह भी सही है कि देश, काल और परिस्थिति के लिहाज से मत और धारणाएं बदलती रहती हैं। ऐसे में अगर सामाजिक समरसता के लिए संघ का विचार सामने आता है, तो उस पर हायतौबा मचाने की जरूरत नहीं है। इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि पिछड़े और अनुसूचित जाति से आने वाला समाज भी देश की अभिन्न सनातन संस्कृति का ही हिस्सा है। ऐसे में संघ के ताजा मत को समाज की बदलती सोच और धारणा का प्रतिबिंब कहा जा सकता है। देश में संघ के कार्यकर्ताओं की संख्या का कोई पुख्ता आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन माना जाता है देश में एक करोड़ से ज्यादा प्रशिक्षित स्वयंसेवक हैं। 58,967 शाखाओं वाला संघ देश का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है। ऐसे में संघ की तरफ से आने वाले किसी विचार को समाज की आकांक्षाओं और उम्मीदों के नजरिए से देखने की आवश्यकता है। संघ की स्थापना से करीब दो साल पहले कांग्रेस ने भी एक संगठन बनाया था- सेवादल। यह किसी से छिपा नहीं है कि कांग्रेस का यह संगठन समाज की अपेक्षाओं के मुताबिक धरातल पर नहीं उतर सका। आज सेवादल का नाम लेने वाले गिनती के लोग होंगे। ऐसे में संघ के बयान को समाज से जोड़कर देखने की जरूरत है।
संघ का रुख क्यों बीजेपी से ज्यादा विपक्ष के लिए नसीहत
संघ की नीति है- समन्वय, संपर्क और संवाद। यही भारत की संस्कृति है। कांग्रेस के ‘युवराज’ राहुल गांधी भले ही संघ को निशाने पर लेते रहते हैं, लेकिन क्या उन्हें इस बात की जानकारी है कि महात्मा गांधी और डॉ. बीआर आंबेडकर 1934 और 1939 में वर्धा के संघ शिक्षा वर्ग में गए थे। सुभाष चंद्र बोस ने भी नागपुर में पथ संचलन देखा था। नवंबर 1977 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने पटना के प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा लिया था। 2018 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ मंच साझा किया था। यानी संवाद और समन्वय के लिए संघ अपने से विपरीत विचारधारा वाली शख्सियतों से संपर्क करने में भी पीछे नहीं रहा। संघ ने जातिगत जनगणना पर अपने बयान में साफ किया है कि इसका प्रयोग चुनाव और राजनीति को ध्यान में रखकर नहीं होना चाहिए। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव को ही अगर देखा जाए तो विपक्ष ने समाज में यह छद्म नैरेटिव फैलाने का भरपूर प्रयास किया कि आरक्षण खत्म होने वाला है। नरेंद्र मोदी सत्ता में आए तो संविधान बदल दिया जाएगा। कांग्रेस से सवाल है कि क्या आरक्षण खत्म हो गया? क्या संविधान बदल दिया गया? कांग्रेस और विपक्ष इसी तरह का नैरेटिव जातिगत जनगणना पर भी प्रचारित-प्रसारित करने में शिद्दत से जुटे हुए हैं। संघ ने साफ तौर पर उन दलों को नसीहत दी है जो चुनावी फायदे के लिए जाति के हथियार से आरक्षण पर भ्रम फैला रहे हैं। ऐसे में जाहिर है कि जातिगत जनगणना पर संघ का मत बीजेपी नहीं कांग्रेस और विपक्ष के लिए नसीहत है।
-सुधाकर सिंह