सूरत को शिवाजी महाराज ने लूटा था या नहीं? मूर्ति पर ‘महा’भारत के बीच नया विवाद क्या, समझिए

महाराष्ट्र की राजनीति में छत्रपति शिवाजी महाराज पर इन दिनों महाभारत छिड़ी है। पहले सिंधुदुर्ग में शिवाजी की मूर्ति गिरने के बाद सियासी घमासान मचा। पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस विपक्ष के निशाने पर आ गए। चुनावी साल होने और महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज की अभूतपूर्व स्वीकार्यता होने से मुद्दा लगातार गरमाया हुआ है। इस बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता नारायण राणे के बयान से एक नया विवाद खड़ा हो गया है। राणे ने कहा कि मैं इतिहासकार नहीं हूं, लेकिन इतिहासकार बाबासाहेब पुरंदरे से मैंने जो भी पढ़ा, सुना और जाना है उसके आधार पर कह सकता हूं कि शिवाजी महाराज नी सूरत ला लूट केली (शिवाजी महाराज ने सूरत को लूटा था)। ऐसे में सवाल उठता है कि शिवाजी महाराज ने क्या वाकई सूरत को लूटा था? एक सच यह भी है कि उस दौर में मुगल बादशाह औरंगजेब से शिवाजी महाराज अकेले मोर्चा ले रहे थे। शिवाजी और सूरत की इस कहानी का पूरा सच क्या है, आइए समझते हैं।

सूरत पर छत्रपति शिवाजी ने दो बार हमला किया था- 1664 और 1670 ईसवी। इस हमले के पीछे असल मकसद मराठा साम्राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत करना था। दरअसल सूरत उस समय मुगल साम्राज्य के नियंत्रण में था। शिवाजी के सूरत पर हमले की हकीकत जानने से पहले आपको उस समय की परिस्थितियों के बारे में बताते हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज ने दक्षिण के मोर्चे पर मुगल बादशाह औरंगजेब की नींद उड़ा दी थी। औरंगजेब ने 1660 ईसवी में अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण (दक्कन) का सूबेदार बनाया। उसे खास तौर पर शिवाजी से भिड़ने के लिए नियुक्त किया गया था। 1661 से 1663 ईसवी तक शाइस्ता खां और उसकी मुगल फौज ने शिवाजी महाराज के मराठा राज्य को बहुत नुकसान पहुंचाया। गांव के गांव जला दिए गए और कत्लेआम मचाया गया। आखिरकार शिवाजी ने शाइस्ता खां को सबक सिखाने की ठानी। अप्रैल 1663 में एक रात पूना (अब पुणे) में शिवाजी ने अपने विश्वस्त मराठा सैनिकों के साथ शाइस्ता खां पर अचानक हमला बोल दिया। इस हमले से भौंचक्के शाइस्ता खां को अपनी तीन अंगुलियों और बेटे से हाथ धोना पड़ा था। इसके बाद शाइस्ता खां उल्टे पांव वापस चला गया लेकिन शिवाजी ने मराठा राज्य को हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए सूरत पर हमले की योजना बनाई।

उस दौर में सूरत मुगल साम्राज्य का बहुत अमीर और संपन्न शहर था। हालांकि मुगल सूरत को लेकर किसी हमले के अंदेशे से निश्चिंत थे। मुगल फौज का कमांडर और शहर का गवर्नर इनायत खान था। शिवाजी सूरत पहुंचने से 9 दिन पहले मुंबई के आसपास थे। उनके साथ चार हजार मराठा सैनिक थे। 6 जनवरी 1664 की सुबह शिवाजी सूरत पहुंचे। सूरत पहुंचते ही उन्होंने गवर्नर इनायत खान को संदेश भिजवाया कि बिना किसी हिंसा के धन सौंप दिया जाए। अगले दिन यानी 6 जनवरी को इनायत खान ने शिवाजी के पास अपना दूत भेजा। बातचीत के दौरान बेसिर-पैर की शर्तें रखते हुए उसने धोखे से खंजर निकालकर शिवाजी को मारने की कोशिश की। मराठा अंगरक्षक ने वार शिवाजी पर लगने से पहले ही उसका हाथ काट दिया। इसके बाद उसका वध कर दिया गया। शिवाजी पर हमला मराठा सैनिकों का गुस्सा भड़काने के लिए काफी था। इसके बाद शिवाजी की सेना ने शहर के मुगल प्रबंधकों को लूटना शुरू किया। कुछ हवेलियों को भी आग के हवाले किया गया। सूरत की ये लूट 6 जनवरी से 10 जनवरी 1664 तक चली थी।

सूरत उस समय मुगलों का मुख्य बंदरगाह था। यहां से मुगलों का व्यापार फारस की खाड़ी तक चलता था। इतिहासकार गजानन भास्कर मेहंदाले ने ‘शिवाजी, हिज लाइफ एंड टाइम्स’ किताब में इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि शिवाजी महाराज ने सोचा था कि अगर सूरत को लूटा गया, तो मुगलों को सजा मिलेगी और प्रचुर धन की हानि होगी। 1661 से 1663 तक औरंगजेब का सरदार शाइस्ता खान दक्कन अभियान पर था। दो साल के मुगल अभियान के दौरान दक्कन के खेत बरबाद हो गए। इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक ‘शिवाजी एंड हिज टाइम्स’ में लिखा है कि शिवाजी महाराज को स्वराज्य के लिए धन की आवश्यकता थी। इसके साथ शाइस्ता खां पर हमला कर उसे भगाने के बाद शिवाजी मुगल दरबार में भी अपना खौफ पैदा करना चाहते थे।

कुछ वामपंथी इतिहासकार शिवाजी की सूरत लूट को गलत ठहराते हैं, लेकिन भूल जाते हैं कि इस लूट से पहले तीन साल तक शिवाजी का राज्य तबाह कर दिया गया था। मुगल सेना ने नागरिकों का नरसंहार किया। सूरत पहुंचने से पहले ही शिवाजी ने घोषणा कर दी थी कि वह किसी को नुकसान पहुंचाने नहीं बल्कि औरंगजेब को सबक सिखाने आए हैं। मुस्लिम इतिहासकार खफी खां ने भी माना है कि शिवाजी का नियम था कि मस्जिदों, धर्मग्रंथों और स्त्रियों को हानि नहीं पहुंचनी चाहिए। कुरान शरीफ मिलने पर उसे किसी मुसलमान साथी को सौंप दिया जाता था। सूरत पर हमले से शिवाजी को एक करोड़ से ज्यादा की रकम मिली थी। एक यूरोपियन व्यापारी ने भी लिखा है कि मराठे अपने साथ सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात और कीमती चीजों के अलावा कुछ नहीं ले गए थे। उस समय सूरत में कुछ मिशनरियां भी सक्रिय थीं। लेकिन उनके घरों को किसी मराठा सैनिक ने हाथ तक नहीं लगाया था। शिवाजी जब तक सूरत में थे, मुगल गवर्नर इनायत खान किले में छिपा रहा। सूरत की इस लूट ने मुगल बादशाह औरंगजेब को हैरान कर दिया था।

पहली बार सूरत को लूटने के बाद शिवाजी के खिलाफ औरंगजेब ने मिर्जा राजा जय सिंह को भेजा। इसके बाद महाराज आगरा गए और वहां से औरंगजेब की कैद से आजाद होकर दोबारा राजगढ़ पहुंचे। उसका भी एक अलग इतिहास है। बीच के वर्षों में मराठों और मुगलों के बीच पुरंदर की संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। उस संधि के अनुसार, मराठों को कई किलों और कस्बों पर अपना कब्जा छोड़ना पड़ा। शिवाजी महाराज के राजगढ़ लौटने के बाद, उन्होंने मुगल कब्जे वाले इलाकों में फिर से हाथ-पैर फैलाने शुरू किए।

सूरत पर पहला हमला करने के छह साल बाद अक्टूबर 1670 में शिवाजी महाराज ने औरंगजेब को सबक सिखाने के लिए एक बार फिर सूरत पर धावा बोला। इस बार मराठा सेना ने सूरत को तीन दिन तक लूटा। सूरत की इस दूसरी लूट का नतीजा यह हुआ कि मराठों से मुगल सैनिकों में दहशत फैल गई। लगभग एक साल तक सूरत में ‘मराठों के आ जाने’ की अफवाहें उठती थीं। सूरत की लूट ने औरंगजेब को दक्षिण नीति बदलने पर भी मजबूर कर दिया था।

इतिहासकार राजनारायण चंदावरकर ने अपनी किताब ‘ओरिजिन ऑफ इंडस्ट्रियल कैपिटलिज्म इन इंडिया’ में मुंबई के उदय पर एक पूरा अध्याय लिखा है। वह लिखते हैं, सूरत मुगलों के नियंत्रण में एक बंदरगाह था। 17वीं और 18वीं शताब्दी के अंत में मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया। मराठों ने सूरत को लूट लिया और इन बंदरगाहों का महत्व काफी कम हो गया। सूरत के महत्व के पतन का मुख्य कारण मुगल साम्राज्य का पतन था। लेकिन साथ ही,  मराठा साम्राज्य और अंग्रेजों का उदय भी एक महत्वपूर्ण कारक था। मुंबई के आसपास के क्षेत्र से अंग्रेज जो कच्चा माल चाहते थे,  उसे हासिल करना बहुत आसान था। इसलिए अंग्रेजों ने मुंबई को चुना। जो भी हो  355 साल पहले हुई उस घटना का मुंबई के विकास पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। इसलिए सूरत की इस लूट के मुंबई कनेक्शन को भी इतिहास के आईने में देखने की जरूरत है।

-सुधाकर सिंह, वरिष्ठ पत्रकार 

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