आपने वो तस्वीरें देखी होंगी जब 2021 में भारतीय टीम ने मैदान में मैच से पहले ही घुटने टेक दिए थे। हालांकि ये घुटने विपक्षी टीम के सामने नहीं, बल्कि अमेरिका में रंगभेद की वजह से मारे गए अमेरिकी पर्सन विद कलर जॉर्ज फ्लायड के सपोर्ट में टेके थे।
क्योंकि अश्वेत जॉर्ज फ्लाएड की एक गोरे वाइट पुलिस वाले के हाथों हुई मौत,पूरी दुनिया में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई का आंदोलन बन गई थी। इसी तरह आपने क्रिकेट के मैदान पर पाकिस्तान से लेकर बांग्लादेश और अफगानिस्तान के खिलाड़ियों को भी बांह पर काली पट्टी बांध कर खेलते देखा होगा और पाकिस्तान के खिलाड़ी तो खुलेआम गाजा के मुस्लिमों, माफ कीजिएगा, हमास के आतंकियों के समर्थन में खड़े नजर आए थे। अपनी जीत को उनके नाम समर्पित कर दिया था।
लेकिन अब जबकि चेन्नई में कल से भारत और बांग्लादेश के बीच टेस्ट सीरीज के पहले मैच की शुरुआत हो रही है, तो भारतीय दर्शक और आम जनता सवाल पूछ रही है कि क्या भारतीय क्रिकेट टीम भी घुटने टेक कर बांग्लादेश के उन हिंदुओं के पक्ष में सांकेतिक विरोध करेगी जिन्हें तख्तापलट की आड़ में कत्ल कर दिया, या फिर उनके घरों, व्यापारिक संस्थानों पर संस्थागत तरीके से हमले हुए या उन महिलाओं के साथ खड़े होने का साहस जुटाएंगे, जिनके साथ बलात्कार हुए या जिन्हें जबरन धर्मांतरित कर दिया गया।
हो सकता है कि वो ऐसा करने में सहज न हों, क्योंकि हमारे खिलाड़ी शायद ही अपने ऊपर हिंदू समर्थक होने का टैग लगवाएं। संभव है कि इससे उनकी बदनामी हो, एक बड़ा वर्ग उन पर तत्काल कम्युनल होने का या फिर सांप्रदायिक होने का आरोप लगा देगा। और उनका ये डर समझा भी जा सकता है, जब पीएम मोदी और सीजीएआई के ही गणपति की आरती करने भर से ये वर्ग उन्हें अलोकतांत्रिक और सांप्रदायिक घोषित कर सकता है, फिर तो बांग्लादेशी हिंदुओं के समर्थन में घुटने टेकने की बात से तो देश की सेक्युलर बिरादरी के ऊपर आसमान ही टूट पड़ेगा।
ऐसे में सवाल ये है कि क्या उन्हें कम से कम काली पट्टी बांध कर ही सही…सांकेतिक विरोध नहीं करना चाहिए?
वैसे लगता तो नहीं, क्योंकि चेन्नई से जो तस्वीरें सामने आईं, उससे लोग और भड़क गए। ये तस्वीरें बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड की है, जिनमें चेन्नई में उनका भव्य स्वागत होता नजर आ रहा है।
लेकिन अब इसे लेकर सोशल मीडिया पर गुस्सा देखने को मिल रहा है और लोग सोशल मीडिया पर बीसीसीआई के प्रति तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
कई लोगों ने इस पर नाराजगी भी जाहिर की और उनका कहना है कि ऐसे समय में जब बांग्लादेश में हिंदू मारे जा रहे हैं, हम उन खिलाड़ियों का स्वागत कैसे कर सकते हैं।
एक यूजर ने ट्वीट किया कि “हम वाकई इन बांग्लादेशी क्रिकेटरों का स्वागत सम्मानित मेहमानों की तरह कर रहे हैं? जबकि इनमें से ज्यादातर हिंदुओं के नरसंहार के मूक समर्थक हैं।”
हिंदू संत और एक्टिविस्ट राधारमण दास ने भी इसका विरोध किया। उन्होने कहा कि “BCCI ने विश्वभर के हिंदुओं के विरोध की पूरी तरह अनदेखी की है, जबकि बांग्लादेश में हिंदुओं का जातीय सफाया हो रहा है।
बिजनेसमैन और लेखक अरुण कृष्णन ने तो भी सोशल मीडिया पर ऐलान किया कि वो बांग्लादेश में हो रहे हिंदुओं के उत्पीड़न को देखते हुए भारत बनाम बांग्लादेश सीरीज नहीं देखेंगे। उन्होंने एक्स पर पोस्ट लिख कर कहा कि मैं, और मेरे जैसे लाखों आत्म-सम्मानित हिंदू, इस सीरीज को नहीं देखेंगे। और हमारे क्रिकेट जगत पर भी शर्म आती है कि वे BLM यानी ब्लैक लाइव्स मैटर्स के लिए घुटने टेक सकते हैं, लेकिन अपने धर्म के लोगों के लिए आवाज नहीं उठा सकते, जो बांग्लादेश में मारे जा रहे हैं।”
वस्तुस्थिति ये है कि बांग्लादेश में कुछ समय पहले ही हुए तख्तापलट के बाद से हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं। बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के पद से हटने के बाद से सैकड़ों हिंदू मंदिरों, दुकानों और व्यवसायों पर हमले हो चुके हैं।
यहां तक भारत की संसद में भी हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बांग्लादेश में हिंदुओं और हिंदू मंदिरों में हमले की बात मानी थी और चिंता जताई थी। साथ ही पीएम मोदी से लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ तक इसे लेकर चिंता जता चुके हैं…मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो त्रिपुरा से हिंदुओं को एकजुट रहने और सशक्त बनने की भी अपील की थी।
बांग्लादेश के हिंदुओं ने भी अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों को लेकर आवाज उठाई और वो सड़कों पर उतरे, इसके बाद पूरी दुनिया में भर में उनके अधिकारों और उन पर हो रहे अत्याचारों को लेकर चर्चाएं शुरू हुईं, प्रदर्शन हुए…यहां तक कि यूएन में भी इसका मुद्दा उठा और बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार को भी सफाई देने के लिए सामने आना पड़ा।
ऐसे में देखना है कि क्या हमारी टीम इंडिया भी बांग्लादेश के उन हिंदुओं के लिए कोई सांकेतिक प्रदर्शन करती है या नहीं, वो भी तब जबकि उनका मुकाबला बांग्लादेश से ही है।