गणपति विसर्जन: धार्मिक जुलूसों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है?

मुंबई में 10 दिन तक चले गणेशोत्सव के बाद अनंत चतुर्दशी पर प्रतिमा विसर्जन का दृश्य

भारत में गणेश चतुर्थी एक धार्मिक ही नहीं सांस्कृतिक आयोजन भी है। मुंबई से लेकर मैसुरु और कोलकाता से कानपुर तक देशभर में गणेश पूजा उत्सव और जुलूस आयोजित होते हैं। इस बार गणपति उत्सव पर उत्तर से दक्षिण तक सांप्रदायिक तनाव, पथराव और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आईं। हमारे लोकतांत्रिक ढांचे में हर किसी को अपने धर्म के मुताबिक आयोजनों की स्वतंत्रता है। लेकिन पिछले कुछ साल से जो ट्रेंड चल रहा है, उससे कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं। अगर स्थानों के नाम और तारीखें बदल दी जाएं तो तकरीबन हर बड़े आयोजन पर धार्मिक जुलूस को निशाना बनाने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। मिसाल के तौर पर इस बार के गणेशोत्सव के दौरान हुई घटनाओं की लिस्ट देखिए।

गणेश पूजा पर झड़प और तोड़फोड़ की घटनाओं में उछाल

कर्नाटक का मंड्या जिला, तारीख- 11 सितंबर। नगमंगला में गणेश प्रतिमा विसर्जन के दौरान झड़प, दुकानों में तोड़फोड़ और आगजनी। मध्य प्रदेश का मंदसौर जिला- तारीख- 16 सितंबर। मदरसे के पास बने बाड़े से गणेश विसर्जन जुलूस पर पथराव। भीलवाड़ा का जहाजपुर। गणेश पूजा पर जलझूलनी एकादशी के बाद तीन दिन तक सांप्रदायिक तनाव। महाराष्ट्र का भिवंडी- गणेश प्रतिमा विसर्जन के बीच पथराव। अब आते हैं यूपी पर। बलरामपुर जिले का उतरौला कस्बा- पूजा पंडाल के सामने फिलिस्तीन के समर्थन में नारेबाजी। सिद्धार्थनगर जिले का डुमरियागंज- एक धार्मिक स्थल के सामने आपत्तिजनक नारेबाजी। बरेली जिले का जोगी नवादा- दो समुदाय के लोग आमने-सामने। बिहार के औरंगाबाद के साथ ही गुजरात के सूरत और कच्छ से भी इसी तरह की घटनाएं देखने को मिलीं।

रामनवमी पर जुलूस के लिए कोर्ट जाना पड़ा

इससे पांच महीने पहले भी महाराष्ट्र में एक जुलूस को निशाना बनाया गया था। 14 अप्रैल की शाम अंबेडकर जयंती के जुलूस पर एक स्थानीय धार्मिक स्थल के पास हमला हुआ था। गिरफ्तार सभी सात आरोपी एक समुदाय विशेष के निकले थे। अप्रैल में ही राम नवमी के मौके पर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में पथराव और झड़प की घटना सामने आई थी। वहीं 2023 में तो राम नवमी और हनुमान जयंती के जुलूस पर हाई कोर्ट को दखल देना पड़ा था। इस साल भी हावड़ा में राम नवमी पर शोभायात्रा निकालने की इजाजत के लिए हाई कोर्ट तक जाना पड़ा। कोलकाता हाई कोर्ट के जस्टिस को कहना पड़ा, ‘अगर पुलिस 200 लोगों के जूलूस को नहीं संभाल सकती तो कहने के लिए कुछ नहीं है। हमें आश्चर्य है कि राज्य की पुलिस इतना भी नहीं कर सकती।‘

बहुसंख्यक समाज के पर्व-त्योहारों में ही क्यों हमले?

हमारे देश में हर धर्म, संप्रदाय और जाति में कोई भेद नहीं हैं। संविधान की भी यही मूल भावना है। लेकिन सवाल इस बात का है कि क्या किसी खास क्षेत्र या इलाके में किसी धार्मिक आयोजन को रोकने का किसी के पास अधिकार है। कई बार पुलिस भी अपने हाथ क्यों खड़े कर देती है? यानी एक तरह से अघोषित तौर पर कह दिया जाता है कि यहां जाना है तो आप अपने रिस्क पर जाइए, हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है। हमारे देश में गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल दी जाती है। कौमी एकता की बात करने वाले लोग ऐसी घटनाओं पर क्यों अपनी राय नहीं जाहिर करते हैं? सोशल मीडिया पर एक यूजर ने लिखा- सूरत में गणेश चतुर्थी और भीलवाड़ा में एकादशी पर भारी पथराव की परेशान करने वाली खबरें आई हैं। कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इसे रोकने का एक ही उपाय है। हिंदुओं को अपने देवताओं और त्योहारों को मनाना बंद कर देना चाहिए। जाहिर है उपाय यह नहीं हो सकता है। सदियों से चली आ रही सनातन परंपरा को उपद्रवियों के हमले और हिंसा के आगे घुटने टेकने की नौबत ही नहीं आनी चाहिए। एक बहुसंख्यक देश में अपेक्षा की जाती है कि अल्पसंख्यकों को उनके त्योहार और रवायतों को मनाने में कोई परेशानी नहीं आए। लेकिन जब बहुसंख्यक समाज के त्योहार या पर्व आते हैं, तो हमले और हिंसा की घटनाओं में क्यों उछाल आ जाता है?

क्या ऐसे हमले सुनियोजित होते हैं?

एक और गौर करने वाला तथ्य है। इस तरह की हिंसा या हमलों की जब-जब जांच होती है, तो पता चलता है कि पहले से ही पत्थर, पेट्रोल बम वगैरह इकट्ठा करके प्लानिंग की गई थी। 2023 में रामनवमी जुलूस के दौरान हिंसा से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा, ‘आरोप है कि छतों से पत्थर फेंके गए। जाहिर है पत्थरों को 10 से 15 मिनट के अंदर छत पर नहीं ले जाया जा सकता था। यह एक खुफिया विफलता थी।‘ ऐसे हमलों में एक कॉमन पैटर्न यह भी होता है कि जब जुलूस किसी धार्मिक स्थल के पास से गुजरता है, तभी झड़प या बवाल शुरू होता है।

बहुसंख्यक समाज की भावनाएं आहत न हों

देशभर में गणेश उत्सव के दौरान पंडाल और जुलूसों पर पत्थरबाजी, आगजनी और हिंसा हुई है। एक सवाल यह भी है कि किसी ताजिया जुलूस पर पथराव या ईद के मौके पर झड़प की घटनाएं न के बराबर देखने या सुनने को मिलती हैं। अगर समय रहते इस तरह की अराजकता पर लगाम नहीं लगाई गई तो देश के हालात खराब होने की संभावना ज्यादा है। ऐसे में मुस्लिम धर्मगुरुओं को आगे आकर ऐसी घटनाओं में शामिल लोगों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और उनका विरोध करना चाहिए। ऐसी घटनाओं में शामिल तत्वों का सामाजिक बहिष्कार करने जैसे किसी कदम का स्वागत है। देश में अमन-चैन और आपसी भाईचारे के लिए जरूरी है कि अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की आड़ में बहुसंख्यक समाज की भावनाएं आहत नहीं होनी चाहिए। एक शेर है- मुझे घर भी बचाना है वतन को भी बचाना है, मेरे कांधे पे जिम्मेदारियां दोनों तरफ से हैं।

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