भारत को खंडित करने के लिए जो लोग आज सक्रिय हैं, उनका आप अंदाजा नहीं लगा सकते। जब मैं सामने राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति को देखता हूं और पड़ोसी देश में कुछ होता है तो एक व्यक्ति जो संवैधानिक पद पर रहा है, केंद्र में मंत्री रहा है, वकालत के पेशे में वरिष्ठ अधिवक्ता है, एक नैरेटिव चलाता है, कहता है कि यह भारत में भी हो सकता है। क्या हमारा प्रजातंत्र कमजोर है? देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने धर्म परिवर्तन को लेकर गहरी चिंता जताते हुए यह बात कही।
जयपुर में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने एक कार्यक्रम के दौरान भविष्य में धर्मांतरण के खतरों से आगाह करते हुए कहा, ‘सनातन कभी जहर नहीं फैलाता है। यह तो खुद शक्तियों का संचार करता है। देश में एक संकेत दिया गया है, जो कि बहुत खतरनाक है और यह राजनीति को भी बदलने वाला है। यह नीतिगत तरीके से हो रहा है, संस्थागत तरीके से हो रहा है और सुनियोजित षड्यंत्र के तरीके से हो रहा है। यह धर्म परिवर्तन है!’ लेकिन यह चिंता उससे कहीं ज्यादा बड़ी है। दिल्ली-एनसीआर की दो तस्वीर से इसे समझने की कोशिश करते हैं।
पहली तस्वीर- गाजियाबाद के वेवसिटी इलाके में एक मौलवी गिरफ्तार। आरोप सिविल इंजीनियर से लाखों रुपये ऐंठकर धर्म परिवर्तन का प्रयास। इंजीनियर आर्थिक तंगी और बीमारी से परेशान था। पुलिस को मौके से ऐसे ऑडियो मिले हैं, जिसमें मौलवी अपने धर्म को श्रेष्ठ बताकर धर्म परिवर्तन से सभी संकट दूर हो जाने का दावा कर रहा है।
दूसरी तस्वीर- दिल्ली-मेरठ नेशनल हाइवे-58 पर गाजियाबाद का सेवानगर इलाका। गरीबी और बीमारी से परेशान परिवारों के घर में एंट्री के बाद मुश्किल को जड़ से खत्म करने के लिए धार्मिक अनुष्ठान की शर्त रखी जाती थी। बर्थडे पार्टी में अचानक पहुंची पुलिस कुछ लोगों को हिरासत में लेती है। पकड़े गए एक शख्स का मोबाइल चेक करने पर सामने आता है धर्मांतरण का खतरनाक खेल। पुलिस ने आरोपी जेराल्ड नाम के पादरी समेत पांच लोगों को दबोचा। तफ्तीश में सामने आया कि जेराल्ड ने दो महीने के अंदर 150 लोगों का धर्मांतरण कराया है। धर्मांतरण करने वाले शख्स को व्हाट्सऐप ग्रुप से जोड़ा जाता था, जिस पर धार्मिक संदेश आते रहते थे। मोबाइल से मिली जानकारी के मुताबिक सितंबर में धर्मांतरण के बड़े कार्यक्रम की साजिश थी।
इन दो तस्वीरों से हालात का अंदाजा आप आसानी से लगा सकते हैं। दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में आने वाले गाजियाबाद की तस्वीर को देश के तमाम शहरों और कस्बों से जोड़कर देख सकते हैं। जब ये रिपोर्ट लिखी जा रही है, उस समय भी धर्मांतरण के ऐसे कितने ही रैकेट अपनी जहरीली साजिश को अंजाम तक पहुंचाने में जुटे होंगे। उपराष्ट्रपति धनखड़ के बयान का एक हिस्सा भी गौर करने वाला है। उन्होंने कहा, ‘फिलहाल देश में शुगर-कोटेड फिलॉसफी बेची जा रही है। वे समाज के कमजोर वर्गों को निशाना बनाते हैं। वे हमारे आदिवासी लोगों में अधिक घुसपैठ करते हैं। लालच देते हैं। हम बहुत ही पीड़ादायक तरीके से एक नीति के रूप में धार्मिक धर्मांतरण को देख रहे हैं।’
धर्मांतरण का यह दावा चौंकाने वाला
उपराष्ट्रपति की बात में कड़वी हकीकत छिपी है। धर्मांतरण के खेल में आसान शिकार बनता है गरीब और पिछड़ा तबका। उनके निशाने पर होते हैं आदिवासी समाज के लोग। हाल ही में दैनिक भास्कर ने धर्मांतरण के संबंध में जो रिपोर्ट प्रकाशित की, वह हैरान करने वाली है। देश के चार राज्यों (मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़) के 110 गांवों की पड़ताल में कई चौंकाने वाली बात सामने आई है। इस रिपोर्ट में जोशुआ प्रोजेक्ट का हवाला दिया गया है। अमेरिका से संचालित जोशुआ प्रोजेक्ट की वेबसाइट में दावा किया जा रहा है कि भारत में हर साल करीब 24 लाख लोग ईसाई बनाए जा रहे हैं। जोशुआ प्रोजेक्ट की वेबसाइट कहती है कि भारत की आबादी 143 करोड़ है और वो 6 करोड़ लोगों तक पहुंच चुके हैं। हर साल 3.9 प्रतिशत की दर से धर्मांतरण का इसमें दावा किया जा रहा है।
ऐसे चलता है नेटवर्क
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक धर्मांतरण के लिए प्रचार, पास्टर और पादरी का नेटवर्क है। हर गांव में एक व्यक्ति को ‘प्रचार’ की पदवी मिलती है। उसका काम लोगों को चर्च ले जाने के साथ ईसाई धर्म को बढ़ावा देना होता है। उसे एक धर्मांतरण कराने पर दो हजार और किसी ईसाई से शादी कराने पर 1500 रुपये मिलते हैं। इसके बाद बारी आती है पास्टर की। हर गांव में मौजूद प्रचार को पास्टर को रिपोर्ट करना होता है। चर्च बनवाने की जिम्मेदारी इनके पास होती है। इन्हें 10 से 20 हजार की मासिक सैलरी मिलती है। नई चर्च के लिए जगह ढूंढना और नए धर्मांतरण का काम इनके पास होता है। पादरी या फादर को सैलरी देने के लिए किसी स्कूल या अस्पताल का हेड बनाया जाता है। एक लाख का मासिक वेतन देने के साथ इनका काम धर्मांतरण में आ रही अड़चनों का रास्ता साफ करना होता है। सभी पास्टर फादर को रिपोर्ट करते हैं और फादर विशप को।
लालच देकर धर्मांतरण
दैनिक भास्कर ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा 110 गांवों की पड़ताल की, तो 82 गांव ईसाई बहुल पाए गए। धर्मांतरण कराने वाले एजेंट का टारगेट बीमार और परेशान शख्स को खोजकर प्रार्थना सभा तक लाना होता है। रिपोर्ट में सामने आया कि आदिवासी बहुल झाबुआ और अलीराजपुर में चंद महीनों के अंदर कई चर्च बन गए। चमत्कारी जल और मुफ्त शिक्षा का लालच देकर भोले-भाले आदिवासियों को ठगा जा रहा है। भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में धर्मांतरण करने वाली एक लड़की ने बताया कि चर्च का अमृत जल पीने से वह भली-चंगी हो गई। हिंदू धर्म में वापसी का काम करने वाले एक संगठन धर्म जागरण समन्वय के सर्वे के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 10 साल के अंदर 50 हजार धर्मांतरण हुए।
मुफ्त इलाज और पीएम आवास तक का झांसा
भास्कर की पड़ताल के मुताबिक आदिवासी बहुल झारखंड के गुमला जिले के एक गांव में प्रवेश प्वाइंट पर ही क्रॉस चिह्न बना हुआ है। यह भी सामने आया है कि पीएम आवास जैसी सरकारी योजनाओं का लालच देकर लोगों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है। गुमला के एक गांव के किसान ने भास्कर रिपोर्टर को बताया कि गांव में 250 घर हैं और इनमें से 150 घरों के लोगों ने धर्म बदल लिया है। ओडिशा के कई गांवों में फ्री हेल्थ कैंप का झांसा देकर धर्मांतरण का पता चला। पहले हेल्थ कैंप के जरिए बीमारियां पता की जाती हैं, फिर उसका इलाज कराने के बहाने धर्मांतरण होता है।
जोशुआ के पूर्व एजेंट ने खोली पोल
जोशुआ प्रोजेक्ट के लिए काम कर चुके छत्तीसगढ़ के एक एजेंट ने भास्कर रिपोर्टर को बताया कि पहले उसे बिलासपुर के एक चर्च ले जाया गया। वहां दो साल की पढ़ाई के बाद फील्ड वर्क दिया गया। यहां पर धर्मग्रंथ बाइबिल की पढ़ाई के साथ धर्म के प्रचार के बारे में बताया जाता था। गांव में किस जाति-धर्म के लोग हैं, इसका डेटा तैयार करना होता था। चर्च से जुड़ा सुपरवाइजर हर महीने वह डेटा लेकर जाता था। पूर्व एजेंट ने बताया कि घर-घर में एक वीडियो दिखाने को मिलता था। वीडियो देखकर जो दिलचस्पी दिखाता था, उसका नाम पता अलग से बता दिया जाता था। इसके बाद पास्टर उस शख्स से संपर्क करते थे। पढ़ाई के दौरान फील्ड वर्क के लिए दो हजार रुपये महीने मिलते थे।
धनखड़ ने सलमान खुर्शीद की ओर किया इशारा?
हमारे देश में विपक्ष के कुछ नेता ऐसे हैं, जो किसी दूसरे देश की बुरी स्थिति को अपने देश से जोड़ने लगते हैं। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने नाम तो नहीं लिया, लेकिन ऐसा लगता है कि उनका इशारा सलमान खुर्शीद की ओर है। हाल ही में बांग्लादेश में हिंसा और उपद्रव के बाद तख्तापलट हुआ था और तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा था। खुर्शीद ने कहा था बांग्लादेश में जो हो रहा है, वह यहां भी हो सकता है। सलमान खुर्शीद को नहीं भूलना चाहिए कि यह भारत है, बांग्लादेश नहीं। वह देश के कानून मंत्री रह चुके हैं। ऐसे में देश की एकता और अखंडता को चुनौती देने वाली बात कहने की आखिर उनको क्या जरूरत पड़ गई? क्या एक फाल्स नैरेटिव चलाने के लिए कुछ भी कहा जा सकता है? क्या एक सत्ताधारी दल से खुन्नस में बेसिर-पैर की बातें करने वाले ऐसे लोग हमारे लोकतंत्र को कमजोर नहीं करते हैं? जाहिर है उपराष्ट्रपति ने जिस खतरे के बारे में चेताया है, चिंता उससे कहीं ज्यादा बड़ी है।