तिरुपति विवाद: जब SGPC और वक्फ बोर्ड हैं तो सनातन धर्म बोर्ड क्यों न हो!

आंध्र के डिप्टी सीएम पवन कल्याण ने सनातन धर्म रक्षा बोर्ड की मांग उठाई है। आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया है कि भगवान वेंकटेश्वर के प्रसादम में इस्तेमाल होने वाले घी में जानवरों की चर्बी मिलाई जाती थी। उन्होंने जगन रेड्डी की पिछली सरकार पर सवाल उठाते हुए एनडीडीबी की लैब रिपोर्ट का हवाला दिया है। सैंपल में मछली के तेल और बीफ फैट की पुष्टि का दावा किया जा रहा है।

तिरुमला के भगवान वेंकटेश्वर मंदिर का दृश्य (सौजन्य- टीटीडी)

अब समय आ गया है कि पूरे देश में मंदिरों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सनातन धर्म रक्षा बोर्ड बनाया जाए। तिरुपति के लड्डू में कथित एनिमल फैट की मिलावट पर आंध्र प्रदेश के डिप्टी सीएम और अभिनेता पवन कल्याण ने यह मांग उठाई है। तिरुपति की घटना के विरोध में पवन कल्याण गुंटूर के दशावतार वेंकटेश्वर मंदिर में 11 दिन की प्रायश्चित पूजा भी कर रहे हैं। पवन कल्याण ने कहा है कि सनातन धर्म का अपमान रोकने के लिए सभी को एक साथ आना चाहिए। अभी तक सनातन यानी हिंदू धर्म से जुड़ा कोई भी बोर्ड अस्तित्व में नहीं है। वहीं, देश में मुस्लिम धर्मस्थलों के लिए वक्फ बोर्ड और सिख समुदाय के गुरुद्वारों के प्रबंधन के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी (एसजीपीसी) है। आइए जानते हैं कि ये संस्थान कैसे काम करते हैं।

वक्फ बोर्ड

अरबी भाषा के शब्द वक्फ का मतलब है खुदा के नाम पर अर्पित वस्तु या जन उपकार के लिए धन का दान। वक्फ बोर्ड के तहत चल और अचल दोनों संपत्तियां आती हैं। मुस्लिम धर्म को मानने वाला कोई व्यक्ति जमीन, मकान, पैसा या कोई दूसरी कीमती वस्तु वक्फ को दान कर सकता है। इन संपत्तियों के रख-रखाव और प्रबंधन के लिए स्थानीय से राष्ट्रीय स्तर पर वक्फ बॉडी होती हैं। 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में वक्फ ऐक्ट पास हुआ था। इसका उद्देश्य वक्फ के कामकाज को सरल बनाना था। इस ऐक्ट के प्रावधानों के मुताबिक 1964 में केंद्रीय वक्फ परिषद बनाई गई, जो अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन है।  देश में कुल 30 वक्फ बोर्ड हैं और ज्यादातर के मुख्यालय दिल्ली में स्थित हैं। केंद्र सरकार की सेंट्रल वक्फ काउंसिल इन बोर्डों के साथ तालमेत रखते हुए काम करती है। 1995 में वक्फ ऐक्ट में बदलाव के बाद हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड के गठन की इजाजत दी गई। अनुमानित आंकड़ा है कि वक्फ बोर्ड के पास 8 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन है। इन जमीनों में अधिकतर मदरसा, मस्जिद और कब्रिस्तान हैं। अगर जमीन की बात की जाए तो रेलवे और कैथोलिक चर्च के बाद वक्फ बोर्ड तीसरे नंबर पर है। लोकसभा में अल्पसंख्यक मंत्रालय ने बताया था कि दिसंबर 2022 तक वक्फ बोर्ड के पास कुल 8,65,644 अचल संपत्तियां थीं। वक्फ बोर्ड को ज्यादातर संपत्ति मुस्लिम शासन के दौरान मिली। बंटवारे के वक्त पाकिस्तान जाने वाले बहुत सारे मुसलमानों ने अपनी संपत्ति वक्फ को दान की थी।

वक्फ संपत्ति पर विवाद

वक्फ की संपत्ति को लेकर अंग्रेजों के जमाने से विवाद रहा है। वक्फ संपत्ति पर कब्जे का विवाद लंदन में प्रिवी काउंसिल तक पहुंचा था। ब्रिटेन में चार जजों की बेंच ने वक्फ को अवैध घोषित कर दिया था। हालाकिं भारत की ब्रिटिश सरकार ने मुस्लिम वक्फ वैलिडेटिंग ऐक्ट 1913 के जरिए वक्फ को बचा लिया था। वक्फ बोर्ड के अधिकारों को लेकर विवाद रहता है। वक्फ बोर्ड को अधिकार है कि वह किसी संपत्ति की जांच कर सकता है। अगर किसी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड ने दावा ठोक दिया तो उसे पलटना कठिन होता है। वक्फ ऐक्ट के सेक्शन 85 में लिखा है कि उसके निर्णय को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती।

संसद में वक्फ संशोधन बिल

संसद में इसी साल 8 अगस्त को वक्फ (संशोधन) बिल 2024 लाया गया है। अभी यह लोगों के विचार और सुझाव लेने के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया है। यह बिल वक्फ बोर्ड ऐक्ट 1995 को संशोधित करता है। सितंबर 2022 में, तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने हिंदू बहुल तिरुचेंदुरई गांव पर अपना दावा जताया था। यह बिल कहीं न कहीं वक्फ बोर्ड की मनमानी पर नकेल भी लगाएगा। बिल में किसी वक्फ प्रॉपर्टी को जिला कलेक्टर कार्यालय में पंजीकृत कराने का प्रस्ताव है। बिल में मौजूदा वक्फ कानून में 40 संशोधनों का प्रस्ताव है। इसके जरिए वक्फ बोर्ड का कामकाज और संरचना बदलने के लिए धारा 9 और 14 में बदलाव किया जाना है। महिलाओं के प्रतिनिधित्व को भी संशोधनों में शामिल किया गया है। विवादों को निपटाने के लिए वक्फ बोर्डों की ओर से दावे वाली संपत्तियों का नया सत्यापन होगा। जिला मजिस्ट्रेट वक्फ संपत्तियों की निगरानी में शामिल हो सकते हैं। वक्फ बोर्डों को सभी संपत्ति दावों के लिए अनिवार्य सत्यापन कराना होगा। विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि इस बिल का उद्देश्य मुसलमानों को उनकी जमीन, संपत्ति और संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत मिले धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता से वंचित करना है।

एसजीपीसी   

अब आते हैं शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी यानी एसजीपीसी पर। गुरुद्वारों की व्यवस्था में सुधार के मकसद से इसकी स्थापना 15 नवंबर 1920 को हुई थी। इसका उद्देश्य गुरुद्वारों को महंतों से मुक्ति दिलाना था। 190 सदस्यों वाली एसजीपीसी में 170 निर्वाचित सदस्य, 15 मनोनीत मेंबर और 5 तख्त जत्थेदार हैं। इसके साथ ही एक हेड ग्रंथी दरबार साहिब के होते हैं। 2011 में हुए चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक एसजीपीसी में कुल मतदाताओं की संख्या 56,40,943 है। पंजाब के सबसे ज्यादा 52.69 लाख वोटर हैं। वहीं हरियाणा के 3.37 लाख, हिमाचल प्रदेश के 23011 और चंडीगढ़ के 11,932 वोटर हैं। एसजीपीसी के चुनाव में वोटिंग का अधिकार सिर्फ निर्वाचित सदस्यों को होता है। एसजीपीसी की स्थापना के पांच साल बाद 1925 में सिख समुदाय ने गुरुद्वारा ऐक्ट पारित कराने में कामयाबी पाई। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर समेत कई बड़े गुरुद्वारों पर महंतों का नियंत्रण था। महात्मा गांधी ने गुरुद्वारा ऐक्ट को आजादी की लड़ाई की पहली जीत बताया था। आजादी से पहले एसजीपीसी ने जातिवाद और छुआछूत से भी संघर्ष किया। 2 अक्टूबर 1920 को दलित और सामान्य सिखों ने मिलकर स्वर्ण मंदिर में एक साथ अरदास की थी। इसे एसजीपीसी के लिए मील का पत्थर माना जाता है। 1953 में गुरुद्वारा ऐक्ट में संशोधन करके एसजीसीपी की 20 सीटों को दलित सिखों के लिए रिजर्व किया गया। 2016 में संसद ने गुरुद्वारा ऐक्ट में संशोधन करके सहजधारी सिखों को एसजीपीसी के चुनावों से बाहर कर दिया। एसजीपीसी गुरुद्वारों के प्रबंधन के साथ ही शैक्षणिक संस्थाओं (स्कूल, मेडिकल कॉलेज,  अस्पताल) और कई चैरिटेबल ट्रस्ट भी संचालित करती है। एसजीपीसी के बढ़ते दायरे और धार्मिक-शैक्षणिक संस्थाओं के बेहतर प्रबंधन के लिए अब अखिल भारतीय गुरुद्वारा प्रबंधन बोर्ड की भी मांग उठने लगी है।

हिंदुओं का बोर्ड भी होना चाहिए

तिरुपति मंदिर के लड्डुओं में जानवरों की चर्बी मिले होने के आरोप सामने आने के बाद सनातन धर्म के लिए भी एक स्वतंत्र बोर्ड की मांग उठ रही है। यानी एक ऐसा बोर्ड जहां हिंदू समुदाय से जुड़े मंदिरों के प्रबंधन और देखरेख के लिए निर्णय लिए जा सकें। वर्तमान समय में कुछ प्रतिष्ठित मंदिरों के बोर्ड हैं, जिन पर अपरोक्ष रूप से सरकारी नियंत्रण है। ज्यादातर मंदिरों पर ट्रस्ट के जरिए या सीधे तौर पर सरकारी नियंत्रण है। यही नहीं इन मंदिरों से होने वाली आय का कुछ उपयोग गैर हिंदू धार्मिक कार्यों में किया जाता है। इसके उलट मस्जिदों, चर्च और गुरुद्वारों का संचालन मुस्लिम, ईसाई और सिख समुदायों के पास ही है। एक आंकड़े के मुताबिक देश के 10 राज्यों में एक लाख 10 हजार हिंदू मंदिर सरकार के नियंत्रण में हैं। ऐसे में सवाल यह है कि जब चर्च और मस्जिद के संचालन के लिए बोर्ड बने हैं, तो सनातन धर्म के लिए ऐसा बोर्ड क्यों नहीं होना चाहिए, जिसमें हिंदू धर्म से जुड़े लोग ही शामिल हों। आंध्र के डिप्टी सीएम और अभिनेता पवन कल्याण ने जो मांग उठाई है, वह जायज है। कल्याण ने तिरुपति की घटना को सनातन धार्मिक भावनाओं का अपमान बताते हुए कहा है कि अब देश के मंदिरों से जुड़े मसलों पर चर्चा के लिए एक राष्ट्रीय सनातन धर्म रक्षा बोर्ड बनाया जाना चाहिए। सवाल सिर्फ तिरुपति बालाजी मंदिर का नहीं है, बल्कि पूरे सनातन धर्म और धार्मिक मान्यताओं का भी है, जिस पर ऐसी घटनाओं से गहरी चोट पहुंच रही है।

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