लखनऊ: स्पेशल ठाकुर फोर्स, सरेआम ठोको फोर्स। ये उपमाएं मिली हैं उत्तर प्रदेश के उस पुलिस बल को, जिसका गठन संगठित अपराध को नेस्तनाबूद करने के लिए हुआ था। कल्याण सिंह के समय में बनी स्पेशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ इन दिनों विवादों में है। पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि जाति देखकर यूपी में एनकाउंटर हो रहे हैं। सुलतानपुर में डकैती के आरोपी मंगेश यादव के मुठभेड़ के बाद ‘एनकाउंटर पॉलिटिक्स’ का नया दौर शुरू हुआ। सोमवार तड़के इसी मामले के एक और आरोपी अनुज प्रताप सिंह को एसटीएफ ने मुठभेड़ में मार गिराया। अनुज सिंह के पिता धर्मराज सिंह ने कहा- अखिलेश की इच्छा पूरी हो गई। ठाकुर का भी एनकाउंटर हो गया। अब उनके दिल को तसल्ली मिल गई होगी। जिस फोर्स को लेकर यूपी की सियासत में बवाल मचा है, उस एसटीएफ के बनने की दास्तां आपको बताते हैं:
‘श्रीप्रकाश मेरी सरकार के लिए नासूर बना’
जो एसटीएफ आज यादव और ठाकुर के फेर में फंसी है, उसके गठन की दास्तां कम दिलचस्प नहीं है। एसटीएफ की कहानी का पहला चैप्टर एक ब्राह्मण गैंगस्टर से शुरू होता है। पूर्व आईपीएस और एसटीएफ के पहले चीफ अजय राज शर्मा ने बाइटिंग द बुलेट: मेमोरी ऑफ ए पुलिस ऑफिसर नाम से एक किताब लिखी है। तारीख- 4 मई 1998। एक इंटरव्यू में अजयराज कहते हैं, ‘मेरे फोन की घंटी अचानक से बजी। उस समय मैं सीतापुर में था। फोन पर सूचना मिली कि मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने आज ही शाम को मिलने के लिए बुलाया है। मैं पहुंचा तो अपने कमरे में वो टहल रहे थे। चेहरे पर कुछ घबराहट थी। जब मैंने पूछा तो उन्होंने कहा कि श्रीप्रकाश शुक्ला मेरी सरकार के लिए नासूर बन गया है। ऐसा क्राइम करता है कि रोज अखबार में छप रहा है और विधानसभा में रोज मुझे जवाब देना पड़ता है।‘
कल्याण ने कहा- श्रीप्रकाश मुझे मार सकता है
कल्याण सिंह अक्सर पान खाया करते थे। सीएम की मीटिंग में डीजीपी और अजय राज शर्मा के अलावा तेज-तर्रार आईपीएस अरुण कुमार भी थे। पान चबाते-चबाते कल्याण सिंह ने कहा- मैं रोज आठ-दस सुपारी चबा लेता हूं। लेकिन अब किसी ने मेरी ही सुपारी ले ली। यह बड़ी बात है। कल्याण सिंह ने अजय राज शर्मा से कहा, ‘श्रीप्रकाश शुक्ला से मेरी जान को खतरा है, उसने मुझे मारने के लिए पांच करोड़ रुपये की सुपारी ली है। मुझे पता है कि यह गैंग सारे सिक्योरिटी घेरे को तोड़कर मुझे मार सकता है। मैंने आपको इसीलिए बुलाया है और आप एडीजी का चार्ज कल ही ले लीजिए।‘
उसी रात एसटीएफ का हुआ गठन
अजय राज शर्मा इंटरव्यू में कहते हैं, ‘मैंने कल्याण सिंह से कहा कि सर मैं कल ही चार्ज ले लूंगा लेकिन मुझे अभी तुरंत एक छोटी सी नई यूनिट चाहिए।‘ उस समय के गृह सचिव राजीव रतन शाह भी मीटिंग में थे। उन्होंने कहा कि ऐसे दुर्दांत अपराधियों से निपटने के लिए न्यूयॉर्क में एसटीएफ है। यहां भी क्यों न ऐसी फोर्स बना दी जाए। राजीव रतन शाह ने कहा कि इस फोर्स में ऐसे अफसर हों, जिनके अंदर जुनून होने के साथ ईमानदारी भी हो। अजय राज शर्मा और शाह के सुझाव को मानते हुए कल्याण सिंह ने तत्काल इस नई फोर्स के गठन को मंजूरी दी। उसी रात एडीजी रैंक के आईपीएस अजय राज शर्मा के नेतृत्व में 17 पुलिस अफसरों की एसटीएफ अस्तित्व में आ गई। इस टीम में आईपीएस अरुण कुमार, सत्येंद्र वीर सिंह के अलावा राजेश पांडे भी शामिल थे। अरुण कुमार उस समय लखनऊ के एसएसपी थे, जबकि राजेश पांडेय के पास सीओ हजरतगंज की जिम्मेदारी थी। यूपी पुलिस के तेज-तर्रार और बेहतरीन 50 जवानों को इस टीम में लिया गया। सबसे पहला काम था- श्रीप्रकाश शुक्ला का खात्मा।
सर्विलांस को बनाया हथियार, 5 महीने बाद श्रीप्रकाश ढेर
एसटीएफ के लिए श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ना आसान नहीं था। उस दौर में श्रीप्रकाश शुक्ला दर्जनों सिम इस्तेमाल करता था और थोड़ी-थोड़ी देर पर सिम कार्ड बदल देता था। एसटीएफ ने आईआईटी कानपुर के एक छात्र से फोन ट्रैकिंग का उपकरण बनाने को कहा। श्रीप्रकाश की तमाम फोन कॉल्स को अब एसटीएफ ट्रैक करने में जुट गई। इस तमाम कवायद में चार महीने बीत गए। इसके बाद अक्टूबर 1998 में श्रीप्रकाश की एक फोन कॉल सर्विलांस से इंटरसेप्ट हुई। इनपुट मिला कि वह गाजियाबाद में किसी काम से आ रहा है। एसटीएफ ने मोहननगर से वैशाली वाले रास्ते पर ओवरब्रिज के पास जाल बिछा दिया। नीले रंग की सीलो कार में श्रीप्रकाश गाजियाबाद की ओर जा रहा था। वसुंधरा इन्क्लेव पार करते ही अरुण कुमार और एसटीएफ की टीम श्रीप्रकाश शुक्ला के पीछे लग जाती है। इंदिरापुरम पहुंचते-पहुंचते उसे पीछा किए जाने का अंदेशा हुआ तो कार को उसने कौशांबी की ओर मोड़ दिया। कच्चे रास्ते पर जब वो गाड़ी उतार रहा था तो एसटीएफ की टीम ने घेर लिया। इसके बाद फायरिंग में श्रीप्रकाश अपने साथियों अनुज प्रताप सिंह और सुधीर त्रिपाठी के साथ मुठभेड़ मारा गया। एसटीएफ के गठन के 4 महीने 19 दिन बाद 23 सितंबर 1998 को श्रीप्रकाश का खेल खत्म हो गया।
इन दुर्दांत गैंगस्टर्स को एसटीएफ ने किया ढेर
श्रीप्रकाश शुक्ला के मुठभेड़ में ढेर होने को संगठित अपराध पर सबसे बड़ी चोट माना गया। मायावती के शासनकाल में एसटीएफ ने कुख्यात डकैत शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ और अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया को मार गिराया। मुलायम सिंह के सीएम रहते चंबल के डकैत निर्भय गुर्जर और लखनऊ में रमेश कालिया का एनकाउंटर हुआ। योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में बिकरू कांड के मुख्य आरोपी विकास दुबे को लाते समय एसटीएफ की गाड़ी पलट गई। इस दौरान क्रॉस फायरिंग में विकास दुबे मारा गया। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक मुलायम सिंह के कार्यकाल (29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007) में 499 अपराधी मुठभेड़ में मारे गए। वहीं 2007 से 2012 के बीच मायावती के शासन में 261 बदमाश एनकाउंटर में ढेर हुए। 19 मार्च 2017 से अब तक योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में 207 अपराधी मारे गए हैं। वहीं अखिलेश यादव के कार्यकाल (15 मार्च 2012 से 19 मार्च 2017) में 40 बदमाशों को मुठभेड़ में ढेर किया गया।
मंगेश यादव मुठभेड़ से शुरू हुआ विवाद
अब मंगेश यादव मुठभेड़ के बाद मुख्य विपक्षी पार्टी सपा ने यूपी एसटीएफ को निशाने पर लिया हुआ है। सुलतानपुर में ज्वैलरी शॉप पर डकैती के आरोपी मंगेश यादव का यूपी एसटीएफ ने पांच सितंबर को एनकाउंटर किया। अखिलेश यादव ने एक्स पर पोस्ट में लिखा, ‘नकली एनकाउंटर से पहले मुख्य आरोपी से संपर्क साधकर सरेंडर करा दिया गया। अन्य लोगों के पैरों पर सिर्फ दिखावटी गोली मारी गई और जाति देखकर जान ली गई।‘ मंगेश पर चोरी, लूट और डकैती के कुल सात मुकदमे दर्ज थे। इस मुठभेड़ के बाद नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव समेत सपा का प्रतिनिधिमंडल जौनपुर में मंगेश यादव के घर गया था। इसके बाद 23 सितंबर की सुबह इस मामले में फरार चल रहे आरोपी अनुज प्रताप सिंह को एसटीएफ ने मुठभेड़ में मार गिराया। इसके बाद फिर घमासान मचा है। अखिलेश यादव ने एक्स पर लिखा, ‘सबसे कमज़ोर लोग एनकाउंटर को अपनी शक्ति मानते हैं। किसी का भी फ़र्ज़ी एनकाउंटर नाइंसाफ़ी है। हिंसा और रक्त से उत्तर प्रदेश की छवि को धूमिल करना प्रदेश के भविष्य के विरुद्ध एक बड़ा षड्यंत्र है। आज के सत्ताधारी जानते हैं कि वो भविष्य में फिर कभी वापस नहीं चुने जाएंगे। इसीलिए वो जाते-जाते यूपी में ऐसे हालत पैदा कर देना चाहते हैं कि यहां कोई प्रवेश-निवेश ही न करे। यूपी की जागरूक जनता ने जिस तरह लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराया है, भाजपाई उसी का बदला ले रहे हैं। जिनका ख़ुद का कोई भविष्य नहीं होता, वही भविष्य बिगाड़ते हैं। निंदनीय!‘
सबसे कमज़ोर लोग एनकाउंटर को अपनी शक्ति मानते हैं। किसी का भी फ़र्ज़ी एनकाउंटर नाइंसाफ़ी है।
हिंसा और रक्त से उप्र की छवि को घूमिल करना उप्र के भविष्य के विरूद्ध एक बड़ा षड्यंत्र है। आजके सत्ताधारी जानते हैं कि वो भविष्य में फिर कभी वापस नहीं चुने जाएँगे। इसीलिए वो जाते-जाते…
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) September 23, 2024
कैसे काम करती है एसटीएफ?
अभी यूपी एसटीएफ में तीन आईपीएस और 18 पीपीएस अफसर हैं। एडीजी रैंक के अफसर के पास एसटीएफ को लीड करने की जिम्मेदारी होती है। अभी एडीजी लॉ एंड ऑर्डर अमिताभ यश यूपी एसटीएफ के मुखिया हैं। इसके अलावा एसटीएफ में डीआईजी और एसपी रैंक के अधिकारी शामिल होते हैं। तीसरे लेयर में एएसपी और डीएसपी रैंक के अफसर होते हैं और सबसे आखिरी लेयर में हेड कॉन्स्टेबल और कॉन्स्टेबल शामिल होते हैं। एसटीएफ अलग-अलग टीमों के जरिए ऑपरेशन को अंजाम देती है। अडिशनल एसपी या डिप्टी एसपी के नेतृत्व में ये टीम काम करती है। एसटीएफ के पास बिना किसी थाने को पूर्व सूचना दिए कार्रवाई का अधिकार मिला हुआ है। इसलिए ज्यादातर स्थानीय पुलिस को बाद में ही एसटीएफ की कार्रवाई का पता चलता है। अपने 26 साल के सफर में यूपी एसटीएफ को राष्ट्रपति से 81 वीरता पुरस्कार मिल चुके हैं।