आपातकाल के भयावह दौर के बीच 1977 में आम चुनाव हो रहे थे और गुजरात के महसाणा लोकसभा क्षेत्र में एक 13 साल का बच्चा हाथों में चुनावी पोस्टर और स्टिकर लिए दौड़ लगा रहा था। इस बच्चे के पास जनसंघ की उम्मीदवार और सरदार वल्लभभाई पटेल की बेटी मणिबेन पटेल के नाम के पोस्टर थे और बच्चे का नाम था अमित अनिलचंद्र शाह। 22 अक्टूबर 1964 को मुंबई में गुजराती दंपत्ति कुसुम बेन और अनिलचंद्र शाह के यहां जन्मे अमित शाह में बचपन के दिनों से सामाजिक कार्यों के प्रति जुनून पैदा हो गया था। अमित शाह के दादा गायकवाड़ की बड़ौदा रियासत की एक छोटी सी रियासत मनसा में एक धनी व्यापारी थे और शाह के जन्म के तुरंत बाद उनके दादा परिवार को मुंबई से वापस गुजरात के मनसा में अपने पैतृक गांव में ले आए थे।
‘पूनम’ था शाह के बचपन का नाम, स्कूल में लड़ा पहला चुनाव
अमित शाह बचपन में 4 बचे ही उठ जाते थे और आचार्य उन्हें भारतीय धर्मग्रंथों व महाकाव्यों की शिक्षा देते थे। वे पैदल ही स्कूल जाते थे और वहीं से उनकी कड़ी मेहनत करने और अनुशासित जीवन जीने की क्षमता विकसित होना शुरु हो गई थी। अमित शाह के बचपन के दोस्त और पेशे से दर्जी सुधीर कुमार सकलचंद ने एक इंटरव्यू में बताया है कि बचपन में हम लोग अमित शाह को ‘पूनम’ कहकर बुलाते थे। सुधीर ने कहा, “अमित को बचपन से ही पढ़ने का काफी शौक भी रहा है और उन्होंने चाणक्य, मुगल साम्राज्य जैसी कई किताबें पढ़ीं थीं।” सुधीर कहते हैं कि 5वीं कक्षा में पहली बार उन्होंने क्लास मॉनिटर का चुनाव लड़ा और जीता भी था लेकिन इस बात का अंदाजा किसी को नहीं था कि राजनीति ही उनका करियर होगा।
RSS, ABVP और BJYM से जुड़े रहे शाह
अमित शाह 1980 में 16 साल की उम्र में ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) से जुड़ गए थे और साथ ही वे RSS की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से भी जुड़े रहे। ABVP में शाह ने पूरी लगन और मेहनत से काम किया और 2 वर्षों के भीतर ही वे 1982 में ABVP की गुजरात इकाई के संयुक्त सचिव बन गए थे। अमित शाह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1985 में हुई जब वे लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारी बीजेपी में शामिल हुए थे। इसके बाद 1987 में वे भारतीय जनता पार्टी की युवा इकाई भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) में शामिल हो गए।
नरेंद्र मोदी से शाह की पहली मुलाकात
बताया जाता है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पहली मुलाकात 1982 में हुई थी। इस दौरान नरेंद्र मोदी अहमदाबाद में संघ के जिला प्रचारक हुआ करते थे और शाह ABVP से जुड़े थे। धीरे-धीरे दोनों के बीच तालमेल बढ़ता गया और दोनों एक-दूसरे के लिए पूरक जैसे बन गए। गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष रहे शंकर सिंह वाघेला ने एक इंटरव्यू में बताया था, “मैं अपने पार्टी दफ्तर में बैठा था, नरेंद्र मोदी मेरे पास एक लड़के को लेकर आए और कहा ये अमित शाह हैं, कारोबारी और युवा मोर्चा से जुड़े हैं आप इन्हें पार्टी में कुछ काम दे दीजिए।”
‘चाणक्य’ की पहली चुनावी परीक्षा
शतरंज के शौकीन अमित शाह को राजनीति के मोहरे फिट करने की उनकी कला के चलते भारत की राजनीति का चाणक्य माना जाता है। अमित शाह के चुनावी प्रबंधन की शुरुआत 1991 से हुई थी। 1991 में गांधीनगर लोकसभा सीट से तब के बीजेपी के सबसे प्रभावशाली नेता लाल कृष्ण आडवाणी चुनाव लड़ रहे थे और शाह इस चुनाव में उनके प्रभारी बने थे। कहा जाता है कि शाह ने खुद उन्हें प्रभारी बनाने की मांग की थी और कहा था कि अगर आडवाणी एक दिन भी प्रचार के लिए ना आएं तो वे भी चुनाव जीत जाएंगे। इस चुनाव में आडवाणी ने भारी अंतर से जीत दर्ज की थी और शाह अपनी पहली चुनावी परीक्षा में सफल साबित हुए।
5 बार विधायक रहे शाह दूसरी बार हैं सांसद
भारतीय जनता पार्टी ने 1997 में अमित शाह को के युवा मोर्चा का राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बनाया था और इसी वर्ष उन्हें सरखेज विधानसभा उप-चुनाव में पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया। अमित शाह 25,000 वोटों से जीते और पहली बार विधायक चुने गए। शाह ने अपने दूसरे टर्म में 1.30 लाख वोटों से जीत दर्ज की और तीसरे व चौथे टर्म में उनकी जीत का अंतर क्रमश: 2.88 लाख और 2.32 लाख का रहा था। परिसीमन के बाद उनका निर्वाचन क्षेत्र नारनपुरा में हो गया जिसकी आबादी उनके पिछले चुनावी क्षेत्र की करीब एक चौथाई थी।
शाह ने यहां से अपना विधानसभा चुनाव 63,000 से अधिक वोटों से जीता। 2019 में अमित शाह को बीजेपी ने लाल कृष्ण आडवाणी की जगह गांधीनगर से अपना उम्मीदवार बनाया और उन्होंने करीब 5.5 लाख वोटों से बड़ी जीत दर्ज की। 2024 के लोकसभा चुनाव में शाह फिर से गांधीनगर से बीजेपी के उम्मीदवार बने और इस बार उन्होंने 7.44 लाख वोटों से जीत दर्ज की।
शाह ने विरोधी के लिए लगवाए थे पोस्टर
अमित शाह की राजनीतिक कार्यशैली में चाणक्य की ‘साम दाम दंड भेद’ की नीति स्पष्ट नज़र आती है और वे कोई भी दांव लगाने में हिचकते नहीं हैं। शाह के जीवनीकार अनिर्बान गांगुली और शिवानंद द्विवेदी एक किस्सा सुनाते हैं, “एक बार अमित शाह अपने गढ़ नारनपुरा से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे। उनकी जीत लगभग पक्की मानी जा रही थी लेकिन तब भी चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अपने समर्थकों से अपने कांग्रेस के प्रतिद्वंदी जीतूभाई पटेल के 500 पोस्टर लगाने के लिए कहा था।”
उनके जीवनीकार कहते हैं, “जब शाह के समर्थकों ने इसका कारण पूछा तो उनका जवाब था कि हमारे प्रतिद्वंदी ने हार मान ली है और हम ये पोस्टर इसलिए लगा रहे हैं कि हमारे वोटरों को लगे कि मुक़ाबला कड़ा है और वो मतदान के दिन भारी संख्या में मतदान करने पहुंचें। अगर उन्हें लगने लगेगा कि मेरी जीत पक्की है तो वो घर में ही बैठे रहेंगे।” शाह ने विधानसभा चुनाव में यहां से 63,000 से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी।
यूपी में शाह ने कैसा खिलाया कमल
शाह के जीवनीकार अनिर्बान गांगुली और शिवानंद द्विवेदी अपनी पुस्तक ‘अमित शाह और भाजपा की यात्रा’ में लिखते हैं, “12 जून 2013 को जब अमित शाह यूपी आए थे तब 2014 के आम चुनावों में एक साल से भी कम समय बचा था। शाह के यूपी की राजनीति में अनुभव की कमी के बारे में चर्चाएं थीं। कई लोगों को संदेह था कि क्या शाह यूपी में नरेंद्र मोदी के अभियान की अगुआई कर पाएंगे।”
शाह ने चुनाव के लिए जमीनी स्तर पर तैयारी शुरू की और इसके लिए उन्होंने पुराने बीजेपी नेताओं से मदद लेनी शुरू कर दी। शाह ने लखनऊ में पार्टी ऑफिस की पहली मंजिल से काम करना शुरू कर दिया, इस दौरान उनकी बैठकें दैर रात तक होती थीं क्योंकि दिन में वे यात्रा करते थे। शाह ने अर्जुन की तरह एक ही लक्ष्य तय कर रखा था। बूथों के लिए करीब 4 लाख पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की गई। ये कार्यकर्ता जमीनी हकीकत को सीधा लखनऊ की टीम तक पहुंचा रहे थे।
अनिर्बान गांगुली और शिवानंद द्विवेदी लिखते हैं, “जाति के समीकरण साधने के लिए ओबीसी और दलितों के बड़े छत्रपों से बात की गई। शाह ने गैर जाटव दलितों और गैर यादव पिछड़े वर्ग के लोगों को साधने पर जान लगा दी। शाह ने नरेंद्र मोदी से वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ने को कहा उनका अनुमान था कि इससे ‘हिंदुत्व की लहर’ उठेगी। जिसका बीजेपी को फायदा होगा।” इस चुनाव के जब नतीजे आए तो उनमें शाह की कड़ी मेहनत साफ झलक रही थी। 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी में बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 73 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
बीजेपी के सबसे युवा अध्यक्ष बने शाह
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत के बाद तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह सरकार में शामिल हो गए और जुलाई 2014 में अमित शाह को पार्टी का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया। शाह की उम्र तब 49 वर्ष थी और वह बीजेपी के अध्यक्ष चुने जाने वाले सबसे कम उम्र के नेता थे। शाह 2016 में दूसरी बार अध्यक्ष बने और उनका कार्यकाल 2019 तक रहा था।
शाह ने पार्टी का अध्यक्ष बनने के पहले साल के भीतर ही सभी राज्यों का दौरा किया और उन्होंने संगठन में एक नई जान फूंक दी। शाह ने पार्टी में प्रवास की कार्यशैली की फिर से शुरुआत की, उन्होंने फाइव स्टार कल्चर को खत्म किया। शाह के बीजेपी अध्यक्ष रहते हुए बीजेपी के सदस्यों की संख्या 2.47 करोड़ से बढ़कर 11.20 करोड़ हो गई और यह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी। शाह ने सभी जिला मुख्यालयों पर पार्टी के दफ्तर बनवाए, इनमें लाइब्रेरी बनाई गईं और उन्होंने पार्टी के सभी कागजातों का डिजिटलीकरण करवाया।
पार्टी के एजेंडा लागू करने वाले गृह मंत्री
2019 में जब बीजेपी सरकार बनी तो अमित शाह मंत्रिमंडल में शामिल हो गए और उन्हें गृह मंत्रालय का प्रभार दिया गया। राजनाथ को हटाए जाने के बाद से ये अटकलें जोरों पर थीं कि पार्टी शाह के जरिए अपना और RSS का एजेंडा को अमलीय जामा पहनाना चाहती है। इस एजेंडे में कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को निरस्त करवाना, नक्सलवाद की समस्या को हल करना, राम मंदिर के मुद्दे का हल ढूंढना, नागरिकता कानून में संशोधन कर पड़ोसी देशों के हिंदू शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देना और गैर कानूनी ढंग से भारत में घुसने वाले बांग्लादेशियों को रोकने के लिए नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बनाना जैसे मुद्दे शामिल थे।
नरेंद्र मोदी के जनरल अमित शाह ने अपनी वर्किंग स्टाइल के दम पर इनमें से ज्यादातर मुद्दों का हल निकाल लिया है। अमित शाह के सामने अब एक बार फिर से बीजेपी को आगे बढ़ाने, एनआरसी लागू करने और नक्सलवाद व आतंकवाद को पूरी तरह से खत्म करने की चुनौतियां हैं।