चाकू से गोदा, 20 राउंड गोलीबारी, शव पर भी बरसाए पत्थर… 130 साल से निशाना बनते हिन्दू उत्सव

चंदन गुप्ता के बाद अब रामगोपाल मिश्रा

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बहराइच में रामगोपाल मिश्रा की हत्या के बाद बिलखते परिजन, और कितनी क्षति सहेगा हिन्दू समाज?

चंदन गुप्ता 22 साल के थे, रामगोपाल मिश्रा भी 22 साल के थे। चंदन गुप्ता ने तिरंगा यात्रा निकाली थी, रामगोपाल मिश्रा ने भगवा झंडा लहराया। यही इनका गुनाह था। इन्हें समान सज़ा मिली—मौत की। चंदन गुप्ता कासगंज के थे, रामगोपाल मिश्रा बहराइच के। सलीम, वसीम, नसीम, जाहिद उर्फ जग्गा, आसिफ कुरैशी उर्फ हिटलर, असलम कुरैशी, असीम कुरैशी, नसरुद्दीन, अकरम, तौफिक, खिल्लन, शबाव, राहत, सलमान, मोहसिन, आसिफ जिम वाला, सादिक और बबलू—ये चंदन गुप्ता के हत्यारे थे। अब्दुल हमीद, सरफराज, फहीम और साहिर खान—ये रामगोपाल मिश्रा के हत्यारे हैं। ये हत्या सिर्फ हत्या नहीं है; हत्या से पहले उन्हें बुरी तरह तड़पाया गया। शव को भी घसीटा गया, शव पर पत्थर भी चलाए गए।

बहराइच में दुर्गा पूजा विसर्जन यात्रा पर हमला

घटना महसी तहसील के हरदी क्षेत्र के महाराजगंज कस्बा स्थित रेहुआ मंसूर गाँव की है। रामगोपाल मिश्रा को सबसे पहले ये लोग खींच कर एक घर के भीतर ले गए। वहाँ उन्हें तलवार से काटा गया, फिर गोली मार दी गई। शरीर पर चाकू के वार के भी निशान हैं। लखनऊ में ‘हिंदू समाज पार्टी’ के अध्यक्ष कमलेश तिवारी के हत्याकांड वाली घटना को याद कीजिए। कमलेश तिवारी पर चाकू से 15 वार किए गए, फिर उनके चेहरे में गोली मार दी गई। जो लोग इन घटनाओं को अंजाम देते हैं, उनकी मंशा सिर्फ हत्या की नहीं होती है। उनकी मंशा होती है हलाल करने की, खौफ पैदा करने की। इनकी करतूतों पर कोई चूँ तक न करे, यही इनकी मंशा होती है।

22 साल के नौजवान को इस क्रूरता से मार डालने का अर्थ समझते हैं आप? इसका अर्थ होता है एक परिवार के उन सपनों का गला घोंटना, जो उन्होंने अपने बच्चे के लिए देखे होते हैं। इसका अर्थ होता है हिंदुओं की युवा जनसंख्या में से एक व्यक्ति को कम कर देना। इसका अर्थ होता है एक होनहार युवा, जो आगे चलकर डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी, वकील कुछ भी बन सकता था और समाज में योगदान दे सकता था—अपने धर्म, समाज और लोगों को आगे बढ़ा सकता था—ये सब खत्म कर दिया जाना।

हम इस घटना पर विस्तार से बात करेंगे, लेकिन पहले समझिए कि बहराइच में हुआ क्या। दुर्गा पूजा 9 दिन चली, हर साल चलती है। इसके बाद प्रतिमा विसर्जन यात्रा निकली, हर साल निकलती है। देश के गली-गली में निकलती है। लेकिन ट्रेंड ये है कि हर साल हमारी यात्राओं पर हमले भी होते हैं। हमला करने वालों को उनके नाम से, यहाँ तक कि उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है। वो एक खास विचारधारा का अनुसरण करते हैं। वही विचारधारा जो इजरायल पर रॉकेट बरसाती है। वही विचारधारा जो जम्मू कश्मीर में हमारे सैनिकों का खून बहाती है। वही विचारधारा जो बांग्लादेश में महिलाओं के अंतःवस्त्र लहराकर उसे क्रांति बताती है। वही विचारधारा जो अफगानिस्तान में महिलाओं पर कोड़े बरसाती है। वही विचारधारा जो अवैध अतिक्रमण कर-करके भारत में रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद सबसे बड़ा जमींदार बन गई है। वही विचारधारा जो भड़काऊ नारे लगाते हुए सड़कों पर भीड़ की शक्ल में निकलती है। वही विचारधारा जो हिंदू महिलाओं को छद्म नाम से फाँस कर निकाह और धर्मांतरण कराती है। वही विचारधारा जो कभी अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को ध्वस्त कर देती है, तो कभी मुंबई में हमला कर 166 जानें ले लेती है।

जो यूपी CAA और राम मंदिर फैसले के दौरान भी शांत रहा, वहाँ ये सब?

बहराइच में DJ बजाने को लेकर विवाद हुआ। देश में उनके 5 लाख मजहबी स्थल रोज 5-5 बार माइक से ये घोषित करें कि तुम्हारे ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं है और हमारा वाला ही एक सत्य है, तो ये ठीक है। लेकिन हमारे त्योहारों पर हम थोड़ा उत्सव मना लें तो उन्हें ये नहीं पचता। वो भी तब, जब इस देश को, इस देश की मिट्टी को हजारों वर्षों से हमने सींचा है, लेकिन तलवार के दम पर यहाँ खुद को स्थापित करने वाली विचारधारा और उसके समर्थक चाहते हैं कि हम वही करें, जो उन्हें अच्छा लगे। यहाँ सवाल यूपी पुलिस पर भी उठते हैं। उत्तर प्रदेश की जिस पुलिस को अपराधियों के ताबड़तोड़ एनकाउंटर और अपराध जगत में भय व्याप्त करने के लिए जाना जाता है, वही पुलिस आज डासना में यति नरसिंहानंद सरस्वती के पक्ष में आंदोलन कर रहे साधुओं के साथ दुर्व्यवहार करती दिखती है, तो कभी बहराइच में उन हिंदुओं के खिलाफ ही बल-प्रयोग करती हुई दिखती है जो पीड़ित हैं। जब इस तरह की घटना होगी, तो सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के रूप में अपना आक्रोश व्यक्त करने के अलावा हिंदुओं के पास और चारा ही क्या बचता है? अखिलेश वाजपेयी नामक एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि माँ दुर्गा की प्रतिमा पर ईंटें फेंकी गईं। जब उन्होंने पुलिस से कार्रवाई करने के लिए कहा, तो पुलिस ने श्रद्धालुओं पर ही लाठी बरसानी शुरू कर दी।

वो तो भला हो कि यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार है, जिन्होंने त्वरित कार्रवाई करते हुए स्थानीय पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया और वरिष्ठ अधिकारियों को मौके पर पहुँचने के आदेश दिए। तुरंत FIR दर्ज हुई और आरोपितों की धर-पकड़ शुरू हुई। वो DGP से लगातार अपडेट ले रहे हैं। स्थानीय भाजपा विधायक सुरेश्वर सिंह लगातार पीड़ित परिवार और समाज के साथ बने हुए हैं, विरोध प्रदर्शनों में उनका साथ दे रहे हैं। वरना, हमने तो वो सरकार भी देखी है जो सांप्रदायिक हिंसा रोकने के नाम पर ऐसा कानून लेकर आ रही थी, जो अगर मूर्त रूप ले लेता, तो हर प्रकार की हिंसा में केवल हिंदुओं को ही दोषी ठहराया जाता और हिंदू-विरोधी बच निकलते। भला हो कि UPA सरकार का वो बिल कानून का रूप नहीं ले पाया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में हिंदू विश्वास रखते हैं। उनके ही कार्यकाल में अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी के माफिया-राज से आम लोगों को मुक्ति मिली। अपराधी गले में तख्ता डाल कर थाने में आत्मसमर्पण करने लगे। CAA के खिलाफ दिल्ली में दंगे हुए, लेकिन यूपी में शांति रही। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी यूपी शांत रहा।

130 वर्ष पहले भी हुआ था, आज भी हो रहा

विडम्बना देखिए कि एक गिरोह अब रामगोपाल मिश्रा के हत्याकांड को भी जायज ठहराने में लग गया है। मोहम्मद ज़ुबैर लिख रहा है कि उन्होंने भगवा झंडा लहराया था, इसलिए उन्हें मार दिया गया। फिर गोहत्या करने वालों के साथ क्या किया जाना चाहिए? गाय को हिंदू समाज माता के रूप में पूजता है, महाराष्ट्र में गौमाता को ‘राज्य माता’ भी घोषित किया गया है। ऋग्वेद तक में गौवों की स्तुति दर्ज है, फिर गायों के हत्यारों को कानूनी रूप से भी सज़ा दिए जाने का विरोध क्यों किया जाता है? यानी, आप किसी को सिर्फ इसलिए तलवार से काटकर 20 राउंड गोली मार कर मार डालोगे, क्योंकि उसने भगवा झंडा लहराया। लेकिन, आप गोहत्यारों का बचाव करोगे। ऐसे कैसे चलेगा? फिर उनके साथ क्या होना चाहिए, जिन्होंने CAA के विरोध के नाम पर कई महीनों तक राष्ट्रीय राजधानी को बंधक बना कर रखा? एम्बुलेंस में लोगों की जान जाती रही, रोज दफ्तर जाने-आने वाले लोग प्रताड़ित होते रहे। फिर उमर खालिद और शरजील इमाम जैसों का समर्थन क्यों किया जाता है, जो इस देश को खंडित करने, टुकड़े-टुकड़े करने की बातें करते हैं। जिस देश में आतंकियों तक का समर्थन किया जाता है, वहाँ ये सन्देश दिया जा रहा है कि हमने तुम्हें मार कर ठीक किया, क्योंकि तुमने भगवा झंडा लहराया था। ये कोई नहीं बता रहा कि उसी घर से पहले यात्रा पर पत्थरबाजी हुई।

हिंदू यात्राएँ ही बार-बार निशाना क्यों बनती हैं? ये सब आज से नहीं, बल्कि सदियों से चल रहा है। आज से 130 वर्ष पूर्व सन् 1895 में महाराष्ट्र के पुणे में गणेश उत्सव पर हमला किया गया था। बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र में गणेश पूजा को सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाने की शुरुआत की। ऐसे उत्सवों पर भी जगह-जगह हमले हुए। 130 वर्ष बीत गए, आज भी वही हो रहा है। पीड़ित हिन्दू बेचारे विरोध प्रदर्शन करते हैं, सोशल मीडिया पर आक्रोश व्यक्त किया जाता है, फिर इतिश्री हो जाती है। अगले साल फिर वही घटनाएँ दोहराई जाती हैं।

2023 में मेवात के नूहं में ब्रजमंडल जलाभिषेक यात्रा को निशाना बनाया गया। श्रद्धालुओं पर हमले हुए, अस्पताल में घुसकर इलाजरत घायलों तक को नहीं छोड़ा गया। तब भी पत्थरबाजी और गोलीबारी हुई थी। होमगार्ड के जवान समेत 6 लोगों की हत्या कर दी गई। 140 से भी अधिक FIR दर्ज की गई थी। राजनीतिक गिद्धों ने इस हमले का फायदा उठाया। भले ही हरियाणा में भाजपा ने तमाम आकलनों को धता बताते हुए शानदार जीत दर्ज की, नूहं की तीनों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का दबदबा रहा। फिरोजपुर झिरका से मामन खान 1 लाख से भी अधिक वोटों से जीते, यह इस चुनाव की सबसे बड़ी जीत रही। भाजपा ने सौहार्द और भाईचारा दिखाते हुए मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा किया, लेकिन उसकी बुरी हार हुई। नूहं की तीनों विधानसभा सीटें कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं के खाते में गईं। मेवात की समस्या से हरियाणा सरकार कैसे निपटेगी, यह अब तक एक पहेली है।

भारत के पड़ोस में सिर्फ एक पाकिस्तान है जहाँ हिंदुओं की जनसंख्या 20 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत हो गई है। सिर्फ एक बांग्लादेश है जहाँ 2021 में दुर्गा पूजा के 80 पंडालों को तबाह कर दिया गया था, सिर्फ एक अफवाह के कारण। लेकिन, हमारे इसी भारत देश में कई पाकिस्तान और बांग्लादेश बन गए हैं।

कासगंज से बहराइच तक, हिंसा में जान गँवा रहे हमारे युवा

गोली भी सिर्फ एक राउंड नहीं चली है, बहराइच में 20 राउंड गोलीबारी हुई है। हाल ही में सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी संबोधन के दौरान आह्वान किया कि हिंदू समाज भी आत्मरक्षा की तैयारी करके रखे। लेकिन, समस्या यह है कि जब पुलिस-प्रशासन भी उन्हीं हिंदुओं पर कार्रवाई करे, तो ये बेचारे क्या करें? सोशल मीडिया पर हमलावरों का बचाव करते हुए लिखा जाता है कि मुस्लिम इलाके से यात्रा क्यों लेकर गए। सोचिए – मुस्लिम इलाका। जब कहीं मुस्लिमों की जनसंख्या अधिक हो जाने के कारण वह मुस्लिम इलाका हो जाता है, फिर भारत को हिंदू राष्ट्र कहे जाने से इन्हें समस्या क्यों हो जाती है? यह दोहरा रवैया क्यों? यहाँ तक कि स्थानीय एसपी वृंदा शुक्ला तक इसे मुस्लिम एरिया बता रही हैं। यूपी पुलिस को हो क्या गया है?

यह एक पैटर्न बन गया है। हिंदू शोभा यात्राओं में संगीत या भजन बजने पर आपत्ति जताई जाती है। फिर पत्थरबाजी की जाती है। फिर बंदूकें निकल आती हैं और गोली चलाई जाती है। फिर सोशल मीडिया पर एक खास गिरोह उनके बचाव में उतर आता है। जब सरकार कार्रवाई करती है तो कुछ वकील आरोपियों के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में चले जाते हैं और कार्रवाई रुकवाते हैं। यह एक पैटर्न है, ट्रेंड है। इसमें पत्थर फेंकने वाले से लेकर सुप्रीम कोर्ट में जिरह करने वाले तक शामिल हैं। यह तब तक चलता रहेगा, जब तक हर फ्रंट पर इन्हें जवाब नहीं दिया जाएगा। सिर्फ आत्मरक्षा की तैयारियों से ही काम नहीं चलेगा, व्यवस्था में हमें ऐसे लोग चाहिए जो नैरेटिव की लड़ाई में भी हमारा साथ दे सकें। वरना इस तरह की घटनाएँ होती रहेंगी।

चंदन गुप्ता और रामगोपाल मिश्रा जैसे कितने ही युवा क्रूर हिंसा का शिकार बन रहे हैं। बलिदान हो रहे हैं। यह हमारे लिए क्षति है, हम होनहार युवाओं को खोते जा रहे हैं। यह देश के लिए क्षति है।

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