सोशल मीडिया पर आजकल ऐसे लोगों की बाढ़ आ गई है, जो खुद को किसी विदेश जाति के ठेकेदार के रूप में पेश करते हैं। हर जाति के एकाध ठेकेदार आपको मिल ही जाएँगे। ये अपना एजेंडा चलाते हैं। जैसे, याद जाति का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले सोशल मीडिया के कुछ प्रोपेगंडाबाज आपको ये कहते हुए मिल जाएँगे कि भाजपा हमेशा यादवों के खिलाफ रहती है और यादव हमेशा भाजपा के खिलाफ। वो सपा और राजद का गुणगान करते नहीं थकते। हालाँकि, ग्राउंड रियलिटी कुछ और है। हरियाणा के अहीरवाल बेल्ट में ये दिखाई भी दे रहा है।
मध्य प्रदेश में मोहन यादव को भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया। चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही चेहरा थे, लेकिन पार्टी उन्हें केंद्र में लेकर आई और वहाँ की सत्ता में बदलाव किया। उज्जैन के मोहन यादव तलवारबाजी और लाठी भाँजने में विशेषज्ञ रहे हैं, पहलवान रहे हैं और ABVP व RSS से जुड़े रहे हैं। यानी, विचारधारा के प्रति समर्पित नेता हैं। बिहार में भी उनका शपथग्रहण समारोह भाजपा ने कई जगह स्क्रीन लगा कर चलाया था, वहाँ भी सबसे अधिक जनसंख्या यादव समाज की ही है। हरियाणा का अहीरवाल बेल्ट भी यादव बहुल ही है।
इस क्षेत्र के समीकरण की बात करें तो यहाँ कुल 28 विधानसभा सीटें हैं। ये इलाक़ा राजस्थान से भी लगा हुआ है। अहीरवाल बेल्ट में जहाँ BJP ने 21 सीटों पर जीत दर्ज की है वहीं मात्र 7 सीटों पर ही कांग्रेस को जीत मिल सकी है। 49 में से भाजपा की लगभग 43% सीटें यादव बेल्ट से ही आई हैं। अहीरवाल में मुख्य रूप से गुड़गांव, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और नारनौल जैसे जिले आते हैं। इस बेल्ट में भाजपा की सफलता का श्रेय राव इंद्रजीत सिंह को भी जाता है, जो हरियाणा के दिवंगत राव मुख्यमंत्री बीरेंदर के बेटे हैं।
महेंद्रगढ़ और फिर गुरुग्राम से लगातार छठी बार सांसद बने राव इंद्रजीत सिंह पिछले एक दशक से केंद्र में मंत्री हैं। लगातार तीसरी बार उन्हें मंत्री बनाया गया है। राव इंद्रजीत सिंह 4 बार विधायक भी रह चुके हैं। राव इंद्रजीत सिंह 2014 तक कांग्रेस में थे और तब तक अहीरवाल बेल्ट में भी कांग्रेस का बोलबाला हुआ करता था। ताज़ा विधानसभा चुनाव में अटेली से उनकी बैठी आरती राव ने भी भाजपा से जीत दर्ज की है। बताया जाता है कि इस बेल्ट में टिकट सेलेक्शन में भी उनकी भूमिका थी। अब राज्य के इस दक्षिणी हिस्से में भाजपा ज़्यादा मजबूत है।